For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

ईश्वर कहती तुमकों केशव

सृष्टि का तुम आधार बनो

शंका में मैं पड़ा हूँ गहरी, हो सके तो इसका समाधान करों।।

 

पोता हूँ मैं आपका पितामह

मुझसे यूं न मखौल करो

आपकी आज्ञा में जीता आया, सात्विकता में सदा आप जियो।।

 

कौरवों के कृत्यों की मैं बात न करता

क्यूँ पांडवों को छल में लिप्त करो   

कर्ण, द्रोण, जयद्रथ के वध को, क्यूँ-कैसे तुम धर्म कहो।।

 

निहत्थे द्रोण का वध सही पर

क्यूँ दुर्योधन की जंघा पर प्रहार यूँ हो

जयद्रथ वध क्यूँ छल से हुआ यूँ, कर्ण के प्राण निशस्त्र हरो||

 

पितामह इन प्रश्नों का उत्तर उनसे माँगो

उत्तरदायित्व इसका जिन पर हो

द्रोण, सुशासन के वध उत्तर भीम से मांगे, जयद्रथ, कर्ण का दोषी अर्जुन हो||

 

मैं तो ठहरा एक सारथी

भला मुझसे प्रश्न ऐसे क्यूँ करो  

रथ चलाना मेरा कर्तव्य, रथी की आज्ञा मेरा धर्म कहो||

 

छोड़ दो छलना अब दो केशव

इस युद्ध के कर्ता-धर्ता सदा आप रहो

आप ही दोगे मेरे प्रश्नों के उत्तर, चाहे एक अज्ञानी की तुम इसे जिद्द कहो।।

 

नियति विधि सब तेरे हाथ है

धर्म रक्षा में अवतार धरो

गलत को गलत ही कहना पड़ता, तुम न भगवान होकर पक्षपात करों।।

 

क्षमा करना पितामह मुझको

युद्ध में कहीं भी अधर्म न हो

निश्चित होता सब कुछ पहले, बस तुम तो इसके कर्ता रहो||

 

कुछ बुरा नहीं हुआ इस युद्ध में

अनैतिक कुछ भी इसमे हो

वही हुआ जो होना चाहिए, न इस युद्ध का कोई दोषी हो||

 

वर्तमान स्थिति-परिस्थिति सब निर्धारित करती  

कर्ता पर न इसका दोष मढ़ो

काल की सदा परिवर्तित होती, उसका धर्म की रक्षा मकसद हो।।

 

इतिहास से वर्तमान सदा सीख है लेता

अनुभव को उसका आधार सुनो  

समस्या का उन्मूलन कैसे होता, समाधान का अंकुर वही से चुनो||

 

त्रेता के नायक श्री राम कहलाते  

खलनायक रावण जैसा शिवभक्त भी हो

मंदोदरी, विभीषण जैसे धर्मात्मा रहते, सज्जन तारा-अंगद से संग में कहो।।

 

धर्म का ज्ञानी सभी कहलाते

कहाँ छल की आवश्यकता वहाँ मिलो  

पापी, कामी-क्रोधी रहे मेरे युग में, छल ही जिनकी नियति कहो||

 

नकारात्मकता न इतनी ज्यादा फैली

द्वापर में जितनी आप कहो

पापी, कामी, लोभी मिले उससे ज्यादा, त्रेता में न पापी इतने सुनो||

 

आशीष-श्राप संग वर से सुशोभित

अहंकार के न जिनकी अथाह कहो

एक से बढ़कर वीर-महावीर सब, छाया-माया, बल में असीमित जिनको कहों||

 

देव-दानव जिन्हे हरा न सकते

अधर्म रक्षक उनको कहो

धर्म कैसे फिर रक्षित होता, जब मृत्यु का विजेता उनको कहो||

 

धर्म-अधर्म एक चक्र के पहिए

आवश्यक संतुलन होना हो

एक का पलड़ा जो भारी होगा, प्रकृति का रथ भी डगमग हो||

 

छल न होता उनका वध भी कैसे

भीष्म, द्रोणा, कर्ण अजेय योद्धा जो

अधर्म में रक्षा में सारे खड़े जब, धर्म की रक्षा फिर कैसे हो||

 

दूत बना मैं शांति की खातिर

मेरा शारथी के रूप में चुनाव भी हो

गीता ज्ञान भी देना पड़ा, पर सुनने को कोई तैयार तो हो||

 

मार्ग न बचा जब मेरे सम्मुख

विकल्प युद्ध शेष कहो  

चुनाव सभी को करना पड़ता, काल भी उसके सहायक हो||

 

भार धरा बढ़ चुका इतना

असहनीय वसुंधरा की पीड़ा हो

विधर्मियों का विनाश मुझे करना पड़ता, मेरा अवतार इसी के कारण हो||

 

बड़ा कठोर कहती है मुझको जनता

पर कलयुग बहुत ही भयंकर हो

नर ही देव, दानव सब राक्षस होंगे, छल-बल मोह-माया सब उसमे समाहित हो||

 

उत्तर उसी भाषा में देना पड़ता

जिस परिस्थिति में वर्तमान हो

 विष को विष से काटना पड़ता, जब कोई शेष मार्ग न बचता हो||

 

हर युग में एक नायक होता

मूल्यांकन वक़्त की हर दशा करो 

स्थिति-परिस्थिति ही निर्धारित, नायक क्यूँकर उनका कैसा हो|| 

 

अर्थहीन हो जाती नैतिकता

जब सत्य-धर्म का समूल नाश जो हो

कठोर निर्णय भी लेने पड़ते, क्रूर शक्तियाँ जब आतंकित हो||

 

धर्म की विजय ही महत्तवपूर्ण होती

चाहे बलिदान ही उसका मूल्य हो

भविष्य का आधार वर्तमान है, धर्म को बचाना आवश्यक हो||

 

छोड़ नहीं सकते सब भाग्य भरोसे

कर्म तो सभी को करने हो

निर्धारित करते कर्म ही भविष्य, भाग्य के मूल में कर्म ही हो||

 

भाग्य के भरोसे जो छोड़ के बैठो

इससे बड़ी क्या मूर्खता हो

परिणाम को ध्यान करते कर्म जो, कर्म न अर्थपूर्ण कहलाते वो||

 

एक बात और पूछनी माधव

आपकी यदि मुझे आज्ञा हो

कई जन्म मुझे याद है केशव, कोई अपराध न जिनमे मेरे हो||

 

मिली क्यूँ मुझको ये शर-शैय्या यहाँ

जो पाप न मेरे पास में हो

आश्चर्यचकित मैं भ्रम में कृष्णा, शंका का मेरी समाधान करो||

 

सच है पितामह आप अपराधी नहीं

आप अपराध में शामिल न कई जन्म में हो

सारे जन्म आपको याद नहीं है, मैं समझाता गूढ तथ्य को||

 

शिकार करके लौटे रहे जब  

कर्केटा पक्षी रथ से आपके घायल हो

बाण से उठाकर उसे फैक दिया, तब झाड़ियाँ में जाकर फ़सता वो||

 

बहुत दिनों तक फसा रहा वो

आपको श्राप तभी दे जाता वो 

जीतने दिन तक मैं तड़पा यहाँ पर, कभी ऐसी दुर्गति तेरी हो||

 

वही श्राप यहाँ फलित हुआ है

आप आश्चर्यचकित न अचंभित हो

कर्मभूमि ये धर्मभूमि है, सभी का यहाँ पर निर्णय हो||

 

सुनकर पितामह कुछ शांत हो

मोक्ष की उनकी इच्छा हो

अब प्राण त्यागने की इच्छा रखते, पर कृष्ण उनके सम्मुख हो||

 

उत्तरायण का समय हो आया

सम्मुख कृष्णा हो

माघ का महीना पवित्र कहलाता, अष्टमी तिथि को भीष्म को मोक्ष की प्राप्ति हो||  

 

स्वरचित व मौलिक रचना

Views: 77

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity


सदस्य टीम प्रबंधन
Dr.Prachi Singh replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-176
"कहें अमावस पूर्णिमा, जिनके मन में प्रीत लिए प्रेम की चाँदनी, लिखें मिलन के गीतपूनम की रातें…"
24 minutes ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-176
"दोहावली***आती पूनम रात जब, मन में उमगे प्रीतकरे पूर्ण तब चाँदनी, मधुर मिलन की रीत।१।*चाहे…"
yesterday
Admin replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-176
"स्वागतम 🎉"
yesterday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' posted a blog post

सुखों को तराजू में मत तोल सिक्के-लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर'

१२२/१२२/१२२/१२२ * कथा निर्धनों की कभी बोल सिक्के सुखों को तराजू में मत तोल सिक्के।१। * महल…See More
Thursday
Admin posted discussions
Tuesday
Admin added a discussion to the group चित्र से काव्य तक
Thumbnail

'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 169

आदरणीय काव्य-रसिको !सादर अभिवादन !!  ’चित्र से काव्य तक’ छन्दोत्सव का यह एक सौ…See More
Monday
Nilesh Shevgaonkar commented on Nilesh Shevgaonkar's blog post ग़ज़ल नूर की - ताने बाने में उलझा है जल्दी पगला जाएगा
"धन्यवाद आ. लक्ष्मण जी "
Jul 7
Nilesh Shevgaonkar commented on Nilesh Shevgaonkar's blog post ग़ज़ल नूर की - मुक़ाबिल ज़ुल्म के लश्कर खड़े हैं
"धन्यवाद आ. लक्ष्मण जी "
Jul 7
Chetan Prakash commented on लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर''s blog post घाव भले भर पीर न कोई मरने दे - लक्ष्मण धामी "मुसाफिर"
"खूबसूरत ग़ज़ल हुई, बह्र भी दी जानी चाहिए थी। ' बेदम' काफ़िया , शे'र ( 6 ) और  (…"
Jul 6
Chetan Prakash commented on PHOOL SINGH's blog post यथार्थवाद और जीवन
"अध्ययन करने के पश्चात स्पष्ट दृष्टिगोचर होता है, उद्देश्य को प्राप्त कर ने में यद्यपि लेखक सफल…"
Jul 6

सदस्य टीम प्रबंधन
Dr.Prachi Singh commented on PHOOL SINGH's blog post यथार्थवाद और जीवन
"सुविचारित सुंदर आलेख "
Jul 5

सदस्य टीम प्रबंधन
Dr.Prachi Singh commented on लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर''s blog post घाव भले भर पीर न कोई मरने दे - लक्ष्मण धामी "मुसाफिर"
"बहुत सुंदर ग़ज़ल ... सभी अशआर अच्छे हैं और रदीफ़ भी बेहद सुंदर  बधाई सृजन पर "
Jul 5

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service