बहर - 2122 1212 22
अपने दुश्मन पे गुलफिशानी की l
आबरू उसकी पानी पानी की ।।
वार मैंने निहत्थों पर न किया
यूँ ...अदा रस्म खानदानी की l
ख़त्म उस ने ही कर दी ऐ - यारो
जिसने शुरू प्यार की कहानी की l
होंठ उनके जब न कह सके सच
फ़िर निग़ाहों ने सच बयानी की l
शख्स वो दोस्तों था पत्थर दिल
खामखाँ उस पे गुलफिशानी की l
सोचा बेहद के क्या रखूँ ता - उम्र
फ़िर ग़ज़ल " प्रेम " की निशानी की…
Posted on December 31, 2017 at 1:12pm — 4 Comments
बहर - 221 1222 221 1222
ये मेरा नहीं यारो ये बुजुर्गों का मत है ......
माँ बाप के चरणों में दिखती यहाँ ज़न्नत है ......
बस मेरी ये नादानों से एक शिक़ायत है .....
बेटा लगे प्यारा क्यों बेटी से न चाहत है .....
ये ख़्वाब नहीं कोई ये एक हकीक़त है ....
कुछ लोग कहे उल्फ़त उल्फ़त नहीं आफ़त है ......
संसार में इन दोनों में फ़र्क हैं इतना सा
है हाथ अगर बेटा तो बेटी इबादत है .....
कुछ शख्स ही कह…
Posted on December 24, 2017 at 1:37pm — 7 Comments
बहर - 221 2122 221 2122
यूँ मेरी नज़रें ग़ज़लों की हर किताब पर हैं .......
जैसे....... शराबियों की नज़रें शराब पर हैं ....
जब .चल दिया मैं उनकी महफ़िल से तो वो बोले
ठहरो ......कुछेक पल लब मेरे ज़वाब पर हैं .....
हाँ , बेगुनाह होती है अपनी भावनायें
इल्जाम इसलिये तो लगते शबाब पर हैं .....
ऐ - मौला तुम भी रखना अपनी निगाहें उस पर
नज़रें ज़माने भर की उस इक ग़ुलाब पर हैं ......
मैंने चमकने की है जब से यूँ बात…
ContinuePosted on December 17, 2017 at 9:17pm — 10 Comments
Posted on December 3, 2017 at 1:23pm — 15 Comments
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