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आदरणीय काव्य-रसिको !

सादर अभिवादन !!

  

’चित्र से काव्य तक छन्दोत्सव का यह एक सौ पचपनवाँ आयोजन है.   

 

इस बार के आयोजन के लिए सहभागियों के अनुरोध पर अभी तक आम हो चले चलन से इतर रचना-कर्म हेतु एक विशेष छंद साझा किया जा रहा है। 

इस बार के दो छंद हैं -  रोला छंद   

आयोजन हेतु निर्धारित तिथियाँ - 

20 अप्रैल’ 24 दिन शनिवार से

21 अप्रैल’ 24 दिन रविवार तक

केवल मौलिक एवं अप्रकाशित रचनाएँ ही स्वीकार की जाएँगीं.  

रोला छंद के मूलभूत नियमों के लिए यहाँ क्लिक करें

जैसा कि विदित है, कई-एक छंद के विधानों की मूलभूत जानकारियाँ इसी पटल के  भारतीय छन्द विधान समूह में मिल सकती हैं.

*********************************

आयोजन सम्बन्धी नोट 

फिलहाल Reply Box बंद रहेगा जो आयोजन हेतु निर्धारित तिथियाँ -

20 अप्रैल’ 24 दिन शनिवार से 21 अप्रैल’ 24 दिन रविवार तक

रचनाएँ तथा टिप्पणियाँ प्रस्तुत की जा सकती हैं। 

अति आवश्यक सूचना :

  1. रचना केवल स्वयं के प्रोफाइल से ही पोस्ट करें, अन्य सदस्य की रचना किसी और सदस्य द्वारा पोस्ट नहीं की जाएगी.
  2. नियमों के विरुद्ध, विषय से भटकी हुई तथा अस्तरीय प्रस्तुति को बिना कोई कारण बताये तथा बिना कोई पूर्व सूचना दिए हटाया जा सकता है. यह अधिकार प्रबंधन-समिति के सदस्यों के पास सुरक्षित रहेगा, जिस पर कोई बहस नहीं की जाएगी.
  3. सदस्यगण संशोधन हेतु अनुरोध  करें.
  4. अपने पोस्ट या अपनी टिप्पणी को सदस्य स्वयं ही किसी हालत में डिलिट न करें. 
  5. आयोजनों के वातावरण को टिप्पणियों के माध्यम से समरस बनाये रखना उचित है. लेकिन बातचीत में असंयमित तथ्य न आ पायें इसके प्रति संवेदनशीलता आपेक्षित है.
  6. इस तथ्य पर ध्यान रहे कि स्माइली आदि का असंयमित अथवा अव्यावहारिक प्रयोग तथा बिना अर्थ के पोस्ट आयोजन के स्तर को हल्का करते हैं.
  7. रचनाओं पर टिप्पणियाँ यथासंभव देवनागरी फाण्ट में ही करें. 
  8. अनावश्यक रूप से रोमन फाण्ट का उपयोग  करें. रोमन फ़ॉण्ट में टिप्पणियाँ करना एक ऐसा रास्ता है जो अन्य कोई उपाय न रहने पर ही अपनाया जाय.
  9. रचनाओं को लेफ़्ट अलाइंड रखते हुए नॉन-बोल्ड टेक्स्ट में ही पोस्ट करें. अन्यथा आगे संकलन के क्रम में संग्रहकर्ता को बहुत ही दिक्कतों का सामना करना पड़ता है.

छंदोत्सव के सम्बन्ध मे किसी तरह की जानकारी हेतु नीचे दिये लिंक पर पूछताछ की जा सकती है ...


"ओबीओ चित्र से काव्य तक छंदोत्सव" के सम्बन्ध मे पूछताछ

"ओबीओ चित्र से काव्य तक छंदोत्सव" के पिछ्ले अंकों को यहाँ पढ़ें ...

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मंच संचालक
सौरभ पाण्डेय
(सदस्य प्रबंधन समूह)
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Replies to This Discussion

वाह वाह वाह !! 

आदरणीय मिथिलेश जी, आपने एकांगी, नीरस किंतु अपरिहार्यवत वर्तमान को शृंगारिक-हास्य में परिवर्तित कर अत्यंत ही रोचक गीत प्रस्तुत किया है।

वाह वाह  !! 

तुम हो मेरे साथ, 

पास जब चौका बासन.. .. इस पंक्ति को मैं कुछ ऐसे पढ़ रहा हूँ -

आती तुम तब याद 

खड़कते चौका-बासन... 

करते हैं आवाज

सरौता कलछी मथनी।

होता है ये भान

तुम्हारी पायल नथनी।

बर्तन की झंकार

भरे मेरा खालीपन.. .. क्या बात है !!

इन पंक्तियों के लिए विशेष बधाइयाँ स्वीकार करें। 

मन प्रसन्न कर दिया आपकी प्रस्तुति ने। 

शुभातिशुभ

आदरणीय सौरभ पांडेय सर, बहुत दिनों बाद छंद का प्रयास किया है। आपको यह प्रयास पसंद आया, जानकर खुशी हुई। आपके मार्गदर्शन अनुसार गीत में और प्रयास करता हूं। इस प्रस्तुति को मान देने के लिए आपका हार्दिक आभार। सादर।

हार्दिक धन्यवाद, आदरणीय। 

आदरणीय मिथलेश वामनकर जी, रोला छंद में सुंदर प्रस्तुति के लिए बधाई स्वीकार करें। सादर।

आदरणीय दयाराम जी मेरे प्रयास को मान देने के लिए बहुत बहुत धन्यवाद। हार्दिक आभार। सादर।

बर्तन की झंकार

भरे मेरा खालीपन// वाह..चित्र को शाब्दिक करते इस सुन्दर गीत के लिए बधाई स्वीकार करें आदरणीय मिथिलेश जी

आदरणीया प्रतिभा जी, मेरे प्रयास को मान देने के लिए हार्दिक आभार.. बहुत बहुत धन्यवाद.. सादर 

रोला छंद 
______

पुत्र न पूछे हाल, करे क्या बाप बिचारा।

स्वयं करो सब काम,नहीं दूजा है चारा।।
रोटी सिकती एक,दूसरी बेल रहा है।
बैरी होता पेट ,किसी ने सत्य कहा है।।
____
बाबा अस्सी पार,शिकायत कभी न करता।
खुद से करता बात, नहीं है कल से डरता।।
कभी कभी पर याद,बड़ी आती घरवाली।
देती थी जो रोज,गर्म भोजन की थाली।।
_____
रोटी बेले गोल, सुघड़ जैसे हो नारी। 
पत्नी पिछले साल,रूठ कर स्वर्ग सिधारी ।।
ज़्यादा देता टीस,दर्द जो बिखरा कोई।
आटे जैसा गूँध, बना लो छोटी लोई।
______
मौलिक व अप्रकाशित 
मौलिक व अप्रकाशित 

 नमन, सु श्री प्रतिभा पाण्डे जी, सुन्दर रोला छंद रचे आपने, बधाई !
किन्तु , बिचारा शब्द , कदाचित् व्याकरण सम्मत नहीं है।
सादर !

आदरणीय चेतन प्रकाश जी

छंदों की प्रशंसा के लिए हार्दिक आभार 

आदरणीया प्रतिभा जी, आपकी रचनाओं में चित्रानुरूप संवेदना उभर कर शाब्दिक हुई है। इस तरह का वर्तमान वह भी इस आयु में, यह सोच कर ही रीढ़ जम जा रही है। 

कभी कभी पर याद,बड़ी आती घरवाली।
देती थी जो रोज,गर्म भोजन की थाली।। .. मनोविज्ञान संवेदित करती इन पंक्तियों के लिए विशेष बधाई। 
शुभ-शुभ

आदरणीय प्रतिभा पांडे जी, चित्रानुकूल सुंदर प्रस्तुति के लिए बधाई स्वीकार करें। सादर।

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