ग़ज़ल की विधा में रदीफ़ काफि़या तक बात तो फिर भी आसानी से समझ में आ जाती है, लेकिन ग़ज़ल के तीन आधार तत्वों में तीसरा तत्व है बह्र जिसे मीटर भी कहा जा सकता है। आप चाहें तो इसे लय भी कह सकते हैं मात्रिक-क्रम भी कह सकते हैं।
रदीफ़ और काफि़या की तरह ही किसी भी ग़ज़ल की बह्र मत्ले के शेर में निर्धारित की जाती है और रदीफ़ काफिया की तरह ही मत्ले में निर्धारित बह्र का पालन पूरी ग़ज़ल में आवश्यक होता है। प्रारंभिक जानकारी के लिये इतना जानना पर्याप्त होगा कि बह्र अपने आप में एकाधिक रुक्न (लय-खण्ड) का समूह होती है। सरलता के लिये हम लघु को 1 तथा दीर्घ को 2 से दर्शाते हैं।
बह्र का आधार होते हैं अरकान (रुक्न का बहुवचन) जो मात्रिक क्रम के समूह होते हैं। लघु और दीर्घ मात्राओं के संयोजन से बनने वाले मूल व खमासी अर्कान निम्नानुसार हैं।
रुकन स्वरूप |
मात्रिक वज़्न |
रुकन नाम |
मात्रा क्रम |
मूल रुक्न |
7 |
फायलातुन् |
2122 |
मूल रुक्न |
7 |
मुस्तफ्यलुन् |
2212 |
मूल रुक्न |
7 |
मफाईलुन् |
1222 |
मूल रुक्न |
7 |
मुतफायलुन् |
11212 |
मूल रुक्न |
7 |
मफायलतुन् |
12112 |
मूल रुक्न |
7 |
मफ्ऊलात |
2221 |
खमासी रुक्न |
5 |
फऊलुन् |
122 |
खमासी रुक्न |
5 |
फायलुन् |
212 |
इन अर्कान से 7 मुफ़रद बनती हैं (ऐसी बह्र जिसमें एक ही रुक्न की आवृत्ति होती है) बह्रों का विवरण निम्नानुसार है:
फायलातुन् (2122) की आवृत्ति से बह्र-ए-रमल
मुस्तफ्यलुन् (2212) की आवृत्ति से बह्र-ए-रजज
मफाईलुन् (1222) की आवृत्ति से बह्र-ए-हजज
मुतफायलुन् (11212) की आवृत्ति से बह्र-ए-कामिल
मफायलतुन् (12112) की आवृत्ति से बह्र-ए-वाफिर
फऊलुन् (122) की आवृत्ति से बह्र-ए-मुतकारिब
फायलुन् (212) की आवृत्ति से बह्र-ए-मुतदारिक
अगर एक पंक्ति में कुल रुक्न संख्या 4 है तो बह्र मुसम्मन्, 3 है तो मुसद्दस्, 2 है तो मुरब्बा कहलायेगी (एक पंक्ति में केवल एक रुक्न हो तो मुसना कहते हैं लेकिन यह केवल प्रायोगिक है व्यवहार में कम ही देखी जाती है)।
अगर एक ही रुक्न की आवृत्ति हो तो बह्र सालिम कहलायेगी। दोगुने अरकान होने पर बह्र मुदाइफ़ कहलाती है।
यहॉं मैं बशीर बद्र साहब के एक मत्ले का उदाहरण देने का लोभ संवरण नहीं कर पा रहा हूँ जो मुदाइफ़ स्वरूप को स्पष्ट करती है। इसमें प्रत्येक पंक्ति में फायलुन (212) की आवृत्ति 8 है:
नारियल के दरख़्तों की पागल हवा खुल गये बादबाँ लौट जा लौट जा
साँवली सरज़मीं पर मैं अगले बरस फूल खिलने से पहले ही आ जाऊँगा।
पूरी ग़ज़ल पढ़ने के लिये कविता कोष पर या डायमंड पाकेट बुक्स से प्रकाशित पुस्तक 'उजालों की परियॉं' देखें। यह पुस्तक गूगल बुक्स पर भी ऑनलाईन उपलब्ध है और कहन सीखने के इच्छुक हर शाइर के काम की है।
अब तक कही बात को एक उदाहरण से समझने की कोशिश करते हैं:
तुम समन्दर हो न पाये, हम न दरिया हो सके
कोशिशें तो कीं बहुत पर, हम न तुम में खो सके।
उपर दिया गया शेर मत्ले का शेर है जिसमें दोनों पंक्तियों के अंत में आ रहा 'सके' रदीफ़ है जो मत्ले की दोनों पंक्तियों में आया है लेकिन शेष अशआर में केवल दूसरी पंक्ति में आयेगा। इस शेर की पहली पंक्ति में 'हो' तथा दूसरी पंक्ति में 'खो' को देखें तो यह समझ में आता है कि दोनों पंक्तियों में 'ओ' काफि़या है।
रदीफ़ और काफिया देखने से स्पष्ट है कि यह शेर केवल उन बह्रों में ही फिट हो सकेगा जिनके अंत में 212 मात्रिक वज़्न आता हो। मैनें इसके लिये जो बह्र ली है वह बह्रे रमल की मुजाहिफ शक्ल मुसम्मन् महजूफ है जिसके अरकान 'फायलातुन, फायलातुन, फायलातुन, फायलुन' हैं।
फ़ा |
य |
ला |
तुन |
फ़ा |
य |
ला |
तुन |
फ़ा |
य |
ला |
तुन |
फ़ा |
य |
लुन |
2 |
1 |
2 |
2 |
2 |
1 |
2 |
2 |
2 |
1 |
2 |
2 |
2 |
1 |
2 |
तुम |
स |
मन् |
दर |
हो |
न |
पा |
ये |
हम |
न |
दरि |
या |
हो |
स |
के |
को |
शि |
शें |
तो |
कीं |
ब |
हुत |
पर |
हम |
न |
तुम |
में |
खो |
स |
के |
इसमें दो अरकान आये हैं फायलातुन और फायलुन जिनका मात्रिक क्रम क्रमश: 2122 और 212 है। अभी इससे अधिक विवरण में जाना ठीक न होगा कि तुन और लुन के लिये 2 का वज़्न क्यों लिया गया है। 'फा' का 2, 'य' का 1 और 'ला' का 2 लिया गया है। यहॉं 2 का अर्थ दीर्घ और 1 का अर्थ लघु है। आरंभिक ज्ञान के लिये इतना जानना पर्याप्त होगा कि जहॉं 2 हो वहॉं दो लघु भी लिये जा सकते हैं।
बस इसे गुनगुनाईये और अगर आपने इसे गुनगुना लिया तो समझिये आपका पहला कदम ग़ज़ल लिखने की राह पर पड़ गया।
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आदरणीय, आपने बहुत अच्छा बताया है।
सर.. ये तो बहुत ही बढियां है .. बह्र पर इतनी स्पष्ट जानकारी कोई नहीं देता
आदरणीय " तिलक जी" यह सब तो मेरे सर के ऊपर से गुजर गया....जैसे रुक्न , मुसम्मन, मुसद्दस, मुरब्बा जैसे शब्दों को समझना मेरे लिए आसान नहीं है कृपया कोई और तरीका है यह सब सीखने का
बहुत अच्छी जानकारी
वाह , बेहतरीन जानकारी।
वाह कितने सहज ढंग से समझाया गया है।
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