दोस्तो श्री बांके बिहारी मंदिर से बाहर आकर मंदिर देखने का सारा नशा काफूर हो चुका था इसलिए निधिवन जाने का प्रोग्राम रद्द कर दिया ,जिसका जिक्र मैं पहले भाग में कर चुकी हूँ | दोबारा से इच्छा शक्ति को जगाने के लिए हमने वहीँ एक दुकान पर टिक्की ,पकौड़े ,लस्सी वगेरह ली ,जो स्वादहीन थी ,बंदरों से बचते हुए उसे निगला और दोबारा से उस संकरी गली से निकल कर हम बंदरों से बचते हुए ट्रैवलर तक पहुंचे | बस थोड़ी दूरी पर ही था इस्कान मंदिर ,जो कृष्ण बलराम मंदिर के नाम से भी जाना जाता है ,इसे आप भारतीय और पाश्चात्य सभ्यता का मिश्रण कह सकते हैं |
इस्कान मंदिर वृन्दावन
इस्कान या कृष्ण भावनामृत संघ International Society for Krishna consciousness (ISKCON) इस मंदिर को 'हरे कृष्ण आन्दोलन' के नाम से भी जाना जाता है | इसे 1966 में भक्तिवेदांत स्वामी श्री प्रभुपाद ने न्यूयार्क में शुरु किया था अपने गुरु भक्ति सिद्दांत सरस्वती स्वामी के आदेश का पालन करते हुए उन्होंने संन्यास लेकर अपने अथक प्रयासों से पूरे विश्व में 10 वर्षों में ही 108 मंदिरों का निर्माण कर दिया ,जल्दी ही कृष्ण अमृत की निर्मल धारा विश्व के कोने कोने में बहने लगी | पूरी दुनिया में इतने अधिक अनुयायी होने का कारण यहाँ मिलने वाली असीम शान्ति है | भक्तिवेदांत स्वामी सरीला प्रभुपाद ने इस मंदिर का निर्माण 20 अप्रैल,1975 में रामनवमी वाले दिन किया |
स्वामी श्री प्रभुपाद
इस्कान मंदिर
यह मंदिर रमणरेती रोड पर स्थित है ,जैसा कि सबका मन नहीं था अंदर जाने का श्री बांके बिहारी के दर्शन के बाद हम कुछ लोग मंदिर में दाखिल हुए ,चप्पल बाहर ही छोड़ गए थे | इसमें प्रवेश करते ही मुख्य द्वार पर वेलकम सेंटर है ,जिसकी आप सहायता ले सकते हैं , वृन्दावन यात्रा में , टैक्सी वगेरह में ,वीजा के बारे सूचना,कहाँ ठहरा जाए | इसके लिए आपको एक सप्ताह पहले इनको मेल करना पड़ता है|
वेलकॉम सेंटर
मंदिर में प्रवेश करते ही कीर्तन का आंनंद आप अनुभव करने लगते हैं ,यहाँ की भव्य आरती देखने के लिए लोग पहले से एकत्र हो जाते हैं ,पर हमारे पास समय कम था इसलिए हम आरती तक नहीं रुके परन्तु हमने वहां के कीर्तन का पूरा आंनंद उठाया जिसकी कुछ तस्वीरें आप तक पहुंचाती हूँ | यहाँ सफ़ेद साड़ी में लिपटी माथे पर चन्दन तिलक लगाए बहुत सी विदेशी बहनें एवं भाई सफ़ेद कुरता पहने गले में तुलसी की माला पहने आपको दिख जाएंगे प्रभु कीर्तन का आनंद लेते हुए|
यहाँ पर एक गिफ्ट शॉप है यहाँ से आप अंतर्राष्ट्रीय साहित्य ले सकते हैं ,यह मंदिर परिक्रमा के बाएँ तरफ है इसके साथ ही सूचना केंद्र है | यहाँ से सात मिनट की दूरी पर गौशाला है, जिसका निर्माण 1976 में किया गया था 10 गायें के साथ अब इनकी संख्या 400 के लगभग है |
यहाँ पर गुरुकुल स्कूल है ,यहाँ देश विदेश से छात्र शिक्षा दीक्षा लेने आते हैं , भव्य प्रसादम हॉल, सरीला प्रभुपाद संग्रहालय है जो इसकी शान में चार चाँद लगाते हैं| इसके दर्शन करने के बाद और कीर्तन का आनंद लेकर हम जल्दी से बाहर आ गए, क्योंकि प्रेम मंदिर का फव्वारा शो देखने के लिए सब उत्सुक थे |
निधिवन
कृष्ण जी कि रासलीला स्थली के रूप में जानी जाती है जैसे कि पहले भाग में बता चुकी हूँ कि स्वामी हरिदास यहाँ कुटी बनाकर रहते थे और यहाँ ही बांके बिहारी जी को प्रकट किया गया था ,ऐसा मानना है कि राधा कृष्ण यहाँ रात को रास रचाते हैं ,इसलिए 8 बजे के बाद यहाँ जाने नहीं दिया जाता है |
निधिवन शिलालेख
निधिवन प्रवेश द्वार
गोविन्द देव मंदिर का 1590 ई : में आमेर के राजा भगवान् दास के पुत्र राजा मानसिंह ने बनवाया था |भारत के शानदार मंदिरों में इसकी गिनती होती थी ,जैसा कि औरंगजेब के इस उद्धरण से पता चलता है ,जब औरंगजेब एक बार टहल रहा था तो उसकी भव्यता देख उसने उसे तुडवाने का आदेश दे दिया ,इसलिए अब इसकी 7 में से 4 मंजिल ही बची हैं इसे बनवाने में लगभग 10 बरस लगे थे और एक करोड़ रुपए इस पर खर्च हुए थे
गोविन्द देव मंदिर
रंग नाथ जी मंदिर
श्री संप्रदाय के संस्थापक रामानुजाचार्य के विष्णुस्वरूप श्री रंग जी के नाम से मंदिर सेठ लख्मीचंद के भाई सेठ गोविन्ददास एवं सेठ राधाकृष्ण दास ने इसका निर्माण करवाया था |इसकी लागत 45 लाख रुपए आई थी इसके सामने 60 फीट ऊँचा ,20 फीट जमीं में धंसा हुआ एक तांबे का स्तम्भ खड़ा है इसका गोपुर काफी ऊँचा है यह मथुरा शैली का है इसमें भवन में एक भव्य रथ रखा है जो ब्रह्मुत्सव पर ही बाहर निकला जाता है
रंग नाथ जी मंदिर
रंग नाथ जी मंदिर
वृन्दावन यात्रा भाग 3.क्रमशः ....
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