दोहा त्रयी. . . सन्तान
सन्तानों के बन गए ,अपने- अपने नीड़ ।
वृद्ध हुए माँ बाप अब, तन्हा बाँटें पीड़ ।।
अर्थ लोभ हावी हुए, भौतिक सुख विकराल ।
क्षीण दृष्टि माँ बाप की, ढूँढे अपना लाल ।।
सन्तानों की आहटें , देखें अब माँ बाप ।
वृद्ध काल में बन गई, ममता जैसे श्राप ।।
सुशील सरना / 19-1-24
मौलिक एवं अप्रकाशित
Added by Sushil Sarna on January 19, 2024 at 1:00pm — 4 Comments
दोहा त्रयी. . . शंका
शंका व्यर्थ न कीजिए, यह दुख का आधार ।
मन का छीने चैन यह , शूलों का संसार ।।
शंका का संसार में, कोई नहीं निदान ।
इसके चलते हों सदा, रिश्ते लहू लुहान ।।
शंका बैरी चैन की, नफरत का यह द्वार ।
प्यार भरे संसार में, यह भरती अंगार ।।
सुशील सरना / 17-1-24
मौलिक एवं अप्रकाशित
Added by Sushil Sarna on January 17, 2024 at 2:59pm — 2 Comments
दोहा पंचक. . .
कितनी चंचल हो गई, बूंद ओस की आज ।
संग किरण के घास पर, नाचे बिन आवाज ।।
मौसम आया पोष का, लगे भयंकर शीत ।
मुख से निकले प्रीत के, कंपित सुर में गीत ।।
लो धरती पर हो गया , शीत धुंध का राज ।
भानु धुंधला सा हुआ, छुपा ताप का ताज।।
हरित पर्ण पर ओस ज्यों , लगती जीवन आस।
बूँद- बूँद में कल्पना, कवि की भरे उजास ।।
शीत भगाने के लिए, जलने लगे अलाव ।
धीमी-धीमी आँच में, चली प्रेम की नाव…
Added by Sushil Sarna on January 10, 2024 at 3:29pm — 3 Comments
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