गुरु व्रह्म्मा गुरु विष्णु गुरु देवो महेश्वरा ।
गुरु साक्षात् परम व्र्हम्म तसमई श्री गुरवे नम:
अर्थात गुरु को व्रह्मा कहा गया है की जिस प्रकार व्रह्मा सकल स्रष्टि को जन्म देता है उसी प्रकार गुरु अपने शिष्य को ग्रहण करके उसमे संस्कारों का प्रत्यारोपण करके उसको नया जन्म देता है,उसे द्विज (द्वि मतलब दूसरा और ज मतलब जन्म ) बनाता है । इस लिए गुरु को व्रह्मा कहा गया है । और जिस प्रकार स्रष्टि का पालन भगवान् विष्णु करते है ।उसी प्रकार गुरु अपने शिष्य का समस्त भार अपने ऊपर ले लेता है इस लिए गुरु को विष्णु कहा गया है । और भगवान् शंकर इस स्रष्टि का विनाश करते है और उन्ही की भाति गुरु अपने शिष्य में निहित समस्त विकारों का विनाश कर देता है एक प्रकार से वह अपने शिष्य के वर्तमान स्वरूप को समूल नष्ट करके उसका पुनः निर्माण कर देता है इस लिए गुरु को महेश या शिव कहा गया है ।और एक पूर्ण सतगुरु ही किसी प्राणी को अबगमन के चक्कर से मुक्त कर सकता है इसलिए गुरु को साक्षात् पार व्रह्म परमेश्वर कहा गया है ।
इसको पड़ते ही मन में यह विचार आया कि लिखने वाले ने यह क्या लिख दिया । क्या सचमुच गुरु ऐसा होता है कि उसकी तुलना साक्षात् पार व्रह्म परमेश्वर से कर दी जाये मन ने कहा कि नहीं ये सच नहीं हो सकता तो अपनी नज़र को इधर-उधर दौड़ाया तो पाया कि कबीर दास जी तो यहाँ तक लिख गए है कि :-
सात समुद्र कि मसि करूँ लेखन सब वनराय ।
सब धरती कागज़ करूँ गुरु गुण लिखा न जाये ।
लो भाई यह तो हद हो गयी कि गुरु में वह गुण भरे हुए है कि उन्हें लिखा ही नहीं जा सकता है । थोडा सा और गौर किया तो पाया कि नहीं कबीर दास जी तो गुरु को परमेश्वर से भी बड़ा वता रहें है ।
गुरु गोविन्द दोउ खड़े काके लागों पायें ।
वलिहारी गुरु आपनेगोविन्द दियो मिलाय ।
जब इस दोहे को ध्यान पूर्वक पढ़ा तो समहज आया की गुरु को इतना महान क्यों कहा गया है । सचमुच यदि
गुरु इश्वर से मिला सकता है तो वोह इश्वर से बड़ा ही हुआ । और फिर ध्यान आया की कहीं पर पढ़ा है कि :-
अखंड मंडला कारम व्याप्तं एन चराचरम ।
तत्पदं दर्शितं येन तसमई श्री गुरवे नम:
अर्थात सर्व व्यापी इश्वर को तत्व रूप में अंतर्घट में ही प्रत्यक्ष रूप से दिखा देने वाला ही पूर्ण सतगुरु होता है और हमें इश्वर दर्शन के लिए उसी पूर्ण सतगुरु कि शरण में जाना चाहिए । इस विषय में वहुत सारे लोग कहते हैं कि हम तो नित्य मंदिर जाते हैं और कई लोग कहते हैं कि हम मस्जिद, गुरुद्वारा और गिरजा घर जाते हैं तो फिर हमे गुरु के पास जाने कि क्या जरूरत है तो इस विषय में हमारे ग्रुन्थ कहते है कि :-
राम कृष्ण से को बड़े तिंहू ने गुरु कीन्ह ।
तीन लोक के नायका गुरु आगे आधीन ।
अर्थात जब इश्वर चाहें खुद ही क्यों न धरती पर आये तो वोह खुद भी किसी पूर्ण गुरु के पास जाता है क्यों कि वह आपने आचरण के द्वारा मानव के लिए उद्धरण प्रस्तुत करता है कि आप इसी रास्ते पर चलो। किन्तु मानव राम -राम कृष्ण-कृष्ण तो करता है मगार जो राम या कृष्ण ने अपने जीवन में किया वह नहीं करता है।अता : हमें आवश्यकता है ऐसे किसी पूर्ण सत गुरु कि जो हमारे प्रज्ञा चक्षु खोल दे । हमारे दिव्य नेत्र खोल कर हमें हमारे अंतर्घट में ही परमात्मा का साक्षात्कार करा दे ।
बंधुओ इस व्याख्या को हम आगे भी पड़ेंगे आप अपनी टिप्पड़ी लिखे ताकि हमें इस लेख को आगे जारी रखने में मदद मिले
धन्यबाद ,
आपका
मुकेश
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मुकेश जी आप आगे charcha जारी rake
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