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हरिगीतिका:

हरिगीतिका चार चरण वाला एक सम मात्रिक छंद है इसके प्रत्येक चरण में १६ व १२ के विराम से २८ मात्रायें होती हैं तथा अंत में लघु गुरू आना अनिवार्य है | अधिकतर पर यह छंद ईश-वंदना में प्रयोग किया जाता है |

मम मातृभूमिः भारतं धनधान्यपूर्णं स्यात् सदा ।
नग्नो न क्षुधितो कोऽपि स्यादिह वर्धतां सुख-सन्ततिः ।
स्युर्ज्ञानिनो गुणशालिनो ह्युपकार-निरता मानवः,
अपकारकर्ता कोऽपि न स्याद् दुष्टवृत्तिर्दांवः ॥

हरिगीतिका के चारों पदों में से कम से कम दो-दो पदों में तुक मिलना चाहिए | यदि चारों में हो तो और भी अच्छा है !

‘हरिगीतिका’ छंद का सोदाहरण आंतरिक विन्यास:

11212        11212          11,     212        11212

हरिगीतिका हरिगीतिका हरि, गीतिका हरिगीतिका

11212        11212          11,     212        11212

हरिगीतिका हरिगीतिका हरि, गीतिका हरिगीतिका

11212        11212          11,     212        11212

हरिगीतिका हरिगीतिका हरि, गीतिका हरिगीतिका

11212        11212          11,     212        11212

हरिगीतिका हरिगीतिका हरि, गीतिका हरिगीतिका

लघु वर्ण से प्रारम्भ होने वाली उपरोक्त हरिगीतिका को यदि ध्यान से देखें तो  इसकी प्रत्येक पंक्ति में पहला, दूसरा, चौथा, छठा, सातवाँ, नौवां, ग्यारहवां, बारहवां व तेरहवां, चौदहवां, सोलहवां, सत्रहवाँ व उन्नीसवाँ वर्ण लघु है | 

आसानी के लिये इसे निम्न प्रकार से भी गाया जा सकता है

लललाला लललाला लल, लाला लललाला

गुरुवर्ण से प्रारंभ होने वाली हरिगीतिका का सोदाहरण आंतरिक विन्यास

       ३,            ७,              ११,        व १५वां  लघुवर्ण  (प्रत्येक पंक्ति में)

श्रीगीतिका श्रीगीतिका श्री, गीतिका श्रीगीतिका

श्रीगीतिका श्रीगीतिका श्री, गीतिका श्रीगीतिका

श्रीगीतिका श्रीगीतिका श्री, गीतिका श्रीगीतिका

श्रीगीतिका श्रीगीतिका श्री, गीतिका श्रीगीतिका

इससे यह स्वतः ही स्पष्ट हो रहा है कि गुरुवर्ण से प्रारम्भ होने वाली उपरोक्त हरिगीतिका की प्रत्येक पंक्ति में तीसरा, सातवाँ , ग्यारहवांपन्द्रहवां वर्ण लघु है परन्तु यदि उपरोक्त दोनों प्रकार के छंदों को मिश्रित करके हरिगीतिका रची जाय तो यह क्रम परिवर्तित हो जायेगा |

और अधिक आसानी के लिये इसे निम्न प्रकार से भी गाया जा सकता है

लालाला लालाला ला, लाला लालाला

 

‘हरिगीतिका’ छंद के अन्य उदाहरण:

 

 (1)

2     21   21   121      1111,    111    11    11   212

श्री राम चंद्र कृपालु भजमन, हरण भव भय दारुणम् |

1121     211      21     1111,    21     11       2212

नवकंज लोचन कंज मुख कर, कंज पद कन्जारुणम ||

221     1111        111     11,    11,   21     211     212
कंदर्प अगणित अमित छवि नव, नील नीरज सुन्दरम |

1122      211    111     11    11,     21       111    1212

पट्पीत मानहु तडित रूचि शुचि, नौमि जनक सुतावरम ||

 

(2)

११  २१   ११२  ११  १२११,   २ १२ ११ २१  २ 

प्रभु गोद जिसकी वह यशोमति, दे रहे हरि मान हैं|

२२१   २२   २१११   ११, ११  १११  २२१   २   

गोपाल बैठे आधुनिक रथ, पर सहित सम्मान हैं |

११२   १११  ११ २१   २११  ११  १२२   २१ २  

मुरली अधर धर श्याम सुन्दर, जब लगाते तान हैं |

११११   १११  ११  २१२  २  ११ १२ ११२१  २    

सुनकर मधुर धुन भावना में, बह रहे रसखान हैं ||

--आलोक सीतापुरी

 

(3)

११   २१२   २  २१  २११,   २१  २११  २   १२

यह श्रावणी का नेह बंधन, पर्व सबको भा रहा,

११२१  ११२  ११  १२  ११,   २१ २११  २   १२

रसधार धरती पर बहा मधु , मास सावन जा रहा|

११११    १२   ११  २१  २२,  २१२   ११   २  १२

प्रमुदित सभी जन वृक्ष झूमें, बांसुरी रस छा रहा,

२२   १२  २    २१   २२,   ११  १२२  २   १२

रक्षा सभी को आज बाँधो, मन हमारा गा रहा||

विशेष :

उर्दू बहर से हरिगीतिका का मेल
जिस पंक्ति के आदि में दो लघु हों वहाँ ........
मुतफ़ायलुन् मुतफ़ायलुन् मुतफ़ायलुन् मुतफ़ायलुन्
जिस पंक्ति के आदि में गुरु हो वहाँ .........
मुस्तफ्यलुन् मुस्तफ्यलुन् मुस्तफ्यलुन् मुस्तफ्यलुन्

-- अम्बरीष श्रीवास्तव

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Replies to This Discussion

अम्बरीश जी, 

धन्यवाद, हरिगीतिका के बारे में महत्वपूर्ण जानकारी के लिये, आपने उदाहरण दे करके समझाया वह सबके लिये लाभकारी है  
सुरिन्दर रत्ती - मुंबई 

भाई सुरिंदर रत्ती जी , इसे पसंद करने के लिए हार्दिक धन्यवाद मित्र !

मित्र अम्बरीश जी

भारतीय छंद विधा पर नवीनतम जानकारी दे कर आप हम सभी कृतार्थ कर रहे हैं ...यह भारतीय साहित्य की बहुत बड़ी सेवा है ...सादर

आदरणीय डॉ० त्रिपाठी जी ,

आपसे सराहना पाकर मनोबल में वृद्धि हुई है | सादर ....

हरिगीतिका छंद पर इस आलेख के लिये आपका साधुवाद, आदरणीय अम्बरीषभाईजी.  बहुत गहराई से आपने तथ्य साझा किये हैं.

इस छंद पर हमने भी प्रयास किया है. उस प्रयास का लिंक साझा कर रहा हूँ ताकि नये सदस्य/सुधीजन उसका मुल्यांकन कर सके.

http://openbooksonline.com/profiles/blogs/5170231:BlogPost:157224

सादर

आदरणीय भाई सौरभ जी, सराहना के लिए हार्दिक धन्यवाद ! सादर

भाई नीरज जी ,  इसे पसंद करने के लिए धन्यवाद|

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