For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

सवा लाख से एक लड़ावाँ ताँ गोविंद सिंह नाम धरावाँ

"चिड़ियाँ नाल मैं बाज लड़ावाँ
गिद्दडां नूँ मैं शेर बणावाँ
सवा लाख से एक लड़ावाँ
ताँ गोविंद सिंह नाम धरावाँ"


सिखों के दसवें गुरु श्री गोविंद सिंह द्वारा 17 वीं शताब्दी में कहे गए ये शब्द आज भी सुनने या पढ़ने वाले की आत्मा को चीरते हुए उसके शरीर में एक अद्भुत शक्ति का संचार करते हैं।
ये केवल शब्द नहीं हैं,शक्ति का पुंज है, एक आग है अन्याय के विरुद्ध,
अत्याचार के विरुद्ध,
भय के विरुद्ध,शक्ति के दुरुपयोग के विरुद्ध, निहत्थे और बेबसों पर होने वाले जुल्म के विरुद्ध। कल्पना कीजिए उस आत्मविश्वास की जो एक चिडिया को बाज से लड़ा सकता है, उस विश्वास की जो गीदड़ को शेर बना सकता है, उस भरोसे की जिसमें एक अकेला सवा लाख से जीत सकता है। और हम सभी जानते हैं कि उन्होंने जो कहा वो करके भी दिखाया। मुगलों के जुल्म और अत्याचारों से टूट चुके भारत में एक नई शक्ति का संचार करने के लिए उन्होंने 1699 में बैसाखी के दिन आनन्दपुर साहिब में एक सभा का आयोजन किया। हजारों की इस सभा में हाथ में नंगी तलवार लिए भीड़ को ललकारा, " इस सभा में कौन है जो मुझे अपना शीश देगा? "
गुरु जी के ये शब्द सुनकर पूरी सभा में से जो पांच लोग अपने भीतर हौसला लिए अपना सर्वस्व न्यौछावर करने के लिए आगे आए इन्हें गुरु गोविंद सिंह जी ने  "पंज प्यारे" का नाम देकर खालसा पंथ की स्थापना की  और नारा दिया

"वाहे गुरु जी दा खालसा,वाहे गुरु जी दी फतेह"।


'खालसा' यानि की  'शुद्ध , खालिस,पवित्र '। हर खालसा को गुरु गोविंद सिंह जी ने केश व पगड़ी के साथ  एक ऐसी पहचान दी कि कोई भी व्यक्ति सहायता के लिए खालसा को दूर से पहचान कर उससे मदद मांग सके और इतिहास गवाह है कि इसी भारतीय समाज में से  'खलसा' वो बनकर निकला कि आज भी पूरा देश न सिर्फ उनका सम्मान करता है बल्कि भारत भूमि के अनेक युद्धों में उनके द्वारा दिए गए बलिदानों का ॠणी है। 


सिखों के नाम प्राचीन भारत में वैसे तो अनेकों युद्ध हैं लेकिन अफसोस की बात है कि हमारे देश में बहुत कम लोग जानते हैं कि उनके द्वारा जीता  गया एक ऐसा भी युद्ध है जिसे यूनेस्को द्वारा छापी गई किताब  "स्टोरीज़ आफ ब्रेवरी" अर्थात्  'बहादुरी की कहानियाँ ' में शामिल किया गया है। ब्रिटिश शासन काल में सारागढ़ी के किले पर एक बार 12000 अफगानी सिपाहियों ने आक्रमण किया था जिसे 36 सिंह रेजिमेंट के मात्र  21 सिख सिपाहियों ने अपनी वीरता से नाकाम करके एक असम्भव से दिखने वाले काम को एक ऐसी सत्य घटना में तब्दील कर दिया कि 12 सितंबर 1897 को होने वाला यह युद्ध विश्व के पांच महानतम युद्धों में शामिल हो गया।


इस दिन  गुरु गोविंद सिंह जी के  'खालसा' ने उनकी कही बात चरितार्थ कर दी  " सवा लाख के साथ एक लड़ाऊँ" ।
उन्हें याद किया जाता है उनकी वीरता के लिए,उनके शौर्य के लिए,उस संघर्ष के लिए जो उन्होंने किया इस समाज में व्याप्त ऊँच नीच  और जातिवाद को खत्म करने के लिए। धर्म की रक्षा के लिए जो बलिदान उन्होंने दिए,उसकी मिसाल इतिहास में कहीं देखने को नहीं मिलती। मात्र नौ वर्ष की आयु में जब औरंगजेब के जुल्म से घबराए कश्मीरी पंडित इनके पिता गुरु श्री तेगबहादुर जी के पास मदद मांगने आए तो वो गुरु गोविन्द सिंह जी ही थे जिन्होंने अपने पिता को उस महान बलिदान के लिए प्रेरित किया था । इतना ही नहीं इनके दो बड़े पुत्र चमकौर के युद्ध में शहीद हो गए और दो छोटे पुत्र मात्र 8 और 5 वर्ष की आयु में हिन्दू धर्म की रक्षा करते हुए दीवार में जिंदा चिनवा दिए गए थे। वो इन्हीं की दी शिक्षा थी जो उस अबोध आयु के बालक मुसलमान सूबेदार वजीर खान की कैद में होते हुए भी डरे नहीं और धर्म परिवर्तन के नाम पर अपने दादा की कुर्बानी याद करते हुए बोले कि जिन्होंने हिन्दू धर्म की रक्षा के लिए अपने प्राणों की परवाह भी नहीं की तुम उनके पोतों को मुसलमान बनाने की सोच भी कैसे सकते हो?


इन कुर्बानियों ने गुरु गोविंद सिंह जी को और मजबूत बना दिया और  1705 में  उन्होंने औरंगजेब को छंद शेरों के रूप में फारसी भाषा में एक पत्र लिखा जिसे "जफरनामा" कहा जाता है। हालांकि यह पत्र औरंगजेब के लिए था और इसमें उन्होंने औरंगजेब को उसका साम्राज्य नष्ट करने की चेतावनी दी थी लेकिन इसमें जो उपदेश दिए गए हैं उनके आधार पर इसे धार्मिक ग्रंथ के रूप में स्वीकार करते हुए दशम ग्रंथ में शामिल किया है।


गुरु गोविंद सिंह जी इतिहास के वो महापुरुष हैं जो  किसी रियासत के राजा तो नहीं थे लेकिन अपनी शख्सियत के दम पर लोगों के दिलों पे राज करते थे। उन्होंने इस गुलाम देश के लोगों को सिर उठाकर जीना सिखाया, लोगों को विपत्तियों से लड़ना सिखाया, यह विश्वास दिलाया कि अगर देश आज गुलाम है तो इसका भाग्य हम ही बदल सकते हैं। वो गुरु गोविंद सिंह जी ही थे जिन्होंने अपने भक्तों को एक सैनिक बना दिया, उनकी श्रद्धा और भक्ति शक्ति में बदल दी, जिनके नेतृत्व में इस देश का हर नागरिक एक वीर योद्धा बन गया, सिखों के दसवें एवं आखिरी गुरु की 350 साल पुरानी हर सीख आज भी प्रासंगिक है। उनके बताए पथ पर चलकर जिस देश ने अपना इतिहास बदला आज एक बार फिर से उन्हीं का अनुसरण करके हम अपने देश का भविष्य बदल सकते हैं।आवश्यकता है अपनी आने वाली पीढ़ी को उनके बताए संस्कारों से जोड़ने की।

.
डॉ नीलम महेंद्र

"मौलिक व अप्रकाशित"  

Views: 603

Attachments:

Replies to This Discussion

बेहतरीन ज्ञानवर्धक सृजन। हार्दिक बधाइयां आदरणीया डॉ. नीलम उपाध्याय साहिबा।

RSS

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity

Admin posted a discussion

"ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-184

परम आत्मीय स्वजन,ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरे के 184 वें अंक में आपका हार्दिक स्वागत है | इस बार का…See More
11 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर''s blog post "मुसाफ़िर" हूँ मैं तो ठहर जाऊँ कैसे - लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर'
"आ. भाई मिथिलेश जी, सादर अभिवादन। विस्तृत टिप्पणी से उत्साहवर्धन के लिए हार्दिक आभार।"
23 hours ago
Chetan Prakash and Dayaram Methani are now friends
yesterday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-179
""ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-179 को सफल बनाने के लिए सभी सहभागियों का हार्दिक धन्यवाद।…"
yesterday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-179
""ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-179 को सफल बनाने के लिए सभी सहभागियों का हार्दिक धन्यवाद।…"
yesterday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-179
"आदरणीय जयहिंद रायपुरी जी, प्रदत्त विषय पर आपने बहुत बढ़िया प्रस्तुति का प्रयास किया है। इस…"
yesterday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-179
"आ. भाई जयहिंद जी, सादर अभिवादन। अच्छी रचना हुई है। हार्दिक बधाई।"
yesterday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-179
"बुझा दीप आँधी हमें मत डरा तू नहीं एक भी अब तमस की सुनेंगे"
yesterday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-179
"आ. भाई मिथिलेश जी, सादर अभिवादन। गजल पर विस्तृत और मार्गदर्शक टिप्पणी के लिए आभार // कहो आँधियों…"
yesterday
Jaihind Raipuri replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-179
"कुंडलिया  उजाला गया फैल है,देश में चहुँ ओर अंधे सभी मिलजुल के,खूब मचाएं शोर खूब मचाएं शोर,…"
yesterday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-179
"आदरणीय लक्ष्मण धामी जी मेरे प्रयास को मान देने के लिए हार्दिक आभार। बहुत बहुत धन्यवाद। सादर।"
Saturday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-179
"आदरणीय लक्ष्मण धामी जी आपने प्रदत्त विषय पर बहुत बढ़िया गजल कही है। गजल के प्रत्येक शेर पर हार्दिक…"
Saturday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service