माँ शारदे वरदान दिअ
हमरो हृदयमे ज्ञान दिअ
हरि ली सभक अन्हार हम
एहन इजोतक दान दिअ
सुनि दोख हम कखनो अपन
दुख नै हुए ओ कान दिअ
गाबी अहीँकेँ गुण सगर
सुर कन्ठ एहन तान दिअ
बुझि पुत्र ‘मनु’केँ माँ अपन
कनिको हृदयमे स्थान दिअ
(बहरे रजज, मात्रा क्रम - २२१२-२२१२)
जगदानन्द झा ‘मनु’
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भाई जगदानन्द जी, अहाँक मैथिली ग़ज़ल सँ मन दोबर भ गेल. हम मैथिलिये भाषा में टिप्पणी कै रहल छी. भाषागत अशुद्धता लेल अग्रिम क्षमा.
पहिलुक त पइग बात ई जे अहाँ मिसरा के वज़्न साझा केलौं, जकरा स ग़ज़ल बुझबा में सहजता भ रहल अछि. हम अहाँ से अइ घड़ी एत्बे निवेदन करब जे ग़ज़ल पर अभ्यासक समय शब्द केर उच्चारणक व्यवस्था बिसरनाइ उचित नै.
हम साझा क रहल छी, कनिये देखियौ -
दिअ उच्चारणक अनुसार वस्तुतः दिअऽ होइयै, तैं दुआरे एकर वज़्न भेल १ २.
हमर = ह मर १२
हृदय = हृ दय १२
अन्हार = अ न्हा र १ २ १ (यदि अहाँ अन्हारक उच्चारण अन् हार करि रहल छी त वज़्न हेत २२ १, किन्तु एइ शब्दक मान्य उचारण १२१ अछि)
अहीँक = अ हीँ क १ २ १
सगर = स गर १ २
अब अहीँक के क आ सगरक स जुइट २ वज़्न नै भ सकैये.
अपन = अ पन १ २
हमर हार्दिक निवेदन अछि जे उपरोक्त वज़्न के अनुसार ग़ज़लक मिसरा पुनः देखल जाय.
आदरणीय Saurabh Pandey जी, अपनेक टिप्पणी पाबि हम धन्य भेलहुँ | आशा अछि आगूओ एनाहिते अपनेक आशीर्वाद भेटैत रहे |
भाई जगदानन्द ’मनु’ जी, पहिने उपरोक्त गज़लक दुरुस्त केल जाय.. तकरा से हमरो ई सुधि परत जे अहाँ ग़ज़लक व्यवस्था बूइझ रहल छी.
सधन्यवाद
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