पावस के कुछ दोहे-
तुम तक ले आईं हमें,पकड़ पकड़ कर हाथ
सुधियाँ तो चलतीं गयीं, पुरवाई के साथ.
मैं हूँ तट का बांसवन,तू नादिया की धार
तूफ़ानों ने कर दिए,मिलने के आसार.
सुधियों के उपवन खिले,उस पर बरसा मेह
फागुन फागुन…
Posted on August 1, 2013 at 9:00pm — 16 Comments
कुछ चले हैं ,कुछ बढ़े हैं, कुछ चढ़े हैं हाँ मगर,
आख़िरी सोपान तक ,पहुंचे नहीं हैं हम अभी.
बांटते हैं रोज लाखों लाख खुशियाँ , हाँ मगर,
आख़िरी इन्सान तक पहुंचे नहीं हैं हम अभी.
कौन समझाए हमें, ये है हमारी त्रासदी,
जागने भर में, अभी तक खर्च…
ContinuePosted on August 21, 2011 at 4:54pm — 2 Comments
गीत
भर आए परदेशी छालों से पाँव, चलो लौट चलें.
दुखियारे तन-मन से गीतों के गाँव, चलो लौट चलें.
…
ContinuePosted on March 23, 2011 at 7:17pm — 2 Comments
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Comment Wall (8 comments)
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राजेश भाई, सप्रेम राधे-राधे । फागुन फागुन मन हुआ,सावन सावन देह.. । ऐसे सुंदर दोहे और अच्छी गजल के लिए बधाई।.
ओपन बुक्स ऑनलाइन प्रबंधन द्वारा आपकी रचना को महीने का सर्वश्रेस्थ रचना चुने जाने पर बहुत बहुत बधाई....
HEARTLY CONGRATULATIONS RAJESH JEE...
मुख्य प्रबंधकEr. Ganesh Jee "Bagi" said…
आदरणीय राजेश शर्मा जी ,
प्रणाम !
आपकी कविता को महीने की सर्वश्रेष्ठ रचना (Best Creation of the Month) चुने जाने पर बधाई स्वीकार करे, उम्मीद है कि आगे भी आप कि रचनायें और अन्य रचनाओं पर आपकी बहुमूल्य टिप्पणियाँ पढ़ने को मिलती रहेगी,
आपका
गनेश जी "बागी"
आदरणीय राजेश शर्मा जी ,
सादर अभिवादन !
मुझे यह बताते हुए हर्ष हो रहा है कि आप की कविता "अक्षत,हल्दी छूकर सपने" को महीने की सर्वश्रेष्ठ रचना (Best Creation of the Month) के रूप मे सम्मानित किया गया है तथा ओपन बुक्स ऑनलाइन के मुख्य पृष्ठ पर आपके छाया चित्र के साथ स्थान दिया गया है,
इस शानदार उपलब्धि पर बधाई स्वीकार करे,धन्यवाद,
आपका
एडमिन
ओपन बुक्स ऑनलाइन
मुख्य प्रबंधकEr. Ganesh Jee "Bagi" said…