नई सुबह का इन्तिज़ार
मुझे भी है.....
काले पीले पत्ते पेड़ों पर
सूखगए हैं, किसी नमी
आँखों में पानी नहीं है
हो गयी हैं निष्ठुर पीतल सी !
नई सुबह क्या बेहतर होगी
प्रश्न खड़ा है, मेरे सम्मुख
नये साल का मैं लिखूँ क्या
आमुख.......?
हर दिन एक नया दिन होता है
कल से आज सदा बेहतर होता है
निर्विवाद यह उक्ति अब तो
शरमाई सी अलग खड़ी है......!
नई सुबह का इन्तिज़ार भी
करना बेमानी है, यारो !
परिवेश जब इतना अंधकार मय है
पौ…
Added by Chetan Prakash on January 1, 1970 at 12:00am — 1 Comment
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