//चिलचिलाती धूप को, करने विदा, आने को है
कह रहा है मोर, अब, काली घटा छाने को है।
एक, हरियाली भरा, टुकड़ा दिखा जो शह्र में
देखते ही देखते, दिल का पता पाने को है।//
(श्री तिलक राज कपूर जी)
मोटर,कारों फ़ैक्ट्रीयों की धुँआ उगलती चिमनियाँ,
भुला रही रितु आमन्त्रण का चिर-परिचित शोर!!//
(श्री बोधिसत्व कस्तूरिया जी)
//चारों ओर बसे हरियाली और बागों में मोर,
हो निर्दोष पवन जल धरती रुके हानिकर शोर,
निर्भय कलरव करें विहग तब जनगण मन हर्षाये,
भारत विकसित राष्ट्र बने तब विश्व शांति की ओर|//
(श्री अलोक सीतापुरी जी)
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इस बार गये हम हज़ार के पार,
ओ बी ओ करेगा हर बार चमत्कार,
जय हो !
सर्वप्रथम मेरा सादर प्रणाम.
जिसका हमें था इंतज़ार.. जिसके लिये दिल था बेक़रार.. वो रपट आगयी-आगयी.
उपरोक्त पंक्ति को चाहे जिस स्तर का समझा जाय, इस पंक्ति में केवल मेरी ही नहीं मुझ जैसे कई-कई पाठकों/रचनाधर्मियों की हार्दिक भावनाओं की अनुगूँज सुनायी देगी. गणेशभाई ने सही कहा है कि आदरणीय योगराजभाई की रपट संपूर्ण प्रक्रिया का सत्त (निचोड़) उपलब्ध करा देती है. सांगोपांग वर्णन का अत्युत्तम उदाहरण. आपकी रपट पर टिप्पणी करना या प्रतिक्रिया व्यक्त करना किसीभी टिप्पणीकार के लिये गर्वानुभूति है.
किन्तु, मैं एक सादर शिकायत के साथ अपनी बातें रख रहा हूँ. मैं वस्तुतः एक विद्यार्थी हूँ. एक विद्यार्थी का उसकी अपेक्षा से ज्यादा चर्चा उस विद्यार्थी के भटक जाने का कारण हो सकता है. मुझे आपसभी के सानिध्य में अभी बहुत कुछ सीखना है. इसी क्रम में एक बात और.. कि, इस दौरान पाठकों को मात्र दो नव-हस्ताक्षरों से परिचय नहीं हुआ, जैसाकि, भाई योगराजजी ने कहा है, बल्कि तीन-तीन हस्ताक्षरों से ओबीओ का संसार परिचित हुआ है. भाई अम्बरीषजी ने हाइकू को अपना माध्यम बनाया तो आदरणीय योगराजभाई ने पहली बार घनाक्षरी पर अपने हाथ आजमाये. इसी क्रम में मैं अदना भी कुण्डलियों की मात्राओं के लिहाज से पहली-पहली बार ही कुछ कहने की धृष्टता किया था. यह सीखने-सिखाने की प्रक्रिया को ही तो स्थापित करता है.
पुनः, इस पूरे प्रयास के लिये भाई योगराजजी को मेरा सादर नमस्कार.. और इस अभिनव मंच के लिये भाई अम्बरीषजी और सभी मित्रों को मरी अनेकानेक शुभकामनाएँ.
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