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ओबीओ चित्र से काव्य तक छंदोत्सव" अंक-52 की समस्त संकलित रचनाएँ

सु्धीजनो !
 
दिनांक 15 अगस्त 2015 को सम्पन्न हुए "ओबीओ चित्र से काव्य तक छंदोत्सव" अंक - 52 की समस्त प्रविष्टियाँ संकलित कर ली गयी हैं.


इस बार प्रस्तुतियों के लिए तीन छन्दों का चयन किया गया था, वे थे दोहा, रोला और कुण्डलिया छन्द

वैधानिक रूप से अशुद्ध पदों को लाल रंग से तथा अक्षरी (हिज्जे) अथवा व्याकरण के लिहाज से अशुद्ध पद को हरे रंग से चिह्नित किया गया है.

जो प्रस्तुतियाँ प्रदत्त चित्र को शाब्दिक करने में सक्षम नहीं थीं, उन प्रस्तुतियों को संकलन में स्थान नहीं मिला है. 

फिर भी, यथासम्भव ध्यान रखा गया है कि इस आयोजन के सभी प्रतिभागियों की समस्त रचनाएँ प्रस्तुत हो सकें. फिर भी भूलवश किन्हीं प्रतिभागी की कोई रचना संकलित होने से रह गयी हो, वह अवश्य सूचित करे.

सादर
सौरभ पाण्डेय
संचालक - ओबीओ चित्र से काव्य तक छंदोत्सव

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आदरणीय अखिलेश कृष्ण श्रीवास्तवजी

संशोधित रचनाएँ  ............   

दोहा छंद

शुभ्र वस्त्र और टोपियाँ, चर्चा करते पाँच। 

देश की आज़ादी पर, कभी न आये आँच॥  

झंडा झुके न देश का, फहरे बारह मास।

आतंकी हैं घात में,  सभी पर्व है पास॥

 

लिए तिरंगा हाथ में,  युवा वर्ग में जोश।
सीमा पर ना चूक हो,  रहें न हम मदहोश॥ 

 

हर आतंकी पाक का, खाएगा अब मात।

आपस में हम एक हैं, सर्व धर्म सब जात॥


कुण्डलिया छंद

हर घर में हो जागरन, सीमा पर दिन रात।

आतंकी अब पाक के, कर न सके उत्पात॥
कर न सके उत्पात, हमारी जिम्मेदारी।
इक छोटी सी चूक, पड़े ना हम पर भारी॥
टोपी वस्त्र सफेद , ध्वजा है पाँचों कर में। 
रहे सुरक्षित देश, यही चर्चा हर घर में॥

रोला छंद

हम समझें ये बात,  और सब को समझायें। 

आतंकी औ’ पाक , हमेशा हमें लड़ायें॥
आये कभी न आँच, सफेद हरा भगवा पर।

सब धर्मों के लोग, रहें मिलकर जीवन भर॥                    
................
पाँच युवक गम्भीर, सभी को भारत प्यारा। 

टोपी श्वेत लिबास, हाथ में झंडा न्यारा॥ 

करें भ्रांतियाँ दूर,  किसी को न हो शिकायत।

शांति और सद्भाव, देश की यही रवायत॥

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आदरणीय श्री सुनील जी 

रोला छंद 

हिन्द देश है आज, सुवासित और सुसज्जित
आजादी के पर्व, में सभी हैं उत्साहित 

जाग गये हम आज, सुबह का गजर सुने बिन      (संशोधित)
आजादी का राग, हमें गाना था भर दिन

तीन वर्ण के बाद, न कोई वर्ण सुहाता
हरा श्वेत उपरान्त, सिर्फ़ केसरिया भाता
रक्त-रसायन युक्त, हुई धरती तब जाकर
उभरे तीनों रंग, चमक अंतहीन पाकर

चलो! उठें भी बंधु, उड़ायें अब परचम हम
दुनिया देखे आज, दिखायें जो निज दमखम
देशप्रेम के गीत, दिशाऐं गातीं हैं वो
सन सैतालिस बीच, सुरों में गायीं थीं जो

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सौरभ पाण्डेय

दोहे
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भिन्न-भिन्न के फूल ज्यों, सदा बाग़ की शान 

पंथ सभी हैं सम्पदा, मालिक हिन्दुस्तान

अपनापन की ज़िन्दग़ी, कुदरत भी वल्लाह 
दिया वतन ने जो हमें, नेमत है अल्लाह

अपनापन हर सू रहे, मिलजुल हो निर्वाह 

प्रतिपल अपने देश हित, बना रहे उत्साह

अपने हाथ बलिष्ठ हों, थामें हुए तिरंग 
वतन हमारी शान है, सारा आलम दंग

बीत गई तारीख़ की, बातें करे अगस्त
कथा सुनाता देश की, दिखा तिरंगा मस्त

इक जैसे सुख-दुख हमें, किन्तु भिन्न बर्ताव 
अलग-अलग है मान्यता, लेकिन प्रखर जुड़ाव

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आदरणीय गिरिराज भण्डारीजी

पाँच दोहे

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हाथ तिरंगा थाम के , बैठे बालक पाँच

मन कहता इस भाव को , आये ना अब आँच 

 

राजनीति ना घेर ले , इनके कोमल भाव

दूध ख़टाई ना पड़े , बचा रहे सद्भाव

 

आतंकी ये देख कर , फिर ना करे उपाय

बालक मन बहके नहीं , मन मे संशय आय

 

इच्छा बदले भाव में , भाव बने तब कर्म

थामें झंडा बस तभी , देश प्रेम हो धर्म  

 

कोई पकड़े शान से , कोई देत जलाय

रे मन चिंता देश की , क्यों ना जुझको खाय

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आदरणीय मिथिलेश वामनकरजी

(दोहा गीत)

झंडा है जो हाथ में, बतलाये पहचान

एक तिरंगे के तले, सारा हिन्दुस्तान

 

इस माटी की सब उपज, 

भारत की संतान.

कैसे नीचा एक फिर,

कैसे एक महान.

एक बराबर सब यहाँ, भारत माँ की शान

एक तिरंगे के तले, सारा हिन्दुस्तान

 

माटी से हमको रहा,

आप बराबर प्यार

ऐसे में फिर क्यों भला,

दूजे सा व्यवहार

मन से तौलों जो कभी, हम सब एक समान

एक तिरंगे के तले, सारा हिन्दुस्तान

 

जात पात से है बड़ा,

मानवता परिवेश.

इस पर सब कुर्बान है,

ऐसा भारत देश

साँसों में सबके बसा, ये है सबकी जान

एक तिरंगे के तले, सारा हिन्दुस्तान

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आदरणीय मनन कुमार सिंहजी

दोहा गीत

आया है नवल विहान,
ले लो झंडा तान,
ले यह तुम्हारा मान,
यही नया दिनमान।
आया है नवल विहान!1


हो नहीं दिल में दरार,
जां हो केवल जान।
साँस कहे तेरी कथा,
मधुर-मधुर हो तान।
आया है नवल विहान!!2


आ करें आगाज नया,
बिसरा सब संधान।
आँखों-आँखों बात हो,
नहीं कहेंगे कान।
आया है नवल विहान!!3

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आदरणीय रमेश कुमार चौहानजी

दोहा गीत

झूमे बच्चे हिन्द के, 

लिये तिरंगा हाथ ।

हम भारत के लाल है, करते इसे सलाम ।
पहले अपना देश है, फिर हिन्दू इस्लाम ।।
देश धर्म ही सार है, बाकी सभी अकाथ । झूमे......

करे यशगान देश के, मिलकर बच्चे पांच ।।
हॅस कर देंगे जान हम, आये ना कुछ आॅच ।।
बैरी समझे क्यों हमें, हम हैं यहां अनाथ । झूमे......

मेरा अपना देश है, मेरे अपने लोग ।
जल मिट्टी वायु के, करते हम उपभोग ।।
कण-कण में इस देश के, रचे बसे हैं साथ । झूमे......

समरसता सम भाव का, अनुपम है सौगात ।
ईद दिवाली साथ में, सारे जहां लुभात ।।
हिन्दी उर्दू बोल है, अपने अपने माथ । झूमे......

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आदरणीय लक्ष्मण धामी

दोहा छन्द

लिए  तिरंगा हाथ  में,  कहते  बच्चे पाँच
देश प्रेम के भाव को, मजहब से मत जाँच  /1

पूजा पाठ नमाज तो, बस निजता की बात
सबसे   ऊपर   देश   है, कैसे  भी  हालात  /2

मिला हमें भी है तनिक, मजहब से यह ज्ञान
भारतवासी  रूप  में,  रखें  देश  का  मान /3

भले जात से तुम कहो, अफजल और कसाव
दोनों  धब्बे  कौम  पर,  उनसे   नहीं  लगाव  /4

दाउद से तुम जोड़ कर, मत कहना गद्दार
अगर मिलेगा वो  कहीं, हम  ही देंगे मार /5

वंशज  वीर  हमीद के, हम  हैं सच्चे रिंद
कहते बंदे मातरम्, जय  भारत जय हिंद   /6

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आदरणीया प्रतिभा पाण्डेयजी

दोहा

अड़सठ का लो हो गया मेरा देश महान
हैप्पी बड्डे टू यू सब मिल कर गाएं गान

अल्प बहु के मुद्दों को दे दें पूर्ण विराम
जाली की या खादी की सब टोपी एक समान

अजब गजब इस देश के अजब गजब हैं रंग
दांत तले उंगली दिए दुश्मन भी हैं दंग

साजिश रचने में लगा दुश्मन सरहद पार
बाज नहीं आता खाके बार बार वो मार

घर के अन्दर भी छिपे दुश्मन कुछ हैं आज
दिल को जिनके चीरता प्रेम प्यार का साज

आज़ादी पर हम अपनी तभी करेंगे नाज़
कोई भी बच्चा अपना भूखा न सोये आज

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आदरणीया राजेश कुमारीजी

रोला गीत

बैर भाव को त्याग,रखें  बस तन-मन चंगा

सर्व धर्म सम भाव, कहे आजाद तिरंगा  

 

बच्चे बैठे चार ,लिए हाथों में झंडा

गपशप में हैं व्यस्त,हँसी का कोई फंडा

बचपन है मासूम ,दिलों में निर्मल गंगा

सर्व धर्म सम भाव, कहे आजाद तिरंगा  

 

उजले हैं परिधान ,टोपियाँ सिर पर उजली

मुख पर है मुस्कान,न कोई कलुषित बदली

बाल हृदय से दूर ,सुलगता  द्वेष पतंगा  

सर्व धर्म सम भाव, कहे आजाद तिरंगा  

धर्म वर्ग के भेद, रहित होते हैं बच्चे  

तोड़ें हम ही लोग,सूत्र होते जो कच्चे   

जाति पाँति के बीज ,उगा भड़काते दंगा

सर्व धर्म सम भाव, कहे आजाद तिरंगा  

 

आजादी का पर्व,मनाता भारत मेरा  

देश प्रेम का भानु,डालता मन में डेरा     

सभी मनाते जश्न, मसूरी या दरभंगा

सर्व धर्म सम भाव, कहे आजाद तिरंगा  

 

ध्वज है अपनी जान, इसी से चौड़ा सीना  

भारत की ये शान ,इसी पर  मरना जीना   

हम हैं इसके लाल , न लेना हम से पंगा

सर्व धर्म सम भाव, कहे आजाद तिरंगा  

(संशोधित)

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आदरणीया डॉ. नीरज शर्माजी

दोहे

श्वेत वस्त्र धारण किए , सिर पर टोपी गोल।

लिए तिरंगा हाथ में ,जय भारत की बोल॥

गहन मंत्रणा कर रहे ,  बैठे बालक पांच।

अब भारत की शान पर,  कभी न आए आंच॥

बालक तो कोमल मना, और न मन में मैल।

हंसते बतियाते हुए , लगें छबीले छैल॥

धर्म , जात के नाम पर , बिखर रहा है देश।

नहीं संभाला  तो  इसे , बढ़  जाएगा क्लेश॥ 

धीरे - धीरे ही सही , बदल रहा माहौल।।

छोटी-छोटी बात पर , जो जाता था खौल॥

आजादी पाए, हुए  , भैया अड़सठ वर्ष।

दुविधा मुंह बाए खड़ीं , बुझी न अब तक तर्ष॥

वीरों के बलिदान से , भारत हुआ स्वतंत्र।

चलो जपें हम भी वही , देश-भक्ति का मंत्र॥

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भाई सचिनदेवजी 

दोहे

सिर पर टोपी हाथ में, भारत का सम्मान

आँखों मैं फैली चमक, मुख पर है मुस्कान     II1II

  

मजबूती से देश का, लिया तिरंगा थाम

धीरे-धीरे बांटते,  आपस मैं पैगाम                 II2II

 

यारो मिलकर ठान लें, अपने मन में आज   

झंडे की हर हाल में, हमको रखनी लाज        II3II

  

गिनती मैं हम पांच हैं, मुटठी के हम रूप  

काम करेंगे देश की, मर्यादा अनुरूप         II4II   (संशोधित)

हमको तो बस आज से, ये रखना है याद 

सबसे पहले है वतन, सब हैं उसके बाद        II5II

 

इसको छूने का हमें, आज मिला सम्मान      II6II

हम सबकी है साथियो, झंडे से पहचान 

 

हिन्दू-मुस्लिम-सिख यहाँ, ईसा धरम अनेक

लेकिन झंडे के तले, भारतवासी एक             II7II 

 

रखना गीता हाथ में, चाहे तुम कुरआन

लेकिन सब रखना सदा, दिल मैं हिन्दुस्तान  II8II  

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आदरणीय अशोक कुमार रक्तालेजी 

कुण्डलिया

बातें करते मित्र दो, सुनते दिखते तीन |

सबके वस्त्र सफ़ेद हैं, ध्वज लेकिन रंगीन ||

ध्वज लेकिन रंगीन, सभी की शान बढाता,

बैठे लिए किशोर, राष्ट्र-ध्वज है फहराता,

ध्वज के तीनों रंग, सदा सबका मन हरते,

धर्म चक्र के संग, धर्म की बातें करते ||

 

 

मन को पावन ही करें, उन बच्चों के भाव |

जिनने थामा राष्ट्र-ध्वज, लेकर पूरा चाव ||

लेकर पूरा चाव, तिरंगा वे फहरायें

भारत माँ का प्रेम, दुआ जन-जन की पायें,

रहे सरसता नेह , बरसता जैसे सावन,

गंगा की हर बूँद , बना दे मन को पावन ||

दोहे 

सभी श्वेत हैं टोपियाँ, लेकिन अलग विचार |

हर मुख की मुस्कान का, कहता है आकार ||

 

रहें तिरंगे के तले, मिलजुल कर हम साथ |

बैर द्वेष को त्याग कर, ले हाथों में हाथ ||

 

संस्कृति का इस देश की, करता जग गुणगान |

नवयुवकों से आस है , और बढाएं मान ||

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आदरणीय रवि शुक्लजी

दोहा गीत

बैठे बालक पांच ये, हाथ तिरंगा थाम

मिलकर देना साथियो, चर्चा को आयाम

 

विधवा की इक मांग सा

सरहद का संदेश

आज़ादी के नाम पर

अलग हुआ इक देश

उसका फल हम पा रहे कहां मिला आराम ?

 

अमन चैन की बात हो

या स्‍वतंत्र अभियान

दोनो ही अविभाज्‍य है

मूल मंत्र को जान

मंजि़ल को पाए बिना हमें कहां विश्राम ।

फिर से आया लौट कर

पंद्रह आज अगस्‍त

आजादी आनंद है

इसी सोच में मस्‍त  

हमें किसी से क्‍या गरज तू रहीम मैं राम

 

नियत समय अब आ गया

देना मेरा साथ

अलम उठा कर हम चलें

छोड़ न देना हाथ

नहीं किसी के भी रहें गर्दिश में अय्याम ।

 

देश प्रेम का राग हो

मनभावन हो गान

भाव यही अभिव्‍यक्त हो

भारत देश महान

रज कण चंदन शीश धर करते इसे प्रणाम ।

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आदरणीय जवाहर लाल सिंहजी

दोहे

बाल मंडली देख कर, मन में उठी उमंग.

हम भी होते बाल गर, खूब जमाते रंग.

क्यों बांटे मजहब हमें, चलें सभी के साथ

देश बढ़े आगे सदा, मिले हाथ से हाथ

भारत देश महान है, बच्चे इनकी शान

इसी तिरंगा के लिए, दिया बीर ने जान 

राम रहीम कबीर हैं, भारत की पहचान

रंग बिरंगे फूल हैं, गुलशन हिन्दुस्तान

 

कुण्डलियाँ

देखो आज सलीम को, मन में है उत्साह,

कादिर भी है साथ में, साबिर भरता आह!

साबिर भरता आह, कबीरा गीत सुनाये    

चारो से ही आज, धरा पर मस्ती छाये

इन बच्चों को देख, सभी मिल रहना सीखो

निश्छल है मुस्कान, तिरंगा कर में देखो  

 

सपने बुनते बीतते, बाल युवा के आज

फिर से आया है भला, देखो नया सुराज 

देखो नया सुराज, मित्र हम छोटे छोटे

मन में है उत्साह, तनिक भी ना है खोटे

ठगा बहुत ही बार, कहाते थे जो अपने

क्या पूरा कर पाय, दिखाये थे जो सपने 

(संशोधित)

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आदरणीय सुशील सरनाजी

दोहा छंद 
१. 
आज़ादी   का   पर्व   है  ,  आज़ादी    के  रंग 
पाँचों मुख पर खिल रही ,इक स्वाधीन उमंग

२. 
फर्क नहीं है धर्म का, सब मिल रहते संग
भूल  गए  सब  प्रेम  में , कैसी होती जंग 
३. 
वीरों के बलिदान का ,सदा करो गुणगान 
कभी  तिरंगे  का  न हो ,भूले से अपमान

४. 
भारत की इस भूमि को, चूमो बारम्बार 
हर कतरे से खून के , हुआ धरा शृंगार     (संशोधित)

५. 
आज़ादी में खिल रहे ,चेहरे सब इक सँग 
लिये  तिरंगा  हाथ  में, खुशियों के हैं रंग

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Replies to This Discussion

आप ही देखिये, आदरणीय, अच्छे-खासे ग़ज़लकार ’मात्रिक बहर’ (फ़ेलुन-फ़ेलुन.. फ़ा) में या तो गच्चा खा जाते हैं, या बेतरीके स्ट्रगल करते दिखते हैं. क्या कारण है इसका ? यही, कि शब्द-कल की अवधारणा ही स्पष्ट नहीं है.

हमें व्यक्तिगत तौर पर आश्चर्य तो मंच के नव-हस्ताक्षरों की सोच पर होता है. ओबीओ पर विधा-विशेष को लेकर आग्रह एकदम नया कॉन्सेप्ट है. ऐसा कभी नहीं था. यदि होता, तो ओबीओ पर हमसभी कई-एक विधा पर साधिकार बातें न करते. जबकि सभी ने इसी मंच पर सारा कुछ सीखा है.

आदरणीय सौरभ जी, संकलन के लिए बधाई तथा सुधार सुझाने के लिए धन्यवाद ज्ञापित करते हुए मैं फिर से परिमार्जित कर पूरी रचना पेश कर रहा हूँ,कष्ट के लिए खेद है:
आ गया है काल नया,
ले लो झंडा तान,
तब के सब बवाल गये,
यही नया दिनमान।
आ गया है काल नया! 1
ना चले रे कहीं छुरा,
जां हो केवल जान।
साँस कहे तेरी कथा,
मधुर-मधुर हो तान।
आ गया है काल नया!!2
आ करें आगाज नया,
बिसरा सब संधान।
आँखों-आँखों बात हो,
नहीं कहेंगे कान।
आ गया है काल नया!!!3

आदरणीय मननजी, आपकी संलग्नता आश्वस्त कर रही है कि आपका प्रयास शुभकारी है. 

आपकी संसोधित रचना को प्रस्थापित कर दूँगा लेकिन आपके माध्यम से ’जगणात्मक’ शब्दों (जभान, १२१, ।ऽ।) को लेकर कुछ बातें मंच पर के नये अभ्यासियों से साझा करना चाहता हूँ. 

इसी आयोजन में आदरणीय अशोक कुमार रक्तालेजी ने दोहा के विषम चरण का प्रारम्भ जगण शब्द से न करने की सलाह दी थी. तथा आदरणीय अखिलेश भाईके एक चोहे पर आपति उठायी थी जो कि ’स्वतंत्र’ शब्द से प्रारम्भ हुआ था. यह वस्तुतः सही है कि कि दोहा का विषम चरण जगण शब्दों से प्रारम्भ नहीं हो सकता. सही कहिये, विषम चरण में जगण होना ही नहीम् चाहिये.

लेकिन जगण कोई शब्द मात्र न हो कर शब्दों की एक कुव्यवस्था है. यदि उसे शब्द-कलों के हिसाब साध लिया जाय तो उसका परिहार (निजात) हो जाता है. यानि त्रिकल के बाद त्रिकल रख कर षटकल बना लें तो जगण द्वारा उत्पन्न किया गया गेयता में गतिरोध समाप्त हो जाता है. 

आपकी इस संशोधित रचना (दोहा आधारित गीत) की एक पंक्ति के विषम चरण में जगण का प्रभाव बन रहा है. इसे हम उदाहरण की तरह ले सकते हैं कि ऐसा नहीं होना चाहिये. आपकी पंक्ति है - तब के सब बवाल गये,  

यहाँ बवाल शब्द  जगण है. इसको साधा नहीं गया है और यह स्पष्ट गतिरोध बना रहा है. 

तब के (चौकल) सब (द्विकल) बवा (त्रिकल) ल गये (चौकल) = ४ २ ३ ४ 

आपने दोहा सम्बन्धी आलेख में देखा होगा कि विषम चरण यदि समकल (द्विकल चौकल आदि) से प्रारम्भ हो तो शब्द-संयोजन का सही प्रारूप  ४ ४ ३ २ की तरह होता है. अर्थात आपकी यह पंक्ति पढ़ते समय अटकाव पैसा करेगी. इसे ही गेयता में अवरोध होना कहते हैं.

इसे दुरुस्त करने का प्रयास करें आदरणीय. फिर आपकी संशोधित रचना को मूल प्रस्तुति से प्रतिस्थापित कर दिया जायेगा.

सादर

आदरणीय सौरभ सर, सादर अभिवादन! गलतियों को समझते हुए दोहे और कुंडलियों में सुधार हेतु निवेदन कर रहा हूँ सुधार के साथ पूरी रचना यहाँ प्रस्तुत कर रहा हूँ अगर आपको सही लगे तो प्रतिस्थापित कर दे या और भी कोई त्रुटी हो तो अवश्य बताएं ...सादर

दोहे

बाल मंडली देख कर, मन में उठी उमंग.

हम भी होते बाल गर, खूब जमाते रंग.

क्यों बांटे मजहब हमें, चलें सभी के साथ

देश बढ़े आगे सदा, मिले हाथ से हाथ

भारत देश महान है, बच्चे इनकी शान

इसी तिरंगा के लिए, दिया बीर ने जान 

राम रहीम कबीर हैं, भारत की पहचान

रंग बिरंगे फूल हैं, गुलशन हिन्दुस्तान

 

कुण्डलियाँ

देखो आज सलीम को, मन में है उत्साह,

कादिर भी है साथ में, साबिर भरता आह!

साबिर भरता आह, कबीरा गीत सुनाये    

चारो से ही आज, धरा पर मस्ती छाये

इन बच्चों को देख, सभी मिल रहना सीखो

निश्छल है मुस्कान, तिरंगा कर में देखो  

 

सपने बुनते बीतते, बाल युवा के आज

फिर से आया है भला, देखो नया सुराज 

देखो नया सुराज, मित्र हम छोटे छोटे

मन में है उत्साह, तनिक भी ना है खोटे

ठगा बहुत ही बार, कहाते थे जो अपने

क्या पूरा कर पाय, दिखाये थे जो सपने 

अति सुन्दर दोहे। एक पर एक।

किस की करें प्रशंसा , किस में देखें दोष।
एक - एक को देखकर, तृष्णा बढ़े विशेष।।

भाई संजय झाजी, तुकान्तता के प्रति संवेदनशील होना उचित होगा. 

शुभेच्छाएँ.

आदरणीय जवाहर लालजी, आपने अत्यंत तर्क संगत संशोधन् अकर मन प्रसन्न कर दिया. हार्दिक बधाई 

यथा निवेदित तथा संशोधित.

आगे, ’अनेकों’ जैसे शब्द का प्रयोग न कीजियेगा. अन्क स्वयं ही बहुच्वचन संज्ञा है. उसका बहुवचन बनाना किसी तौर पर उचित नहीं. 

संशोधित रचना को प्रतिस्थापित करने के लिए हार्दिक आभार आदरणीय सौरभ सर, सहभागिता से ऐसे ही धीरे धीरे सीख जाऊंगा, वस्तुत: सही माने में यह मंच रचनात्मकता को बढ़ावा देता है मैंने अपनी सहभागिता बढ़ाई है. सतत प्रयास जरूरी है ऐसा मैं महसूस करता हूँ. सादर!   

आदरणीय सौरभ भाईजी

प्रथम योगराज भाईजी आपको हृदय से बधाई । लगातार हर रचना पर छांदसिक टिप्पणी से वातावरण साहित्यिक और पूरा उत्सव दो दिनों के लिए छंदमय हो गया था। 

संशोधित पूरी रचना पुनः पोस्ट कर रहा हँ , संकलन में प्रतिस्थापित करने की कृपा करें 

सादर 

संशोधित रचना  ............   

दोहा छंद

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शुभ्र वस्त्र और टोपियाँ, चर्चा करते पाँच। 
देश की आज़ादी पर, कभी न आये आँच॥  

झुके न झंडा देश का,  फहरे बारों मास।
आतंकी हैं घात में,   सभी पर्व हैं पास॥

 

लिए तिरंगा हाथ में,  युवा वर्ग में जोश।
सीमा पर ना चूक हो,  रहें न हम मदहोश॥ 

 

हर आतंकी पाक का, अब खायेगा मात।
आपस में हम एक हैं, सर्व धर्म सब जात॥.

कुण्डलिया छंद

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हर घर में हो जागरन, सीमा पर दिन रात।

आतंकी अब पाक के, कर न सके उत्पात॥
कर न सके उत्पात, हमारी जिम्मेदारी।
इक छोटी सी चूक, पड़े ना हम पर भारी॥
टोपी वस्त्र सफेद , ध्वजा है पाँचों कर में।
रहे सुरक्षित देश, यही चर्चा हर घर में॥

रोला छंद

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हम समझें ये बात,  और सब को समझायें। 
आतंकी औ’ पाक , हमेशा हमें लड़ायें॥
आये कभी न आँच, सफेद हरा भगवा पर।

सब धर्मों के लोग, रहें मिलकर जीवन भर॥                    
................
पाँच युवक गम्भीर, सभी को भारत प्यारा।
ध्वजा सफेद लिबास, संग टोपी है न्यारा॥.                    

करें भ्रांतियाँ दूर,  किसी को न हो शिकायत।

शांति और सद्भाव, देश की यही रवायत॥

............................................................

 

आदरणीय अखिलेश भाईजी, आपने संशोधन केलिए रचना-स्मुच्चय प्रस्तुत तो किया किन्तु आपकी मूल प्रस्तुति में किन-किन पंक्तियों पर आपत्ति उठायी गयी उसे नहीं देख पाये हैं.  कुछ पंक्तियाँ हरे रंगों में भी इंगित होती है, आदरणीय

सादर

आदरणीय सौरभ भाईजी

रायपुर धमतरी मार्ग में कहीं गड़बड़ी के कारण  तीन दिन [ सत्तर घंटे  ] बाद नेट कनेक्शन मिल पाया। वो भी पता नहीं कब तक साथ देगा। हरे रंग की तीन पंक्तियों में संशोधन किया हूँ । पूरी रचना को संकलन में प्रतिस्थापित करने की कृपा करें ।

सादर 

दोहा छंद

              

झंडा झुके न देश का, फहरे बारह मास।

आतंकी हैं घात में,  सभी पर्व है पास॥

 

हर आतंकी पाक का, खाएगा अब मात।

आपस में हम एक हैं, सर्व धर्म सब जात॥

 

रोला छंद

पाँच युवक गम्भीर, सभी को भारत प्यारा।

ध्वजा श्वेत परिधान, संग टोपी है न्यारा॥    

 

*************************************************************

 

 

मेरा अनुरोध इतना ही है कि टोपी को न्यारी होना चाहिये. इसीसे उक्त पंक्ति रंगीन है. पूरे पद में अंतिम संज्ञा टोपी चूँकि स्त्रीलिंग है अतः पंक्ति का आखिरी विशेषण स्त्रीलिंग हो जाएगा.

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Sushil Sarna commented on रामबली गुप्ता's blog post कुंडलिया छंद
"आदरणीय रामबली जी बहुत ही उत्तम और सार्थक कुंडलिया का सृजन हुआ है ।हार्दिक बधाई सर"
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Ashok Kumar Raktale replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 161 in the group चित्र से काव्य तक
" जी ! सही कहा है आपने. सादर प्रणाम. "
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सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 161 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीय अशोक भाईजी, एक ही छंद में चित्र उभर कर शाब्दिक हुआ है। शिल्प और भाव का सुंदर संयोजन हुआ है।…"
yesterday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 161 in the group चित्र से काव्य तक
"आ. भाई अशोक जी, सादर अभिवादन। रचना पर उपस्थिति स्नेह और मार्गदर्शन के लिए बहुत बहुत…"
Sunday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 161 in the group चित्र से काव्य तक
"अवश्य, आदरणीय अशोक भाई साहब।  31 वर्णों की व्यवस्था और पदांत का लघु-गुरू होना मनहरण की…"
Sunday
Ashok Kumar Raktale replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 161 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीय भाई लक्षमण धामी जी सादर, आपने रचना संशोधित कर पुनः पोस्ट की है, किन्तु आपने घनाक्षरी की…"
Sunday
Ashok Kumar Raktale replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 161 in the group चित्र से काव्य तक
"मनहरण घनाक्षरी   नन्हें-नन्हें बच्चों के न हाथों में किताब और, पीठ पर शाला वाले, झोले का न भार…"
Sunday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 161 in the group चित्र से काव्य तक
"आ. भाई सौरभ जी, सादर अभिवादन। रचना पर उपस्थिति व स्नेहाशीष के लिए आभार। जल्दबाजी में त्रुटिपूर्ण…"
Sunday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 161 in the group चित्र से काव्य तक
"आयोजन में सारस्वत सहभागिता के लिए हार्दिक धन्यवाद, आदरणीय लक्ष्मण धामी मुसाफिर जी। शीत ऋतु की सुंदर…"
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लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 161 in the group चित्र से काव्य तक
"शीत लहर ही चहुँदिश दिखती, है हुई तपन अतीत यहाँ।यौवन  जैसी  ठिठुरन  लेकर, आन …"
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लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 161 in the group चित्र से काव्य तक
"सादर अभिवादन, आदरणीय।"
Sunday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 161 in the group चित्र से काव्य तक
"सभी सदस्यों से रचना-प्रस्तुति की अपेक्षा है.. "
Saturday

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