दोख हम केकरा देबै इ तोहीं कह
आब किनका जरे जीबै इ तोहीं कह
नजरि भरि देखलहुँ हुनका अन्हारेमे
आब डिबिया किए लेबै इ तोहीं कह
गुजरि जाएत बिच्चे बाट नै देखत
मीत की एहने हेतै इ तोहीं कह
नै छलै ओकरा लग प्रेम की करु
असगरें हम कते देबै इ तोहीं कह
अनचिन्हारे तँ छै संसारमे ओ सभ
केकरा संग हम जेबै इ तोहीं कह
फाइलातुन-मफाईलुन-मफाईलुन
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अपनेक ई गजल बड्ड नीक अछि गुरूजी
नै छलै ओकरा लग प्रेम की करु
असगरें हम कते देबै इ तोहीं कह
अय-हय-हय ! भाई अन्चिन्हारजी, बाह रे भाव आ बाह रे कहनाएम ! बुझियौ त, मोन टा मुग्ध भ गेल.
मुदा विधा क लिहाज़सँ प्रस्तुत ग़ज़लक मतलाक बाद दुसरका शेर ’गुजरि जायेत बिच्चे..’ में कनियै सुधारक आवश्यकता अछि. एइ ठाम क़ाफ़िया निर्धारण दोषयुक्त प्रतीत भ रहल अछि. कृपा कए अहाँ देख लेब.
धन्यवाद कहि रहल छी.
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