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सन अड़तालीस की तीस जनवरी के दिन
नहीं मरे थे तुम
बापू
तुम एक गोली से
मर भी नहीं सकते थे
तुम्हारे जर्जर हो चुके शरीर को
सिर्फ भेद पाई थी
वह गोली
चंद सूखी लकड़ियों से भी
नहीं जल सकते थे तुम
बापू
तुम्हारी चिता जला पाई थी
सिर्फ तुम्हारे अचेत शरीर को
तुम्हे कंधा देने
उमड़ पड़ा था पूरा देश
आज भी बदस्तूर जारी है
तुम्हें कंधा देना
बापू
आज भी हर घर…
ContinuePosted on December 7, 2013 at 12:00am — 9 Comments
ये दीवारें बहुत ऊंची और चौड़ी हैं
कि कोई तांक झांक न कर सके
लेकिन यहां एक खिड़की है
शोर मत करो,ये शरीफों कि वस्ती है
एक औरत जो घूंघट ओड़कर आती है
और घूंघट ओड़कर चली जाती है
एक मोटर इस वस्ती से निकलकर
एक दूसरी वस्ती में जाती है हर रोज
शोर मत करो, ये शरीफों कि वस्ती है
उसके कपड़ॆ बहुत उजले हैं
और महीन भी बहुत हैं
नजदीक न जाओ मैले हो सकते हैं
और महीन रेशों के बीच से
परावर्तित किरणें तुम्हरी आंखों…
ContinuePosted on December 2, 2013 at 11:00pm — 8 Comments
गली,कटी, तपकर खिली, माटी की संतान
माटी से मोती बने, माटी से इंसान
माटी से मूरत बने, मूरत में भगवान
माटी की भक्ति करे, तर जाये इंसान
माटी से उपजें सभी, माटी में ही अंत
माटी का घर छोड़ के, जाये सभी अनंत
मौलिक व अप्रकाशित
Posted on September 27, 2013 at 12:00am — 11 Comments
प्रश्न होते हैं ,उत्तर भी होते हैं रास्ते ,
पूर्व-पश्चिम और दक्षिण
सभी दिशाओं मे होते हैं रस्ते
कभी घोड़ों की टापों से कुचले जाते हैं
तो कभी फूलों से सजाये जाते हैं रास्ते
क्या जमीं कया समुंदर आशमां मे भी होते हैं रास्ते
तो क्या मंजिले नसीब नहीं होती सभी को,
पर होते हैं सभी के अपने –अपने रास्ते
कभी मंजिल तक पहुचाते हैं तो कभी खुद मंजिल बन जाते हैं रास्ते
उनकी कहां मंजिलें होती हैं
जो खुद बनाते हैं…
ContinuePosted on August 31, 2013 at 11:08pm — 8 Comments
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Comment Wall (1 comment)
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सदस्य कार्यकारिणीअरुण कुमार निगम said…
प्रिय हेमंत शर्मा जी, ओपन बुक्स ऑन लाइन में आपका हार्दिक स्वागत है..............