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चंपू खरगोश कंधेपर बस्ता टाँगे शाम को ट्यूशन से घर लौट रहा था। उसे आज नया ज्योमैट्री बॉक्स खरीदने के चक्कर में देर हो गई थी। सर्दियों के दिन थे सो अँधेरा जल्दी घिर आता था। वो तेजी से पैर बढ़ा रहा था ताकि शीघ्र घर पहुँच सके। उनदिनों जंगल में बच्चों के अपहरण की घटनाएं काफी बढ़ गई थीं। कुछ ही दिन पहले छज्जू हिरण के बेटे छुनकू को कुछ अपराधियों ने उठा लिया था। उसका अभीतक कोई पता नहीं चल पाया था। इन्हीं बातों को ध्यान में रखते हुए चंपू की माँ ने उसे रोज जल्दी घर लौटने को कहा था। ट्यूशन की जगह से चंपू के घर के बीच थोड़ी दूरतक रास्ता सुनसान पड़ता था। वहाँ दोनों तरफ घने पेड़ थे और स्ट्रीट लाइट भी काफी दूर-दूरपर लगी थी। जब चंपू वहाँ पहुँचा तो और सतर्क हो गया। उसने अपनी चाल थोड़ी और तेज कर दी।

तभी अचानक चंपू को अपने पीछे से कुछ आहट सी सुनाई दी। वो कुछ समझ पाता इससे पहले किसी ने उसका मुँह कसके दबाकर उसे उठाया और पेड़ों के बीच बने एक कच्चे रास्ते की ओर भागा। थोड़ा अंदर जाने के बाद वो रुका और एक अजीब सी आवाज निकाली। उसके ऐसा करते ही उसके कुछ और साथी झाड़ियों से निकलकर वहाँ आ गये। चंपू को कुछ समझ नहीं आ रहा था। उसने उनसब की ओर देखा। अँधेरा होने के कारण कुछ ज्यादा स्पष्ट तो नहीं दिख रहा था लेकिन चंपू को इतना समझ आ ही गया कि वो चार-पाँच लोमड़ थे। तभी जिसने चंपू का मुँह दबाया हुआ था उसने उससे कहा कि देख छोकरे, तेरे मुँह से हाथ हटा रहा हूँ। अगर कोई आवाज की तो गला काट दूँगा, यह कह उसने उसके मुँह से हाथ हटा दिया। चंपू को बहुत डर लग रहा था। वो अकेला एक छोटा खरगोश का बच्चा और कहाँ वो चार-पाँच हट्टे-कट्टे लोमड़। वो डर के मारे रोने लगा। उसे रोता देख सब हँसने लगे। उनसबों ने उसे ले जाकर एक पुराने घर में बंद कर दिया और खुद बाहर बैठकर कुछ बात करने लगे।

बेचारा चंपू अंदर बहुत डरा-सहमा बैठा था। उसे कुछ सूझ नहीं रहा था कि क्या करे। वो रोने लगा लेकिन फिर उसने अपने मन को शांत किया। वो जानता था कि रोने से कुछ नहीं होनेवाला। उसने आँसू पोंछे और सोचने लगा। उसे काफी डरा हुआ देखकर लोमड़ों ने उसके हाथ-पैर खुले ही छोड़ दिये थे। उन्होंने सोचा कि ये कहाँ भागेगा? ये तो वैसे ही डर से रो रहा है। तभी चंपू को किसी और के भी रोने की आवाज सुनाई दी। आवाज बगल के कमरे से आ रही थी। चंपू धीरे से बगलवाले कमरे तक गया और झांका। वो हैरान रह गया। वहाँ छज्जू हिरण का लापता बेटा छुनकू बैठा रो रहा था। चंपू समझ गया कि उसका भी अपहरण इन्हीं बदमाशों ने किया है। वो छुनकू के पास गया। छुनकू उसे देखते ही उससे लिपट गया और रोने लगा। छुनकू ने उसे बताया कि ये लोमड़ बड़े दुष्ट हैं। ये बच्चों को मारकर उनके अंग निकाल लेते हैं। उन्हें बेचकर इन्हें काफी पैसे मिलते हैं। कुछ दिन पहले इनका एक साथी भेड़िया आया था। उससे ये लोग यहीसब बातें कर रहे थे। जिसे सुनकर उसे सारी बातें पता चलीं। चंपू ने उसे भी हिम्मत बँधाई और इस समस्या से निकलने का उपाय सोचने को कहा। छुनकू भी चुप हो गया और चंपू का हाथ पकड़कर बैठ गया। तभी चंपू को एक आइडिया आया। उसने छुनकू के कान में कुछ कहा। सारी बातें सुनने के बाद छुनकू ने घबराते हुए उससे पूछा -

"क्या इसमें कोई खतरा नहीं?"

"खतरे के डर से बैठे रहे तो यहीं फँसे रह जाएंगे। हमें हिम्मत दिखानी ही होगी" चंपू ने दृढ़ता से कहा।

फिर चंपू उठा और अपने बस्ते को खोल उसमें से ज्योमैट्री बॉक्स निकाला। बदमाशों ने उसका बस्ता भी उसी कमरे में छोड़ दिया था। उसमें से उसने अपना परकार निकाला और उसे अपने पास छुपाकर रख लिया। फिर वो दरवाजे के पास आया और बाहर उन लोमड़ों की बातें सुनने की कोशिश करने लगा। तभी उसे दरवाजे में एक सुराख दिखी। उसने उससे बाहर झांका। उसने देखा कि पाँचो बैठे कुछ बात कर रहे थे। फिर थोड़ी देर बाद उनमें से चार उठे और कहीं चले गये। शायद वो खाना खाने गये थे। एक अभी वहीं बैठा निगरानी कर रहा था। चंपू ने जान लिया कि यही सही मौका है कुछ करने का। वो भागकर छुनकू के पास आया और उसके कान में कुछ कहा। सुनते ही छुनकू उठा और दरवाजे के पास आकर आँखें बंद कर लेट गया। चंपू भी वहीं आकर जोर-जोर से चिल्लाने लगा -

"अंकल, जल्दी आइए, ये जाने कैसे बेहोश हो गया है, जल्दी आइए" कहते-कहते उसने रोना शुरु कर दिया।

बाहर बैठे लोमड़ ने जब उसके रोने की आवाज सुनी तो वह भागा अंदर आया। आखिर उसे उन्हें बेचकर ही तो पैसे मिलने थे। वो अंदर आया तो उसने देखा कि छुनकू जमीनपर गिरा था और चंपू उसके पास ही बैठा रो रहा था।

"क्यों रे, क्या हुआ इसे? तूने मारा है क्या" उसने गुस्से में पूछा।

"नहीं नहीं, मैंने कुछ नहीं किया। ये खुद ही यहाँ गिर पड़ा" चंपू डरने का नाटक करते हुए बोला।

"तो इसे क्या हुआ" कहता हुआ वो लोमड़ उसके नजदीक आया और उसे देखने लगा। वो जैसे ही उसकी नब्ज देखने के लिए नीचे झुका चंपू ने अपने पास छुपा परकार निकाला और एक झटके में उस लोमड़ की एक आँख में भोंक दिया। जोरदार चीख मारकर वो दुष्ट लोमड़ वहीं जमीनपर गिर पड़ा और बुरी तरह तड़पने लगा। उसकी वो आँख फूट चुकी थी। वो दर्द से बिलबिला रहा था। चंपू और छुनकू झटके उठे और बाहर की ओर भागे। बाहर कोई नहीं था। वो मुख्य सड़क की ओर भागने लगे।

सड़क के नजदीक आते ही उसे थानेदार गन्नू हाथी की पेट्रोलिंग जीप आती दिखी। वो सड़क किनारे खड़े होकर "बचाओ बचाओ" चिल्लाने लगे। गन्नू ने जैसे ही उन्हें देखा उसने अपनी जीप रोकी और उतरकर उनके पास आया। सारी बातें जानकर गन्नू ने उन्हें बहुत शाबासी दी और उन्हें उन बदमाशों का अड्डा दिखाने को कहा। चंपू गन्नू को लेकर वापस उसी जगह पर आया और वो घर दिखा दिया जहाँ उन बदमाशों ने उसे रखा था। गन्नू अपनी रिवाल्वर हाथ में ले अंदर घुसा तो देखा कि वो लोमड़ जिसकी आँख चंपू ने फोड़ दी थी, बेहोश पड़ा था। बाकी शायद अभी लौटे नहीं थे। गन्नू ने तुरंत उस लोमड़ को अपनी जीप में डलवाया और बाकियों का इंतजार करने लगा। बाकी चारों बदमाश थोड़ी ही देर बाद वहाँ आते दिखाई दिये। उनके घर में घुसते ही गन्नू ने उनसब को भी पकड़ लिया और थाने ले आया। उनसे सख्ती से पूछताछ करनेपर उन्होंने अपने पूरे गिरोह का पता बता दिया। सारा गिरोह पकड़ा गया।

गन्नू ने अपनी जीप में बिठाकर चंपू और छुनकू को उनके घरोंतक पहुँचाया। चंपू के माता-पिता का रो-रोकर बुरा हाल था। चंपू को देखते ही उन्होंने उसे गले से लगा लिया। छुनकू के माँ-बाप भी छुनकू को देख खुशी से नाच उठे। अगले दिन के अखबारों में चंपू और छुनकू की बहादुरी के ही किस्से थे। सभी उनकी तारीफ करते नहीं थक रहे थे। अपहर्ता गिरोह के पकड़े जाने से जंगलवासियों ने एकबार फिर चैन की साँस ली और सभी खुशी-खुशी रहने लगे।

"मौलिक व अप्रकाशित" 

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Replies to This Discussion

बहुत बढ़िया रोचक बालकथा ....हार्दिक बधाई आपको 

हार्दिक आभार आपका आदरणीया वंदना जी............

अरे बहुत अच्छे जनाब ! शिक्षा प्रद कहानी ....

दिल से धन्यवाद आदरणीय अमन जी............

acchi baal katha

बहुत-बहुत आभार आपका आदरणीया शशि जी............

Ati sundar. sachmuch yah ha ek utkrist bal katha.  Lekhak ki disha bilkul sahi ha. Badhai.

आदरणीय  डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव जी, स्नेह के लिए आपका दिल से आभारी हूँ.........

वाह क्या कथा है ! एक उत्कृष्ट बाल कथा के लिए हृदय से बधाई और हार्दिक शुभकामनाएँ भाई अजीतेन्दु.

आपके गंभीर और उत्तरदायी व्यवहार से एक सार्थक लघुकथा प्रस्तुत हुई है.

मुझे अपने बचपने का समय याद आया जब हम चंपक में ऐसी कथायें चाव से पढ़ा करते थे.

शुभ-शुभ

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