For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

       एक रचनाकार का ह्रदय बहुत संवेदनशील होता है. जीवन की अनुभूतियाँ उसके मन पर अंकित होती रहती हैं और रचना करते समय यही अनुभूतियाँ उभरकर आकार लेती हैं. आशा पाण्डेय ओझा की पुस्तक ‘एक कोशिश रोशनी की ओर’ ऐसी ही अनुभूतियों का संकलन है.

       इस संकलन में शामिल रचनाओं की भाषा सरल है. इनमें क्लिष्ट शब्दों का मोह नहीं दिखता. सीधे, सपाट लहजे में, बोलचाल की भाषा में कही गयी बात सीधे पाठक तक पहुँचती है. यही कारण है कि जब वे इश्वर से प्रार्थना करती हैं तो उनकी सरलता सहज ही शब्द पा जाती है-

‘आत्मा रहे मेरी गीता सी पावन

काया मेरी वेद कुरान हो

सादगी रहे मेरे जीवन का हिस्सा

मुझको जरा न अभिमान हो’

वहीं माँ के प्रति उनकी श्रद्धा कुछ इस तरह से व्यक्त होती है-

‘माँ तुम ममता का मूर्त रूप

तुम सतरंगी स्नेह-आँचल’

        इस संकलन में शामिल रचनाओं को विधा के नाम पर वर्गीकृत करना कठिन है. भाव और विचार को प्रमुखता देने में शिल्प का मोह कहीं पीछे छूट गया है. बिम्बों या किसी लाग-लपेट के बिना उन्होंने अपनी बात सीधे रखी है. अपने जीवन, समाज और आस-पास के परिदृश्य से एकत्रित अनुभूतियों को कवियत्री इन रचनाओं में पूरी तरह जीती हैं.

       समाज में व्याप्त अव्यवस्था और संवेदनहीनता से आहत कवियत्री का मन रह-रहकर सामाजिक कुरीतियों पर चोट करता दिखता है.

‘वो नंगे भूखे जिस्म वो पथराई आँखें

पूछ रहे हैं मुझसे ये दुनिया किसने बनायी?’

संवेदनहीनता पर वो इतनी विचलित हैं कि बरबस कह उठती हैं-

‘ये सुलगते मंज़र ये संवेदनाओं की ख़ामोशी

वाकई मैं हैरान हूँ क्यूंकि वक्त हैरानी का है’

और उनकी ये हैरानी इन्सान की हैरानी बनकर अव्यवस्था और मूल्यों के पतन की परतें खोलती उनकी रचनाओं में मुखरित हुई  है.

‘हर इंसान है आज अहिल्या

है राम कहाँ जो उद्धार करे’

       आमो-खास के अंतर पर प्रश्न-चिन्ह लगाती उनकी रचनाओं में सर्वहारा वर्ग के मन का प्रश्न बहुत ही प्रमुखता से जगह पाता है.

'कुदरत नहीं करती जब कोई अंतर

फिर क्यों हम-तुम एक समान नहीं'

सामाजिक विद्रूपताओं के प्रति उनकी खिन्नता बहुत स्पष्टता से व्यक्त होती है-

 ‘वे सर पर मैला ढोते हैं

हम मन में मैला ढोते हैं’

आदमियत में आती गिरावट बहुत बारीकी से इनकी रचना में उभरकर आती है. एक बानगी देखिये-

‘सागर थे जो सूख गए

बचे रेत के टीले लोग'

वर्तमान परिदृश्य की भयावता इन शब्दों में व्यक्त हुई है-

‘देख लिया जो शीशा इक दिन अनजाने में

खुद से ही डर जायेगा आदमी’

       आम आदमी या सर्वहारा का दर्द उनके मन में इस कदर रचा-बसा है कि उसकी कराह उनकी लेखनी में स्पष्ट सुनाई देती है.

‘रातों को जब मेरे घर में रौशनी जगमगाने लगती है

जाने क्यों अँधेरे में डूबी वो बस्ती याद आने लगती है’

समाजवाद की अवधारणा कितने सही शब्द पायी है यहाँ-

‘एक ऐसा स्वर्णिम सबेरा होगा

फिर न कहीं कोई अँधेरा होगा’

      उनकी कल्पनों में एक ऐसी दुनिया है जहाँ कोई विवाद न हो, जहाँ सिर्फ अमन और चैन हो-

‘मिटा दो युद्ध विध्वंस तो बड़ा उपकार हो जाये

इस धरती से ख़त्म सरहदों की दीवार हो जाये

मिट जाये जात-पात, दुनिया एक परिवार हो जाये

सचमुच जन्नत कहीं है, तो जमीं पे साकार हो जाये’

       इनकी रचनाओं में प्रकृति चित्रण ऐसे अनोखे सरस अंदाज़ में है कि मन प्राकृतिक सौन्दर्य से गदगद हो जाता है.

‘कस्तूरी हुई गुलाब की सांसें

केवड़ा, पलाश करे श्रंगार

छोटे ही गिर जाये पात लजीले

इठलाती-मदमाती सी बयार’

       पुस्तक की प्रूफ रीडिंग उच्च कोटि की है. अच्छी प्रिंटिंग और आकर्षक प्रस्तुतीकरण के लिए प्रकाशक बधाई के पात्र हैं.

 

पुस्तक का नाम- एक कोशिश रौशनी की ओर

कवियत्री- श्रीमती आशा पाण्डेय ओझा

प्रकाशक- अम्बुतोष प्रकाशन

मूल्य- १२० रुपये

                                                           -  बृजेश नीरज

(मौलिक व अप्रकाशित)

Views: 1113

Replies to This Discussion

आदरणीय  ब्रिजेश जी भाईसाहब सर्वप्रथम तो आपका हार्दिक आभार व्यक्त करती हूंकी मेरी पुस्तक  "एक कोशिश रौशनी की ओर "को आपने पढ़ कर उस पर अपनी समीक्षात्मक प्रतिक्रिया व्यक्त की ,एक लेखक का दूसरे लेखक द्वारा पढना व इस बारीकी से पढना कि प्रतिक्रिया स्वरूप उस पर अपनी बेबाक राय सार्वजनिक रूप से रखे यह एक लेखक का दूसरे लेखक को साहित्य के पथ पर आगे बढ़ाने में बहुत बडा योगदान होता है , आम तौर पर लेखक दूसरे लेखक की पुस्तक खोलकर देखना भी कम ही पसंद करता है .. अगर देख भी ले तो राय प्रकट करना अपनी तौहीन समझता है .. मेरी इस पुस्तक पर आपकी इस समीक्षात्मक प्रतिक्रीय ने मेरे लिखने की कोशिश को एक नै ऊर्जा हौसला दिया है ! पुन: मैं   आपका कोटि आभार  प्रकट करती हूँ 

आशा पाण्डेय ओझा 

आदरणीया आशा जी आपका हार्दिक आभार कि आपने मेरे कहे को इतना मान दिया. 

सादर!

मैंने अभी तक  आ० आशा जी की किताब 'एक कोशिश रौशनी की ओर' नही पढ़ी पर आप की इस सुन्दर समीक्षा को पढ़ कर मुझे आभास हो रहा है कि किताब में आशा जी की लेखनी का खजाना छुपा है | अब तो किताब जरूर पढ़ना चाहूंगी | बहुत बधाई और शुभकामनाएँ आ० आशा जी को और इस सुन्दर समीक्षा हेतु आप को ढेरों हार्दिक बधाई आ० बृजेश जी 

प्रिय मीना जी हार्दिक आभार आपका !  बहुत जल्द आपको भी कुछ पुस्तकें  भिजवऊँगी अपनी 

जी आ० आशा जी , मै प्रतीक्षा कर रही हूँ :)

आदरणीया मीना जी आपका हार्दिक आभार!

तीन वर्ष पहले फेसबुक पे आदरणीया आशा दीदी के एक पोस्ट के ज़रिये ही ओ बी ओ को जाना और ग़ज़ल में अभिरुचि के कारण तरही से आकर्षित होकर इस मंच से जुडा तबसे इस परिवार का एक सदस्य होकर रह गया हूँ ! सो इस सन्दर्भ में आशा दी का बहुत बड़ा योगदान है ..मेरे इधर के लेखन में | ..आशा दी की पुस्तक की विस्तृत समीक्षा के लिए हार्दिक साधुवाद आदरणीय श्री ब्रिजेश नीरज जी |  और बहुत बहुत शुभकामनायें अभिवादन सहित आशा दी को !!..आपकी रचनाओं में सामाजिक सरोकार हैं ...भावनाओं की गहनता है ..प्रकृति है ...संस्कार हैं ..और सब एक ताजगी और खूबसूरती के साथ ..यही आशा दी की विशेषता है ..बहुत बहुत साधुवाद ..!!

आदरणीय अभिनव जी सच कहा आपने आशा जी को पढना एक सुखद अनुभूति देता है! आपका हार्दिक आभार!

प्रिय अभिनव अरूण भिया यह आप सबका स्नेह है जो मुझे इतना मान देते हैं .. इश्वर से प्रार्थना है यह स्नेह  बना रहे 

एक आप ही हैं हज़ारों में आशा दी जिसे यह संबोधन मेरी और से शोभता है :-) स्नेह सदा सदा बना रहेगा !! सादर अभिवादन और बहुत बहुत शुभकामनायें !!

रचनाओं का पुस्तकीय स्वरूप में आना मानों स्वप्न का आकार लेना होता है. वैचारिकता शब्दो के माध्यम से रचनाओं में परिणत होती हैं और संप्रेषणीय होने का आग्रह रचनाओं को पुस्तकाकार देता है.

भाई बृजेशजी ने आलोच्य काव्य-संग्रह की सार्थक विवेचना की है. अपन् कहे को सटीक उद्धरणॊं से पुष्ट किया है. वैसे रचनाकार की शिल्प के प्रति अन्यमनस्कता को गुण की तरह अभिव्यक्त किया गया है, किन्तु, मात्रिक रचनाओं का विन्यास बन रहा हो तो शिल्पजन्य अनुशासन आवश्यक ही है.

वैसे आदरणीया आशाजी की रचनाओं में भाव पक्ष इतना सान्द्र होता है कि वह अपने लिए एक विशिष्ट संसार बना लेता है.

आदरणीया की इस पुस्तक के लिए बधाई और भाई बृजेश जी की उस पर सुन्दर समीक्षा के लिए हार्दिक धन्यवाद.

आपका हार्दिक आभार आदरणीय!

RSS

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Activity

Admin posted a discussion

"ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-115

आदरणीय साथियो,सादर नमन।."ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-116 में आप सभी का हार्दिक स्वागत है।"ओबीओ…See More
40 minutes ago
Sushil Sarna commented on रामबली गुप्ता's blog post कुंडलिया छंद
"आदरणीय रामबली जी बहुत ही उत्तम और सार्थक कुंडलिया का सृजन हुआ है ।हार्दिक बधाई सर"
yesterday
Ashok Kumar Raktale replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 161 in the group चित्र से काव्य तक
" जी ! सही कहा है आपने. सादर प्रणाम. "
Sunday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 161 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीय अशोक भाईजी, एक ही छंद में चित्र उभर कर शाब्दिक हुआ है। शिल्प और भाव का सुंदर संयोजन हुआ है।…"
Sunday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 161 in the group चित्र से काव्य तक
"आ. भाई अशोक जी, सादर अभिवादन। रचना पर उपस्थिति स्नेह और मार्गदर्शन के लिए बहुत बहुत…"
Sunday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 161 in the group चित्र से काव्य तक
"अवश्य, आदरणीय अशोक भाई साहब।  31 वर्णों की व्यवस्था और पदांत का लघु-गुरू होना मनहरण की…"
Sunday
Ashok Kumar Raktale replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 161 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीय भाई लक्षमण धामी जी सादर, आपने रचना संशोधित कर पुनः पोस्ट की है, किन्तु आपने घनाक्षरी की…"
Sunday
Ashok Kumar Raktale replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 161 in the group चित्र से काव्य तक
"मनहरण घनाक्षरी   नन्हें-नन्हें बच्चों के न हाथों में किताब और, पीठ पर शाला वाले, झोले का न भार…"
Sunday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 161 in the group चित्र से काव्य तक
"आ. भाई सौरभ जी, सादर अभिवादन। रचना पर उपस्थिति व स्नेहाशीष के लिए आभार। जल्दबाजी में त्रुटिपूर्ण…"
Sunday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 161 in the group चित्र से काव्य तक
"आयोजन में सारस्वत सहभागिता के लिए हार्दिक धन्यवाद, आदरणीय लक्ष्मण धामी मुसाफिर जी। शीत ऋतु की सुंदर…"
Sunday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 161 in the group चित्र से काव्य तक
"शीत लहर ही चहुँदिश दिखती, है हुई तपन अतीत यहाँ।यौवन  जैसी  ठिठुरन  लेकर, आन …"
Sunday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 161 in the group चित्र से काव्य तक
"सादर अभिवादन, आदरणीय।"
Sunday

© 2024   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service