आदरणीय मित्रों !
नमस्कार|
'चित्र से काव्य तक प्रतियोगिता’ अंक -११ में आप सभी का हार्दिक स्वागत है !
दोस्तों !
जरा इन दादा जी व दादीजी को देखिये तो .......कितने खुश हैं ये दोनों ..... वास्तव में यही तो असली प्यार है और इसी उम्र में ही ऐसे सहारे की आवश्यकता होती है वस्तुतः वैलेंटाइन डे के मूल भाव इस चित्र में पूरी तरह समाविष्ट हैं ! हमारा यह दायित्व है कि हम सब इन्हें कदम-कदम पर हर प्रकार का सहयोग देते रहें |
छिपा है प्यार दिल में मिला इनको करीने से,
नहीं पतवार हाथों में , मजा मौजों में जीने से.
बुजुर्गों की मदद करके सुकूं से जिंदगी गुज़रे,
दुआ इनकी मिले जिनको दमक जायें नगीने से.
आइये तो उठा लें आज अपनी-अपनी कलम, और कर डालें इस चित्र का काव्यात्मक चित्रण !
और हाँ! पुनः आपको स्मरण करा दें कि ओ बी ओ प्रबंधन द्वारा यह निर्णय लिया गया है कि यह प्रतियोगिता सिर्फ भारतीय छंदों पर ही आधारित होगी साथ-साथ इस प्रतियोगिता के तीनों विजेताओं हेतु नकद पुरस्कार व प्रमाण पत्र की भी व्यवस्था की गयी है ....जिसका विवरण निम्नलिखित है :-
"चित्र से काव्य तक" प्रतियोगिता हेतु कुल तीन पुरस्कार
प्रथम पुरस्कार रूपये १००१
प्रायोजक :-Ghrix Technologies (Pvt) Limited, Mohali
A leading software development Company
द्वितीय पुरस्कार रुपये ५०१
प्रायोजक :-Ghrix Technologies (Pvt) Limited, Mohali
A leading software development Company
तृतीय पुरस्कार रुपये २५१
प्रायोजक :-Rahul Computers, Patiala
A leading publishing House
नोट :-
(1) १७ तारीख तक रिप्लाई बॉक्स बंद रहेगा, १८ से २० तारीख तक के लिए Reply Box रचना और टिप्पणी पोस्ट करने हेतु खुला रहेगा |
(2) जो साहित्यकार अपनी रचना को प्रतियोगिता से अलग रहते हुए पोस्ट करना चाहे उनका भी स्वागत है, अपनी रचना को"प्रतियोगिता से अलग" टिप्पणी के साथ पोस्ट करने की कृपा करे |
(3) नियमानुसार "चित्र से काव्य तक" प्रतियोगिता अंक-१० के प्रथम व द्वितीय स्थान के विजेता इस अंक के निर्णायक होंगे और नियमानुसार उनकी रचनायें स्वतः प्रतियोगिता से बाहर रहेगी | प्रथम, द्वितीय के साथ-साथ तृतीय विजेता का भी चयन किया जायेगा |
सभी प्रतिभागियों से निवेदन है कि रचना छोटी एवं सारगर्भित हो, यानी घाव करे गंभीर वाली बात हो, रचना पद्य की किसी विधा में प्रस्तुत की जा सकती है | हमेशा की तरह यहाँ भी ओ बी ओ के आधार नियम लागू रहेंगे तथा केवल अप्रकाशित एवं मौलिक कृतियां ही स्वीकार किये जायेगें |
विशेष :-यदि आप अभी तक www.openbooksonline.com परिवार से नहीं जुड़ सके है तो यहाँ क्लिक कर प्रथम बार sign up कर लें|
अति आवश्यक सूचना :- ओ बी ओ प्रबंधन ने यह निर्णय लिया है कि "चित्र से काव्य तक" प्रतियोगिता अंक-१०, दिनांक १८ फरवरी से २० फरवरी की मध्य रात्रि १२ बजे तक तीन दिनों तक चलेगी, जिसके अंतर्गत आयोजन की अवधि में प्रति सदस्य अधिकतम तीन पोस्ट ही दी जा सकेंगी साथ ही पूर्व के अनुभवों के आधार पर यह तय किया गया है कि नियम विरुद्ध व निम्न स्तरीय प्रस्तुति को बिना कोई कारण बताये और बिना कोई पूर्व सूचना दिए प्रबंधन सदस्यों द्वारा अविलम्ब हटा दिया जायेगा, जिसके सम्बन्ध में किसी भी किस्म की सुनवाई नहीं की जायेगी |
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जन्म दिन की सादर बधाईयाँ आदरणीय अविनाश जी सुन्दर छंद रचा है.बधाई स्वीकारें..
करता सबका शुक्रिया,सबका है आभार.
आदरणीय अविनाश बागडे जी, मैं इस मंच पर प्रतिभा और वेराइटी देख देख कर हैरान हो रहा हूँ. छन्न पकैया में शायद बाकी सभी विधायों से ज्यादा आपनापन और खुलापन झलक रहा है. ऐसा लगता है जैसे यकायक हवाओं में अपनी मिटटी की खुशबु का बसेरा हो गया हो. जिस सादगी और सरलता से आपने अपनी बात कही है वह भी बेमिसाल है. ११ द्विपदीयों में आ अलग अलग और बेहद खूबसूरत शब्द चित्र रचे हैं आपने, आपको और आपकी काव्य प्रतिभा को कोटिश: नमन.
आदरणीय रवि जी, जिस आत्मीयता के साथ आपने मेरे प्रयास को saraha us andaz ne mujhe bhav-vibhor kar diya
भाई रवि जी सत्य वचन कहे हैं आपने ! आदरणीय अविनाश जी की तो बात ही कुछ और है !
जन्मदिन की शुभकामनाए ....देरी के लिए क्षमा करें आदरणीय बागडे जी .... खूबसूरत छन्न पकैयाँ के हार्दिक बधाई
कुण्डलिया (प्रतियोगिता से बाहर)
महके जीवन में कभी, बिन तेरे ना रंग
कभी अकेला तू कहाँ, हर पल तेरे संग
हर पल तेरे संग, निभाती जाऊं कसमें
फूलों का है साथ, पगी जाऊं मैं रस में
मन मेरा आकाश, परिंदा बन तू चहके
अपना सुन्दर बाग, सदा ऐसे ही महके
__________________________________
जलता दिनभर धूप में, थका नहीं है भोर
मुसकाता मिलने चला, संझा से चितचोर
संझा से चितचोर, यामिनी खिल मुस्काई
निज आँगन में नेह, चांदनी सी बिखराई
आँचल डाले रात, दिवस तबतक ना ढलता
रोशन रखने राह, बना सूरज वह जलता
__________________________________
प्रेम धरा है, गगन है, प्रेम सरी की धार
प्रेम 'शेष' का फन बड़ा, जहां थमा संसार
जहां थमा संसार, नहीं जो देता धोखा
सुन्दर पावन आंच, भरे उत्साह अनोखा
ऐसा प्रेरक प्यार, समय मोहित ठहरा है
रंग बिरंगे फूल, सींचती प्रेम धरा है
___________________________________
सादर.
संजय मिश्रा 'हबीब'
Habib ji laajabaab kundliya likhi hain ek se badhkar ek.
सराहना के लिए सादर आभार आदरणीया राजेश कुमारी जी.
दिल से काते हैं कई, जैसे सूत महीन.
कुंडलिया वैसे रचे, वो भी इक ना,तीन
रहे आप आधार, शिष्य को सिखलाते हैं.
छंदों के सब सार, अनुज को रहें बताते...
सादर आभार गुरुवर.
//दिल से काते हैं कई, जैसे सूत महीन.
कुंडलिया वैसे रचे, वो भी इक ना,तीन //
आदरणीय प्रधान संपादक जी ! क्या प्रतिक्रया दोहा रचा है आपने ! बहुत-बहुत बधाई आपको !
आवश्यक सूचना:-
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