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ओबीओ ’चित्र से काव्य तक’ छंदोत्सव" अंक- 33 की समस्त एवं चिह्नित रचनाएँ

सुधिजनो !

दिनांक 22 दिसम्बर 2013 को सम्पन्न हुए "ओबीओ चित्र से काव्य तक छंदोत्सव" अंक - 33 की समस्त प्रविष्टियाँ संकलित कर ली गयी है.

संकलन का यह अति दुरूह कार्य इस मंच के ऊर्जस्वी, लेखकीय बहुमुखी प्रतिभा के धनी, अपार संभावनापूरित, साहित्यानुरागी एवं अभ्यासी-रचनाकार भाई राम शिरोमणि के अथक सहयोग के बिना संभव ही न हो पाता.

उनके इस उदार और अपरिहार्य सहयोग के लिए व्यक्तिगत तौर पर मैं ही नहीं, यह पूरा मंच आभारी है. इस बार हम रचना संकलन सम्बन्धी किसी भी सूचना के लिए भाई राम शिरोमणि के प्रयासों पर ही पूर्ण रूप से निर्भर हैं.

कहा भी गया भी है, जल के एक-एक बूँद का सहयोग विशाल समुद्र की निर्मिती का कारण हो सकता है.

भाई राम शिरोमणि को हार्दिक धन्यवाद तथा अनेकानेक शुभकामनाएँ. 


वस्तुतः इस मंच की अवधारणा ही बूँद-बूँद सहयोग के दर्शन पर आधारित है, जहाँ सतत सीखना और सीखी हुई बातों को परस्पर साझा करना, अर्थात, सिखाना, मूल व्यवहार है.


छंदोत्सव के इस दो दिवसीय आयोजन में 16 रचनाकारों से निम्नलिखित -
दोहा छंद
कुण्डलिया छंद
मत्तगयंद सवैया छंद
वीर या आल्हा छंद
मनहरण घनाक्षरी
कामरूप छंद

जैसे छंदो में यथोचित रचनाएँ आयीं, जिनसे छंदोत्सव समृद्ध हुआ ! कहना न होगा, दोहा तथा कुण्डलिया इस मंच के दुलारे छंद हैं.

पुनः निवेदित करते हुए प्रसन्नता हो रही है कि मंच के आयोजनों का मूल उद्येश्य ही यही है कि इन्हें रचनाकर्म के प्रस्तुतीकरण के साथ-साथ छंद-कविताई हेतु कार्यशाला की तरह लिया जाय. इस हेतु कई रचनाकार सकारात्मक रूप से आग्रही भी दीखते हैं.

इस बार के आयोजन की मुख्य बात रही उन सदस्यों द्वारा उत्साहपूर्वक अपनी उपस्थिति दर्ज़ कराना जो अबतक शास्त्रीय छंदों पर कलमगोई नहीं करते थे. पहली बार उनका इस तरह से किसी छंद आधारित ऑनलाइन आयोजन में शिरकत करना सभी सदस्यों के लिए आश्वस्ति का कारण बना है. विश्वास है यह उत्साह बना रहेगा.

नये रचनाकारों में भाई शिज्जूजी, आदरणीय गिरिराजजी, आदरणीय अखिलेश कृष्ण श्रीवास्तवजी, भाई विनोद कुमार पाण्डेयजी, भाई सचिन देव के नाम प्रमुख रूप से उभर कर आये हैं. भाई अरुन शर्मा 'अनन्त' जी, आदरणीया राजेश कुमारीजी, भाई रमेश कुमार चौहानजी, आदर्णीय अशोक कुमार रक्तालेजी, आदरणीय सुशील जोशीजी, भाई गणेशजी, डॉ. प्राचीजी, आदरणीय अविनाश बागड़ेजी, आदरणीय लक्ष्मण प्रसादजी आदि की प्रस्तुतियों से यह बात स्पष्ट हो गयी कि छंद रचना के प्रति आग्रह इन सभी के मन में कितना स्थायी भाव बना चुका है.

लेकिन मैं इस बार इस आयोजन की मुख्य सु-घटना इस ई-पत्रिका-सह-मंच के प्रधान सम्पादक आदरणीय योगराजभाईसाहब की मुखर प्रतिभागिता को मानता हूँ. एक अरसे बाद रचना दर रचना प्रतिक्रिया छंदों के माध्यम से आपने अपनी मज़ूदग़ी जतायी.

परन्तु, अपनी समस्त कार्यालयी व्यस्तता के बावज़ूद जिस तरह से आदरणीय अरुण निगमजी ने न केवल अपनी एक समृद्ध रचना के माध्यम से, बल्कि हर प्रस्तुति पर प्रतिक्रिया छंद के माध्यम से जिस तरह से अपनी प्रतिभागिता बनायी, वह अत्यंत श्लाघनीय है. अपने आप में यह बहुत सार्थक प्रमाण है कि दीर्घकालीन अभ्यास और सतत संलग्नता से कोई प्रयासकर्ता क्या कुछ पा सकता है !

लेकिन इसके साथ यह भी अवश्य साझा करना समीचीन होगा कि इस बार कई उन सदस्यों की कमी खली जिनकी रचनाओं और सक्रीय प्रतिभागिता से आयोजन समृद्ध होता है. यह अवश्य है कि, व्यक्तिगत व्यस्तताएँ अपना बहुत बड़ा रोल निभाती हैं. वैसे, आयोजन की सफलता और सदस्यों में इसकी लोकप्रियता यही बताती है कि जो रचनाकार इस सकारात्मक वतावरण का लाभ ले रहे हैं वे काव्यकर्म के कई पहलुओं से जानकार हो रहे हैं.

इस बार पुनः इस आयोजन में सम्मिलित हुई रचनाओं के पदों को रंगीन किया गया है जिसमें एक ही रंग लाल है जिसका अर्थ है कि उस पद में वैधानिक या हिज्जे सम्बन्धित दोष हैं या व पद छंद के शास्त्रीय संयोजन के विरुद्ध है. विश्वास है, इस प्रयास को सकारात्मक ढंग से स्वीकार कर आयोजन के उद्येश्य को सार्थक हुआ समझा जायेगा.

मुख्य बात -  तुम्हारे, नन्हें, नन्हा आदि शब्दों के प्रयोग में सावधान रहने की आवश्यकता है. आंचलिक शब्दप्रधान रचनाओं और खड़ी हिन्दी की रचनाओं में इनकी मात्राएँ अलग होती हैं, जोकि स्वराघात में बदलाव के कारण होता है.

आगे, यथासम्भव ध्यान रखा गया है कि इस आयोजन के सभी प्रतिभागियों की समस्त रचनाएँ प्रस्तुत हो सकें. फिर भी भूलवश किन्हीं प्रतिभागी की कोई रचना संकलित होने से रह गयी हो, वह अवश्य सूचित करे.

सादर
सौरभ पाण्डेय
संचालक - ओबीओ चित्र से काव्य तक छंदोत्सव
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1- श्री अखिलेश कृष्ण श्रीवास्तव जी

छंद - दोहे
संक्षिप्त विधान - 13-11 की यति का द्विपदी छंद जिसका विषम चरणान्त लघु-गुरु या लघु-लघु-लघु और सम चरणान्त गुरु-लघु से अनिवार्य. विषम चरण के प्रारम्भ में जगण (।ऽ।) निषिद्ध.

पुलिस यहाँ की देखिये, कैसा रूप दिखाय।
बदमाशों से दोस्ती, बच्चों पर गुर्राय॥

गलती जिनकी थी नहीं, वो बन गये शिकार।
आये थे जो देखने, यह मीना बाज़ार॥

मन बहलाने के लिए, करती पुलिस उपाय।
कुछ मस्ती भी हो गई, कुकड़ू कू बुलवाय॥

जींस में तकलीफ बहुत, मुर्गा बना न जाय।
कौन समझे दर्द कहाँ, कोई तरस न खाय॥

टेंट में सब मज़ा करें, किशोर तन झुलसाय।
गुंडो से डरती पुलिस, सब पर रोब जमाय॥

ये बेचारे गाँव के, अब तक समझ न पाय।
किस कसूर की दी सज़ा, कोई तो बतलाय॥

बच्चे हैं सहमे हुये, खूब हुआ सत्कार।
घर तक पहुँची बात तो, और पड़ेगी मार॥

खाकी वर्दी देखकर, हर कोई घबराय।
चालीसा के जाप से, बुरी बला टल जाय॥
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2. सौरभ पाण्डेय

छंद - मत्तगयंद सवैया
संक्षिप्त विधान - भगण X 7 + गुरु गुरु, यानि, 211 X 7 + 2 2

नाम नशावन नीच सदा बहके बिफरे बलवा करते थे
लोग सभी इनकी करनी दुख-आतप भाँति सहा करते थे
काम खराब किया करते मुँहज़ोर बने टहला करते थे
मानव रूप भले इनको पर काम सदा घटिया करते थे

गाँव-समाज रहा इनसे अतित्रस्त.. खुला व्यभिचार मचावें
पातक था व्यवहार, मलेच्छ विचार, कुलच्छन पूत कहावें
शासन हाथ चढ़े सब-के-सब मुण्ड झुका चुप दण्ड लगावें
लोफर लंपट लीचड़ थे अब.. मुर्ग़ बने तशरीफ़ दिखावें

देह जवान, खिले तन पौरुष, रक्त भरी धमनी यदि भावे
काम करें सब लोग कि गाँव-समाज खुली जयकार मनावे
जोश भरा हर सैन्य-जवान कवायद में जब स्वेद बहावे
यार ज़रा कुछ काम करो शुभ.. भारत-माँ निज कोख जुड़ावे
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3. श्रीमती राजेश कुमारी जी

कुण्डलिया

संक्षिप्त विधान - 1 दोहा + 1 रोला ; प्रथम शब्द या शब्दांश या शब्द समूह और क्रमशः अंतिम शब्द या शब्दांश या शब्द समूह समान

.
गुंडा गर्दी की करें, पुलिस शिविर में जाँच
उनके हत्थे चढ़ गए, देखो मुर्गे पाँच
देखो मुर्गे पाँच, जलाती गरमी काया
बैठे तंबू तान, लुभाती खुद को छाया
एक घुमाता डंड पहन के खाकी वर्दी
मुर्गों का दे दंड, सिखाता गुंडागर्दी
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4. श्री सचिन देव जी

छंद - दोहे
संक्षिप्त विधान - 13-11 की यति का द्विपदी छंद जिसका विषम चरणान्त लघु-गुरु या लघु-लघु-लघु और सम चरणान्त गुरु-लघु से अनिवार्य. विषम चरण के प्रारम्भ में जगण (।ऽ।) निषिद्ध.

नियमों का पालन करो, कबहुं न रखो ताक
इंसान भी मुर्गा बने, देख पुलिस की धाक

बढे-बूढ़े कह गईन, मत करियो हुडदंग
मुंह से कुकडू कू कढे, मारते जब दबंग

हवलदार बतला रहे, पकड लिए हैं चोर
पीठ पूजा लगे हुई , मार पड़ी घनघोर

मुर्गा बनकर लड़कों की, फितरतें हुई ठीक
नस-नस ढीली हो गई, टाँगे लगतीं वीक

दण्ड भोग कर आज का, बेटा जाओ सुधर
काम न ऐसा तुम करो,कि पड़े झुकाना सर
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5. श्री अरुण शर्मा अनंत जी

छंद - दोहे
संक्षिप्त विधान - 13-11 की यति का द्विपदी छंद जिसका विषम चरणान्त लघु-गुरु या लघु-लघु-लघु और सम चरणान्त गुरु-लघु से अनिवार्य. विषम चरण के प्रारम्भ में जगण (।ऽ।) निषिद्ध.


दिल बहलायेंगे जरा, अँखियाँ लेंगें सेंक ।
चले गए बाजार में, कुछ आशिक दिल फेंक ।१।


उधम मचाएंगे बहुत, और करेंगे मौज ।
यही सोच बाजार में, चली पाँच की फ़ौज ।२।


देखा थानेदार जब, जुबां हुई खामोश ।
झट से ठंडा हो गया, इनका सारा जोश ।३।


लगा सिपाही ने दिया, मुर्गों वाला दाँव ।
होंगे सीधे जब सभी, बहुत दुखेगा पाँव ।४।


इनको धानेदार नें, ऐसे लिया दबोच ।
खुशियों पे पानी फिरा, उल्टी पड़ गई सोच ।५।


माफ़ी वाफी मांग लें, चलो यार चुपचाप ।
हम बेटे हैं इस समय, गधा यही है बाप ।६।
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6. श्री शिज्जु शकूर जी

छंद - कुण्डलिया

संक्षिप्त विधान - 1 दोहा + 1 रोला ; प्रथम शब्द या शब्दांश या शब्द समूह और क्रमशः अंतिम शब्द या शब्दांश या शब्द समूह समान

जाने कौन कर्म किया, मुर्गा दिया बनाय
सूरत से मजनू लगे, सड़क छाप कहलाय
सड़क छाप कहलाय, सो अनोखी सज़ा मिली
आई नानी याद, एक- एक हड्डी हिली
अपने पकड़ के कान, सभी लगे कसम खाने
हम को कर दो माफ, अब तो दें हमें जाने
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7. श्री लक्ष्मण प्रसाद लडीवाला जी
छंद - दोहे
संक्षिप्त विधान - 13-11 की यति का द्विपदी छंद जिसका विषम चरणान्त लघु-गुरु या लघु-लघु-लघु और सम चरणान्त गुरु-लघु से अनिवार्य. विषम चरण के प्रारम्भ में जगण (।ऽ।) निषिद्ध.


लाठी के हथियार से,पुलिस खेलती खेल,
अनुशासन के नाम पर,उनके हाथ नकेल |

देख पुलिस की हेकड़ी,बच्चों को हड़काय,
रुतबा अपना गाँठते, डंडा खूब चलाय |

बच्चों को मुर्गा बना, ऐंठ रहे है मूँछ,
लाठी फटकारे बिना, कैसे उनकी पूँछ |

लाठी इनका आत्मबल, खाकी में इन्सान,
बच्चों के भी खेल में, डाले ये व्यवधान |

भूखे प्यासे सर झुका, ले आँखों में पीर,
अपनी प्यास बुझा रहे, अश्कों का पी नीर |

बिगड़े इन हालात के, हम भी जिम्मेदार,
दोष पुलिस के दे रहे, वे है पह्र्रेदार |

निभा रहे कर्तव्य वे, करे नहीं बदनाम,
बच्चे अनुशासित रहे, हम सबका यह काम ।

(2) कुंडलिया

छंद - कुण्डलिया

संक्षिप्त विधान - 1 दोहा + 1 रोला ; प्रथम शब्द या शब्दांश या शब्द समूह और क्रमशः अंतिम शब्द या शब्दांश या शब्द समूह समान

बच्चे मुर्गा बन रहे, पुलिस लगाती गस्त,
खुली सड़क क्यों घूमते, आवारा से मस्त |

आवारा से मस्त, फिरे, माँ बाप लजाते,
लेते सुंदर सीख, समय क्यों व्यर्थ गँवाते |

माँ बाप दे ध्यान, बने सपूत वे सच्चे,
भविष्य के आधार, सभी संस्कारी बच्चे ||
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8. श्री गिरिराज भंडारी जी

छंद - कुण्डलिया

संक्षिप्त विधान - 1 दोहा + 1 रोला ; प्रथम शब्द या शब्दांश या शब्द समूह और क्रमशः अंतिम शब्द या शब्दांश या शब्द समूह समान


(1)
जाने क्या ग़लती किये , जाने क्या है पाप
क्या हाथों मे जल लिये, दिया किसी ने श्राप
दिया किसी ने श्राप , दुखी हो इन पाचों से
पाला इनका है पड़ा , सही में अब साचों से
अब इनका अवतार , सभी मुरगा पहचाने
कब तक ऐसा रूप, बात कोई ना जाने

(2)
बैठे हैं कुछ छाँव में , एक खड़ा मैदान
मुर्गों से है ले रहा , लगता है श्रम दान
लगता है श्रम दान , पुलिस की बात अनूठी
क्यों पाँचों से आज , लगे है रूठी रूठी
जाने क्यों ये कौम , चले है ऐंठे ऐंठे
बिना काम के दाम, चाहते बैठे बैठे
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9. श्री विनोद कुमार पाण्डेय जी

घनाक्षरी - वर्णिक छंद (31 वर्ण)

(16, 15 वर्ण पर यति होती है चरण के अंत में गुरू होता है)


निकले थे पाँच यार,घूमने चले बाजार
लगी थी बाजार मीना गाँव सुनसान में ,

कच्ची थी सड़क और तम्बू भी तने थे वहाँ
ढेर सारे खरीदार खड़े थे दूकान में ,

पाँचों लडकें वहीं पे आपस में भीड़ गए
सारे कस्टमर लग गए समाधान में,

तभी एक थानेदार आ गया कहीं से और
मुर्गा बनवाया सब को वहीं मैदान में,
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10. श्री अरुण कुमार निगम जी

छंद - आल्हा 

16, 15 मात्राओं पर यति देकर दीर्घ,लघु से अंत, अतिशयोक्ति अनिवार्य


लोफर लम्पट लीचड़ लुच्चे, बिगड़े अधिक लाड़ से लाल
करते हलाकान जनता को और व्यवस्था को बदहाल
इन जैसे टुच्चों को रखते,तथाकथित कुछ लोग सम्हाल
मुर्गा इन्हें बनाते क्या हो , खूब उधेड़ो इनकी खाल

नई उमर के फूल दिखें पर , ये हैं जहरीले मशरूम
इनकी नजरें पड़ी नहीं औ’ लुट जातीं कलियाँ मासूम
देर नहीं इनके आने की , हो जाते हैं बटुवे पार
किसी रेल की बोगी , बस हो , चाहे हो मीना-बाजार

शिविर लगाया , तम्बू ताना , किया योजनाओं को मूर्त
जागा ही था अभी प्रशासन , चढ़े पुलिस के हत्थे धूर्त
जींस हो गई गीली इनकी , मुर्गे जैसे हुए हलाल
आज बना कर मुर्गा इनको, किया पुलिस ने खूब कमाल

रजनी ढलते देर नहीं औ’ पूरब में उगता आदित्य
नव -पीढ़ी नव -ऊर्जा पाती , जहाँ सजग शिक्षा-साहित्य
दिशाहीन को राह दिखायें , बदलें नक्षत्रों की चाल
आओ हम दायित्व निभायें , भारत को कर दें खुशहाल ||
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11.  श्री गणेश जी "बागी"
छंद - दोहे
संक्षिप्त विधान - 13-11 की यति का द्विपदी छंद जिसका विषम चरणान्त लघु-गुरु या लघु-लघु-लघु और सम चरणान्त गुरु-लघु से अनिवार्य. विषम चरण के प्रारम्भ में जगण (।ऽ।) निषिद्ध.

किट्टी पार्टी मॉम की, डैडी का व्यवसाय,
तब ही बेटा रोड पर, गुटका पान चबाय ।
 
*चित चंचल मन मौज में, सबसे करते बैर,
धरती पर टहलें मगर, रखें गगन पर पैर ।
 
मेला देखन को गये, बिगड़े राजकुमार,
तन से दिखते स्वस्थ पर, मन से हैं बीमार ।
 
दारोगा ने धर लिया, इनको रंगे हाथ,
थुकम फजीहत जो हुई, दिया न कोई साथ ।
 
कान पकड़ बैठक उठक, दिया दंड निहुराय,
अबकी कर दो माफ़ भी, कसम बाप की खाय ।

मेले में मजनू बने, तनिक न आये लाज,
हिम्मत चौगुन हो गयी, हम चुप हैं जो आज ।
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12. श्री रमेश कुमार चौहान जी
छंद कामरूप
(चार चरण, प्रत्येक में 9, 7, 10 मात्राओं पर यति, चरणान्त गुरु-लघु से)
मीना बाजार, देखो यार, सजे सुंदर स्टाल ।
चलो करे मेल, नाना खेल, दिखे सुंदर माल ।।
कहते मनचले, बोल बल्ले, दिखा रहे मिजाज ।
करते करतूत, वे तो खूब, कौन देखे काज ।।
पड़े अब पाले, जिगर वाले, बने थे दिल फेक ।
ये पुलिस वाले, ले हवाले, दे सजा अब नेक ।।
बार बार गुने, मुर्गा बने, मनचले ये बात ।
छोड़ छेड़ छाड़, करें जुगाड़, दे नई सौगात ।।
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13. डा० प्राची सिंह जी

छंद - कुण्डलिया

संक्षिप्त विधान - 1 दोहा + 1 रोला ; प्रथम शब्द या शब्दांश या शब्द समूह और क्रमशः अंतिम शब्द या शब्दांश या शब्द समूह समान

कलुषित मानस वृत्ति का , हो यथार्थ उपचार
पुलिस प्रशासन हों सजग, सद्चरित्र सरकार
सद्चरित्र सरकार, नियोजित शासन लाए
तत्क्षण दे कर दंड , समस्या को सुलझाए
कर्म करें सब श्रेष्ठ, सदा हो कर संकल्पित
मनस प्रज्ञ उपचार, सुधारे चिंतन कलुषित.!!
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14. श्री सुशील जोशी जी

छंद - कुण्डलिया

संक्षिप्त विधान - 1 दोहा + 1 रोला ; प्रथम शब्द या शब्दांश या शब्द समूह और क्रमशः अंतिम शब्द या शब्दांश या शब्द समूह समान


मुर्गा कुकड़ू बोलता, नई हुई है भोर।
ध्वनि अचानक सुनी तभी, पकड़ो, मारो, चोर।।
पकड़ो, मारो, चोर, पकड़ में आए सारे,
उगल दिया सब सत्य, पुलिस ने डंडे मारे,
पढ़ लिख कर बेकार, न कोई बॉस न गुर्गा,
कड़ी धूप में रखा, बनाकर घंटों मुर्गा।
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15. श्री अशोक रक्ताले जी

छंद - कुण्डलिया

संक्षिप्त विधान - 1 दोहा + 1 रोला ; प्रथम शब्द या शब्दांश या शब्द समूह और क्रमशः अंतिम शब्द या शब्दांश या शब्द समूह समान


आये सज शृंगार कर, पांच मित्र बाजार,
देख न पाए पुलिस का, सजा हुआ दरबार,
सजा हुआ दरबार, छोड़ता कब ये मौका,
वसुधा पर सरकार, कराया दर्शन घौ का,
मुर्गा बन कर मार, सही बिन मीना पाये,
पांच मित्र लाचार, देख कर रोना आये ॥
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16. श्री अविनाश बागडे जी

छंद - कुण्डलिया

संक्षिप्त विधान - 1 दोहा + 1 रोला ; प्रथम शब्द या शब्दांश या शब्द समूह और क्रमशः अंतिम शब्द या शब्दांश या शब्द समूह समान


वर्दी की दादागिरी ,वर्दी का ये खौफ।
डंडा जिनके हाथ में ,घूम रहे बेखौफ।
घूम रहे बेखौफ ,मिला अधिकार कहाँ से !
तलब कीजिये उन्हें ,ये आया हुक्म जहाँ से।
कहता है अविनाश ,कानूनी गुंडागर्दी।
हद्द पार जो बढे ,उतरो ऐसी वर्दी।
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छंद - कुण्डलिया

संक्षिप्त विधान - 1 दोहा + 1 रोला ; प्रथम शब्द या शब्दांश या शब्द समूह और क्रमशः अंतिम शब्द या शब्दांश या शब्द समूह समान

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Replies to This Discussion

अभिभूत हूँ इस संलग्नता पर, रात १२.०० बजे आयोजन समाप्त हुआ, १२.३० तक सौरभ भईया, मैं और रामशिरोमणि भाई मस्ती कर रहे थे, और सुबह ऑनलाइन हुआ तो संकलन पोस्ट है, वह भी चिन्हित, आय हाय हाय, मैं तो झूम उठा, बहुत बहुत बधाई प्रिय राम भाई, इस श्रम साध्य कार्य हेतु मैं ह्रदय से प्रशंसा करता हूँ | साथ ही आदरणीय सौरभ भईया को भी बधाई प्रेषित करता हूँ, आपकी संलग्नता और कान खिचाई का यह असर हुआ कि राम भाई यह महत्वपूर्ण कार्य कर सके :-) 

पुनः इस संकलन को प्रस्तुत करने हेतु आप दोनों को दिल से बधाई |

भाई गणॆशजी, यह सही है कि कोई न कोई किसी शाश्वत और अपरिहार्य काम को सद्गति देता है. ओबीओ पर सारे काम मिल-बाँट कर ही सम्पन्न होते हैं और सम्पन्न किये जाने चाहिये. इसके आगे यहाँ अभी नहीं.

लेकिन जिस  तरह से आदरणीया प्राचीजी, भाई राणाजी, आप या मैं या कोई अन्य सदस्य कोई कार्य करते हैं वह अन्यान्य सदस्यों के लिए क्रियान्वयन का उदाहरण बनता है.  हमारी यथोचित संलग्नता ही इस मंच का व्यवहार बनती है.

भाई रामशिरोमणि ही नहीं बाकी सभी सदस्य यह मानें और महसूस करें कि सहयोग-सहकार-सम्मिलन में किये गये कार्य किसी सदस्य से जबरदस्ती करवाये गये कार्य की श्रेणी में नहीं आते. बल्कि तनिक हुआ श्रमदान हमारे मंच के उद्येश्य और दर्शन की पुष्टि-संतुष्टि करते हैं. यही सहकारिता है.  यही जज़्बा हमसभी को यथोचित रूप से सक्रीय रखता है.
शुभ-शुभ
 

आदरणीय सौरभ भाई , राम शिरोमणीभाई , चिन्हित संकलन इतनी जल्दी उपलब्ध कराने के लिये आपको हार्दिक बधाइयाँ ॥ और आपकी लगन शीलता को नमन ॥

आदरणीय गिरिराजभाई, यह सही है कि इस बार के संकलन कार्य में हमें भाई रामशिरोमणि का भरपूर सहयोग मिला है जिस कारण यह रपट इतनी शीघ्र आप सबों के सामने आ सकी है.
आपकी और आप जैसे रचनाकारों की छंद रचनाएँ इस बार के आयोजन की सरप्राइज पैकेज थीं जिनने पहली बार छंदों पर प्रयास किया था.
सादर

देहरादून में दो दिन की बरसात के बाद आज ज्यों मखमली धूप निकली उसी तरह ओबीओ के मंच पर सुबह-सुबह इस धूप के दर्शन हुए  सभी रचनाओं के त्वरित संकलन के रूप में,आदरणीय सौरभ जी का छान्दोत्सव के विषय में विवरण और राम शिरोमणि पाठक द्वारा सभी रचनाओं का संकलन.बहुत रोचक माहौल में छान्दोत्सव संपन्न हुआ सभी को हार्दिक बधाइयां और इस त्वरित श्रमसाध्य पोस्ट के लिए आदरणीय सौरभ जी एवं प्रिय राम शिरोमणि जी बधाई के पात्र हैं.     

आदरणीया राजेश कुमारीकी, आपकी व्यस्तता से हमसभी वाकिफ़ हैं. आप जितना सहयोग कर पाती हैं वह हमारे लिए अनुकरणीय है.

फिर भी आपकी थोड़ी-सी और मदद कार्यकारिणी से सम्बन्धित कई कार्यों के सुचारू रूप से क्रियान्वित होने का महती कारण बन सकती है. भाई रामशिरोमणि जैसे जुझारू सदस्यों का प्रयास हम सभी के कार्यों के पूरक के रूप में ही सामने आता है.
आपकी हार्दिक बधाई और शुभकामनाएँ भाई रामशिरोमणि के साथ मैं स्वीकार करता हूँ. सहयोग बना रहे.
सादर

अरे वाह उधर आयोजन समाप्त हुआ और इधर परिणाम घोषित क्या कहने. इस श्रम साध्य कार्य हेतु आदरणीय सर सौरभ सर एवं अनुज राम भाई दोनों ही प्रसंशा के हकदार हैं. आप दोनों को हार्दिक बधाई एवं ढेरों शुभकामनाएं आयोजन को सफल बनाये हेतु समस्त प्रतिभागी गुरुजनों, अग्रजों एवं मित्रों का हार्दिक आभार. जय हो

जय हो.. . :-))))

आज दो दिन बाद ऑनलाइन हुई सोचते हुए कि किसी भी हाल में आज तो संकलन कार्य करना ही है, मेरी अतिशय व्यस्तता की वजह से बिना सूचित किये दो दिन संकलन लेट हो रहा है ..... पर आते ही देखा ....संकलन कार्य तो हो चुका और वो भी इतनी शीघ्रता से लाल गुलाल के साथ.. 

संकलन के इस महती कार्य को सफलता पूर्वक संपन्न करने के लिए बहुत बहुत धन्यवाद भाई राम शिरोमणि पाठक जी, और ओवरऑल विश्लेषण करती रिपोर्ट के साथ ही संकलन में रंग भरने के लिए धन्यवाद आदरणीय सौरभ जी.

डॉ. प्राची, इस मंच से आपकी संलग्नता और आयोजनों की रचनाओं के संकलन कार्य के प्रति जुझारू उत्साह को हम सभी सदस्य नत-मस्तक हो कर स्वीकार करते हैं. आपके, गणेशभाई के, राणा भाई के या कई अवसरों पर रामशिरोमणि भाई जैसे आग्रही सदस्यों के मुखर सहयोग से रचना-संकलन जैसा दुरूह कार्य सम्भव हो पाता है. कोई कार्य छोटा या बड़ा न होकर महत्त्वपूर्ण होता है.

इस उदार सहयोग के साथ अनवरत तत्परता हेतु आपका सादर धन्यवाद, आदरणीया.

सादर

बड़भागी वे लोग, भाग उत्सव में लीन्हा ।
हुए विधाता बाम, भाग्य न मेरे दीन्हा॥
सिर में भारी पीर, होय जो तेज उजाला।
किन्तु आज आराम, काम से समय निकाला॥
सौरभ सर आदेश, किन्तु ना गया निभाया।
क्षमा कीजिये तात, लौट मैं वापस आया॥
रचूँ नित्य नव छंद, मनोहर कृपा करो माँ।
ओ बी ओ से दूर, नहीं अब मुझे करो माँ॥
कितना सुन्दर चित्र, ज्ञानप्रद मन अति भाये।
मुग्ध करें सब छंद, भांति बहु कोण दिखाये॥
ये बालक सुकुमार, पुलिस का डंडा भारी।
किसे कहें बेकार, किसे कह अत्याचारी॥
नहीं एक में खोट, बुराई तो सबमें है।
पुलिस हुई घुसखोर, हुए लम्पट ये हैं॥
मात पिता का दोष, दिया ना संस्कार कुछ।
करें घृणित खुद काम, दुष्ट होत फिर सुत॥
आयोजन सम्पन्न, सफल अतिशय सुखकर है।
यह तो चींटी काम, पूर्ण होता मिलकर है॥

रामशिरोमणि संग श्री, सौरभ सुखधाम।
लाख बधाई आपको, सुन्दर कार्य ललाम॥

देखा  था   मौज़ूद,    आपको   किस  साइट पर
नहीं   रहा अब याद,  मगर सोचा  था  जुट कर
मिलजुल हों सब काम, सफल हो हर आयोजन
छंदों  का   माहौल,   बनाये   अपना   आँगन
ले   मन  में   यह सोच,  सुझाया  आप  पधारें
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Admin replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-109 (सियासत)
"स्वागतम"
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Vikram Motegi is now a member of Open Books Online
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Sushil Sarna posted a blog post

दोहा पंचक. . . . .पुष्प - अलि

दोहा पंचक. . . . पुष्प -अलिगंध चुराने आ गए, कलियों के चितचोर । कली -कली से प्रेम की, अलिकुल बाँधे…See More
Sunday
अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आदरणीय दयाराम मेठानी जी आदाब, ग़ज़ल पर आपकी आमद और हौसला अफ़ज़ाई का तह-ए-दिल से शुक्रिया।"
Saturday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. भाई दयाराम जी, सादर आभार।"
Saturday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. भाई संजय जी हार्दिक आभार।"
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लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. भाई मिथिलेश जी, सादर अभिवादन। गजल की प्रशंसा के लिए आभार।"
Saturday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. रिचा जी, हार्दिक धन्यवाद"
Saturday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. भाई दिनेश जी, सादर आभार।"
Saturday
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आदरणीय रिचा यादव जी, पोस्ट पर कमेंट के लिए हार्दिक आभार।"
Saturday
Shyam Narain Verma commented on Aazi Tamaam's blog post ग़ज़ल: ग़मज़दा आँखों का पानी
"नमस्ते जी, बहुत ही सुंदर प्रस्तुति, हार्दिक बधाई l सादर"
Saturday
Shyam Narain Verma commented on मिथिलेश वामनकर's blog post ग़ज़ल: उम्र भर हम सीखते चौकोर करना
"नमस्ते जी, बहुत ही सुंदर प्रस्तुति, हार्दिक बधाई l सादर"
Saturday

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