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राणा प्रताप सिंह
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गज़ल : सच का पैरोकार
सच का पैरोकार यहाँ अकेला लगता है ,
चौक कहाँ तहरीर जहां पर रेला लगता है |
भ्रष्टाचार की जड़ से ही पनपा है नक्सलवाद ,
खत्म हो रहा लोकतंत्र का खेला लगता है |
नारे वादे धरे रह गये खुली तुम्हारी पोल ,
इस चुनाव में तुम खाओगे ढेला लगता है |
योग भगाए रोग जगाये भारत स्वाभिमान ,
योगी बाबा रामदेव अलबेला लगता है |
कितनी मुश्किल से इस दौर में नौकरी मिलती है ,
नेता बनने में क्या एक अधेला लगता है |
ऐश कर रहा सिंहासन पर लूट रहा अस्मत ,
मुझको हर मंत्री सद्दाम का चेला लगता है |
पुलिस की शह पर पिछवाड़े दिनभर बनती दारू ,
शाम ढले इस सूने घर में मेला लगता है |
(अभिनव अरुण २१-०२-१०११)
भ्रष्टाचार की जड़ से ही पनपा है नक्सलवाद ,
खत्म हो रहा लोकतंत्र का खेला लगता है |
bahut hi badhiya gazal prastuti arun bhai.....bahut hi khubsurati se sajaya hai aapne is gazal ko...badhai sweekar ho....
नारे वादे धरे रह गये खुली तुम्हारी पोल ,
इस चुनाव में तुम खाओगे ढेला लगता है
पुलिस की शह पर पिछवाड़े दिन भर बनती दारू,
शाम ढले इस सूने घर में मेला लगता है।
ख़ूबसूरत शे'र , उम्दा ग़ज़ल बधाई अभिनव जी।
सच का पैरोकार यहाँ अकेला लगता है ,
चौक कहाँ तहरीर जहां पर रेला लगता है |
अरुण भाई , बेहद खुबसूरत मतला से आपने ग़ज़ल का आगाज किया है ,
गिरह का शे'र भी काफी प्रभावी लगा , दाद कुबूल कीजिये |
योग भगाए रोग जगाये भारत स्वाभिमान ,
योगी बाबा रामदेव अलबेला लगता है |
bilkul tajaa sher .....
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