नकबेसर के टोह में, अँगुरी मींजे रात ।
उहे दिवाली आजु ले, सिहरन पारे बात ॥
जम-दीया आ सूप से, भइल दलिद्दर दूर ।
पुलक गइल घर-देहरी, जगर-मगर भरपूर ॥
तुलसी माई साधि दऽ, पितरन के मरजाद।
नेह-छोह के सीत में, कोठ रहे आबाद ॥
कूहा तान दुआर पर, मावस ओदे भोर ।
मनल दिवाली राति भर, दियरी पोछसु लोर ॥
आस-हुलासा का जिओ, मन-खूँटी बरियार ।
भगजोगनी क फेर में, बाउर भइल अन्हार ॥
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--सौरभ
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नकबेसर - नाक में पहना जाने वाला आभूषण ;टोह - खोज ; मींजना - मसलना ; पारना - याद दिलाना ;
जम-दीया - यम के नाम का दीप ; आ - और ; सूप - बाँस की फट्टियों से निर्मित अनाज फटकने हेतु प्रयुक्त ; भइल - हुआ ; दलिद्दर - दरिद्रता ; पुलक गइल - हर्षित हुआ ;
माई - माता ; साधि दऽ - साध दो, व्यवस्थित कर दो ; पितरन के - पितरों का ; मरजाद - मर्यादा, सीमायें, (यहाँ ’अपेक्षाओं’ को साधने के संदर्भ में लिया गया है) ; नेह-छोह - स्नेह-दुलार ; सीत - ओस ; कोठ - बाँस और वंश का उद्गम
कूहा - कुहासा ; तान - तानना ; दुआर - द्वार, घर के सामने, बाहर का ; मावस - अमावस ; ओदना - नम करना, तर करना, भिगोना ; दियरी - मिट्ट्छोटा दीया, पोछसु - पोछती है ; लोर - आँसू ;
जिओ - जिये ; बरियार - मज़बूत ; भगजोगनी - जुगनू ; फेर में - किसी के कारण ; बाउर - दोषी ; भइल - हुई ; अन्हार - अधेरा ;
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सभे दोहा सुनर लगे, बहुत बहुत आभार,
चमके खूब भोजपुरी, हिय के चाह हमार |
वाह सौरभ भईया वाह, देवारी के दिया आजे जगमग कर दिहनी रउआ, सभे दोहा बहुते नीमन लागल, बधाई हमार सवीकार करी |
भाई गणेश जी, एह मंच पर भोजपुरी में हमार ई कवनो प्रथम पद्य-प्रस्तुति ह. एह से राउर हार्दिक बधाई मन के तनि अलगे मगन कइले बा.
हम दोहा में प्रयुक्त कई-एक शब्दन के अर्थ लिख के फेर से प्रस्तुत क रहल बानी, जेसे भोजपुरी जननिहारन भा नीम जननिहारन के इचिको सँकेता नति होखे.
रचना पर उत्साहवर्द्धन कइला खातिर हृदय से धन्यवाद.
आदरणीय गुरुदेव दीवन का त्यौहार
तू लिखली हम बंचली करता राम जुहार
दिवाली मुबारक.
आदरणीय प्रदीप जी, आपके हमार एह प्रस्तुति पर बधाई दीहल बड़ा नीक लागल.
सादर
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