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!!! भजन !!!

विशनु सी बंशी वाला, मुरली मनोहर लाला!
बंशी ने हरा मेरा मान, कान्ह मैं तेरा गुलाम।।

तान त्रिपुरारी सोहे, बम-बम-बम हर-हर बोले।
आये कैलास से भोला, विषयी विरति ज्ञान लेके।।
काम शर चलाने वाला, कामेषु को ऐसा जारा ।
आशुतोष का उसे प्राणदान, कान्ह मैं तेरा गुलाम।।1

लोभ-क्षोभ-मद-शोले, कदम्ब डाली पर डोले ।
ब्रम्हा सा शान धर के, गोपी संग रास रच के।।
बसना हरण नन्दलाला, राधा सा नाम वाला ।
राधे ने हरा मेरा काम, कान्ह मैं तेरा गुलाम।।2

माया-मोह-क्रोध सारे, गोकुल ऐसे बल धारे ।
सखा-ग्वाल-बाल संग में, मथुरा के दंगल मारे।।
अर्जुन का सारथि कृष्णा, गीता का ज्ञान वाला ।
गीता ने हरा मेरा मान, कान्ह मैं तेरा गुलाम।।3

दहिया-माखन की चोरी, छोरिन की गगरी फोरी।
मैया को बूझन गोरी, उखल उर जसुमति डोरी।।
मुख मा सृषिट अस न्यारी, उगली गोबर्धन धारी।
छोरे ने दिया सत्यम नाम, कान्ह मैं तेरा गुलाम।।4

के0पी0सत्यममौलिक व अप्रकाशित

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Replies to This Discussion

बहुत मनभावन भजन! मथुरा वृंदावन का साक्षात्कार करा दिया समझिए|

बधाई आ0 केवल जी! 

आदरणीया गीतिका जी, आपको भजन पसन्द आया, मेरा प्रयास सार्थक हुआ। आपके उत्साहवर्धन हेतु आपका हार्दिक आभार। सादर,

जय जय श्री राधेश्याम . भक्तिभाव से भरा भजन . आनन्द मन मगन .

आ0 विजय सर जी,  जय जय श्री राधे...............भजन पर आपका अपार स्नेह, अनुमोदन और उत्साहवर्धन हेतु हार्दिक आभार।  सादर,

भक्ति भाव से परिपूर्ण भजन, बधाई स्वीकारें आदरणीय केवल जी

आ0 जितेन्द्र भार्इ जी,  जय जय श्री राधे...............भजन पर आपका अपार स्नेह, अनुमोदन और उत्साहवर्धन हेतु हार्दिक आभार।  सादर,

  आ0 सुधीजनों.   सादर प्रणाम!    मैं करीब 10 वर्षो  तक साहित्य से दूर आध्यातिमक और धार्मिक विचारों में डूब गया था।  जहां मैंने विभिन्न धर्म ग्रंथो, वेदों और उपनिषदों के ऋचाओं विशेष कर गीता के गूढ़ रहस्यों को समझने की कोशिश की।   शुष्क व गहन विषयों पर विचारों को शब्दों में पिरोता रहा।  अपनी बुधिद और विवेक की सीमाओं में मैं जो कुछ भी सहेज सका, उनको सहजता की मालाओं जप किया। जब कभी मन उद्विग्न होता है तो.......इसी में खो जाता हूं।  जय जय श्री राधे............... हार्दिक आभार।  सादर,

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