For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

           सीता के बियाह भइला पाँच बरिस भ गइल | बिदाई के बेरा प माई के कहलका आजुओ भुलाईल नईखी ऊ, "बेटी तोहार ससुरा के देहरी तोहार लछुमन रेखा ह.. देखिहऽ उ लंघाय ना.. गाँव-जवार में उनुके निकहा मान मिलेला जे अपना चरित्तर आ पतिधरम निभावला" |
सीता भरसक लछुमन रेखा त ना लंघली, बाकिर दू गो छोट-छोट लइकन आ पियक्कड़ मरद के संगे कइसे जियत गइली ई उहे जानत बाड़ी | 
                       दिनभर दारु में टुन्न मरद आ भूखे छटपिटात नंग-धडंग लइकन के दासा देखि के सीता से रहल ना गइल. आखिरकार ऊ लछुमन रेखा लांघिये गइली. मेहनत-मजूरी करे शहर जाए लगली | अब लइकन के थारी में रोटी-तरकारी आ देह प लूगा-बस्तर लउके लागल. बाकिर गाँव में सीता के एगो नया नाम धरा गइल...... "छिनार"..

मौलिक व अप्रकाशित

पिछला पोस्ट ==> भोजपुरी लघुकथा : मन्थरा

Views: 1766

Replies to This Discussion

किन परिस्थितियों में वह तथाकथित लक्ष्मण रेखा लांघनी पड़ी। अपने भूखे बच्चों के लिए अन्नोपार्जन किया। वस्तुतः वह पुरुष का ही कर्तव्य था। अपना तो अपना अपने पति का भी रोल स्वयम करके भी सीता को यदि 'छिनार' की पदवी मिलती है तो निश्चित ही समाज मानसिक रूप से बीमार है।
बहुत बहुत बधाई आ० बागी जी!

आदरणीया वेदिका जी, आप गैर भोजपुरी भाषी होते हुए भी जिस तरह से कथा के मर्म को समझी है वह तारीफ़ के योग्य है, मैं हृदय से आभारी हूँ।

सुन्दर लघुकथा के लिये आपको बधाई ...................

सादर ...............

बहुत बहुत आभार आदरणीय श्याम नारायण वर्मा जी।

आदरणीय गणेश भाईजी 

भ्रष्ट व्यवस्था, उस पर दारू, क्या करे गरीब लुगाई। 

परिवार पालना ज़रूरी है, चाहे जग में होत हँसाई।

इसलिए गरीब औरत बनी, शहर में सब की भौजई।   

पर गाँव वाले चाहे जो कहें, वो है दरुवा की लुगाई।

गणेश भाई इस कथा के लिए, हार्दिक मेरी बधाई। 

आदरणीय अखिलेश भाई साहब, एह भोजपुरी लघुकथा प राउर कविता रूपी टिप्पणी उत्साहवर्धन क गईल, बहुते आभार।

लघु कथा पर बहुत बधाई, गणेश l
औरत की जिंदगी कितनी बेबस है l वो चाहें कुछ भी करे पर लोग उसमे खामियां निकाल लेते हैं l शादी होने पर बड़े-बूढ़े बिना सोचे समझे उपदेश देते रहते हैं l पर परिस्थितियाँ लक्षमण रेखा लांघने को मजबूर कर देती हैं l परिवार का पेट भरने के लिये मेहनत मजदूरी करने वाली औरत भी 'छिनार' हो गई...ये लोगों की अज्ञानता नहीं तो क्या है? 

आदरणीया सन्नो बहिन, एह भोजपुरी लघुकथा प राउर आशीर्वाद अनमोल बा, बहुते आभार।

" एगो नया नाम धरा गइल " नाम धरने और अपनी परिभाषाएँ गढ़नें में तो हम दुनिया में सबसे आगे हैं। कोई अपने पैरों पर खड़ा हो यह भी हम देख नहीं पाते हैं। इस प्रभावी भोजपुरी लघु कथा हेतु बधाई आदरणीय गणेश जी बागी जी .

आदरणीय डॉ विजय शंकर जी, राउर कहनाम बिल्कुले सही बा, नामकरण त जईसे जनम सिद्ध अधिकार होखेला, लघुकथा पसन् करे बदे राउर बहुते आभार।

भोजपुरिहा गाँव-जवार के लोगन के जवन हाल-दासा बा, ऊ इनारा के बेंग से ढेर अधिका नइखे, गनेस भाई. एकर दुख त हरमेसा से रहल बा. ऊहो तब जब अपना देस-जवार के लोगन के बहिरी के देस-दुनिया में जाये में कवनो अहस ना बरल कबो. पढ़ल ले बेसी कढ़ल लोगन के ई देस-जवार इज्जत करत रहल बा. बाकिर हाल का बा सोच के ? निकहा मन घिना जाओ. अब ई दुख तनिका बेसी एहू से ढेर बुझाता, काहें जे, अपना भारत देस के लगभग कूल्हि राज्यन में लोगन के मानसिक अस्तर में निकहा विकास भइल बा. बाकिर, भोजपुरिहा इलाका आजुओ सामंती सोच ले आगा नइखे बढ़ल. आजुओ.. !
एही बिन्दु के तहार काथा निकहा सुघर भाव से कहि रहल बा.

एह लघुकाथा के प्रस्तुति खातिर दिल से बधाई..

आदरणीय सौरभ भईया, लोग दुगो रोटी भले ना दे बाकिर दू गो बात बनावे में कवनो जोड़ नईखे, आपन फटलका भले ना लउके बाकिर दोसर के टाटी में जरूर झाकी, राउर आशीर्वाद एह लघुकथा के एगो नया विस्तार दे दिहलस, बहुत बहुत आभार।

RSS

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Activity

Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-116
"आदाब। उम्दा विषय, कथानक व कथ्य पर उम्दा रचना हेतु हार्दिक बधाई आदरणीय तेजवीर सिंह साहिब। बस आरंभ…"
5 hours ago
TEJ VEER SINGH replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-116
"बदलते लोग  - लघुकथा -  घासी राम गाँव से दस साल की उम्र में  शहर अपने चाचा के पास…"
5 hours ago
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-116
"श्रवण भये चंगाराम? (लघुकथा): गंगाराम कुछ दिन से चिंतित नज़र आ रहे थे। तोताराम उनके आसपास मंडराता…"
8 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-173
"आ. भाई जैफ जी, सादर अभिवादन। गजल की प्रशंसा के लिए आभार।"
18 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-173
"आ. रिचा जी, हार्दिक धन्यवाद।"
18 hours ago
अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-173
"आदरणीय ज़ैफ़ जी आदाब, ग़ज़ल पर आपकी आमद और हौसला अफ़ज़ाई का तह-ए-दिल से शुक्रिया।"
22 hours ago
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-173
"आदरणीय ज़ेफ जी, प्रोत्साहन के लिए बहुत बहुत धन्यवाद।"
22 hours ago
अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-173
"//जिस्म जलने पर राख रह जाती है// शुक्रिया अमित जी, मुझे ये जानकारी नहीं थी। "
22 hours ago
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-173
"आदरणीय अमित जी, आपकी टिप्पणी से सीखने को मिला। इसके लिए हार्दिक आभार। भविष्य में भी मार्ग दर्शन…"
22 hours ago
अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-173
"शुक्रिया ज़ैफ़ जी, टिप्पणी में गिरह का शे'र भी डाल देंगे तो उम्मीद करता हूँ कि ग़ज़ल मान्य हो…"
22 hours ago
Zaif replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-173
"आ. दयाराम जी, ग़ज़ल का अच्छा प्रयास रहा। आ. अमित जी की इस्लाह महत्वपूर्ण है।"
22 hours ago
Zaif replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-173
"आ. अमित, ग़ज़ल पर आपकी बेहतरीन इस्लाह व हौसला अफ़ज़ाई का तह-ए-दिल से शुक्रिय:।"
22 hours ago

© 2024   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service