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तेरे चरणों की रज महान 

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तेरे    चरणों    की रज महान,

मैया   करती   जगत   कल्याण

 

महा   मूरख  और अज्ञानी

तेरी    महिमा   मैं   न   जानी 

कर   भक्तों   का   बेड़ा   पार   मैं   हूँ  बालक     बड़ा  नादान

तेरे   चरणों   की     रज महान, 

मैया    करती   जगत      कल्याण 

 

भटक रहा था मैं जब दर-दर  

न कोई साथी न कोई घर 

फिर आ पहुंचा तेरे द्वार शरण ले तूने किया कल्याण

तेरे चरणों की रज महान 

मैया करती जगत कल्याण  

 

था मैं पापी धरम न माना  

कोई अच्छा करम  न ठाना 

मिला सहारा मैया तेरा जीवन सफल हुआ निष्काम

तेरे चरणों की रज महान 

मैया करती जगत कल्याण 

   

लूटा मैंने जगत-खजाना  

यहीं रह जाता  ये न जाना

उजड़ते देखा घर महलों को मिला मुझको जीवन-ज्ञान 

तेरे चरणों की रज महान 

मैया करती जगत कल्याण

 

जबसे तेरी शरण में आया

भूला मेरा अपना पराया 

दिखती सब में तेरी सृष्टि दुर्लभ मानव जीवन महान 

तेरे चरणों की रज महान 

मैया करती जगत कल्याण

 

था जीवन में घोर अँधेरा

सूझे राह न साँझ-सवेरा 

ज्ञानदीप की ज्योति जला माँ दूर कर दे हर अज्ञान 

तेरे चरणों की रज महान 

मैया करती जगत कल्याण

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Replies to This Discussion

आदरणीय प्रदीप जी ,सादर 

जगत की माँ के प्रति सुंदर भाव लिए आपकी रचना को मेरा नमन 

आभार आपका , आदरणीया रेखा जी, सादर 

waah waah jai ho maa bhawani ki

जय हो.

आभार आपका , धर्म किनारे है. ढूंढ लिया. 

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