तेरे मेरे मुक्तक :मात्रा आधारित....
1.
ख़्वाब फिर महके हैं सावन की रात में।
जवाँ दिल बहके ..हैं सावन की रात में।
बारिश की बूंदों में .उल्फ़त की आतिश-
जज़्बात दहके हैं ..सावन ..की रात में।
2.
सालों साल उनकी खबर नहीं .आती ।
कभी ख़्वाबों में वो नज़र नहीं आती ।
ऐसे रूठे वो कि . रूठ गयी साँसें -
दिल के शहर में अब सहर नहीं आती।
3.
खुशी के पर्दे में क्यूँ नमी .बनी रहती है।
हर जानिब इक गम की चादर तनी रहती है।
पैबंद सी लगती है हंसी अब होठों पर -
चश्मे साहिल पर गम की स्याही जमी रहती।
सुशील सरना
मौलिक एवं अप्रकाशित
Comment
क्षमा किस बात की भाई,सीखते सिखाते चलो ।
आदरणीय सुरेन्द्र नाथ सिंह 'कुशक्षत्रप'जी बात से ही बात बनती है। वार्तालाप ज्ञानार्जन के लिए होनी चाहिए। ये इसी मंच की विशेषता है। जो कुछ सीखे हैं यहीं सीखें हैं। आपके सहयोग का शुक्रिया।
आदरणीय समर कबीर साहिब, आदाब .... बिलकुल सही सर। आपके मार्गदर्शन का दिल से शुक्रिया। आदरणीय गोपाल जी के मुक्तक मैं अवशय पढ़ूँगा। मैं वर्ण मात्रा के हिसाब से सृजन कर रहा था न कि रुक्न या अरकान २१२२, १२२ आदि बनाकर। वार्ता से कुछ तो नतीजा निकला। आपका तहे दिल से शुक्रिया सर। अगर अनुज की कोई बात अप्रिय लगी हो तो क्षमा चाहूँगा। सादर
बह्र भी मात्रा के हिसाब से ही होती है,2122 यानी 7 इसके अलावा मुख्य बिंदु लय होती है,जो बह्र के बग़ैर मुमकिन नहीं,गोपाल जी के मुक्तक ध्यान से पढलें,सारी शंका दूर हो जायेगी ।
आद0 सुशील सरना जी सादर अभिवादन। मैं आपको गलत नहीं कह रहा हूँ। सिर्फ जानकारी के लिए ही पूछा हूँ। सादर
आदरणीय सुरेन्द्र नाथ सिंह 'कुशक्षत्रप' जी मैं आदरणीय समर कबीर साहिब की बात से कब इंकार कर रहा हूँ। उनकी हर सलाह मेरा मार्ग दर्शन करती हैं। सर किसी जानकार विद्वान् ने मेरे ही मुक्तक सृजन पर ये मार्गदर्शन किया था कि यदि पहला मिसरा बह्र में है तो बाकी के तीन मिसरे भी बह्र में होंगे और यदि पहला मिसरा मात्रा विधान पर आधारित है तो बाकी के ३ मिसरे भी मात्रा विधान पर आधारित होंगे। इसके अतिरिक्त चरणों की मात्रा सम संख्या में होगी विषम में नहीं। इसी आधार पर मैं सृजन करने का प्रयास करता हूँ अगर इस बारे में आपके बारे में और अधिक जानकारी हो तो मुझे भी साझा करें। हम सभी यहाँ छात्र हैं। मार्गदर्शन करने का लिए आपका हार्दिक आभार। सादर
प्यार का सारांश कोई छान कर लाये वहाँ से
पारदर्शी प्यार के सन्दर्भ दिखते हों जहां से
कृष्ण केवल राधिका का है दिवाना मान लूं तो
मोर का फिर पंख तेरी सेज पर आया कहाँ से
( 2122 2122 2122 2122 )
जो सहारों के सहारे हैं, सरसते वे नही
फाड़ देते जो धरा को हैं तरसते वे नही
चापलूसों की हकीकत है मुझे बेशक पता
जानता हूँ जो गरजते हैं, बरसते वे नही
(2122 2122 2122 212)
वक्त था जब मैं तुम्हारे प्यार को परिमापती थी
नित्य नव उल्लास में सारी दिशाएं नापती थी
तुम गए हो भूल पर, भूली नही हूँ मैं दिवानी
वह अधर स्पर्श जिस पर बांसुरी सा कांपती थी
(२१२२ २१२२ २१२२ २१२२)
जीवन में कब किस हाल में रहना पड़े
अपनी पीड़ा तरु-विहग से कहना पड़े
किसे पता है भाग्य क्या दिन दिखाएगा
हमें बनवास श्री राम सा सहना पड़े
(8,7,7 )
ये जनाब डॉ.गोपाल नारायण श्रीवास्तव जी के मुक्तक हैं,जो उन्होंने अपने ब्लॉग पर कुछ दिन पहले पोस्ट किये थे ।
आद0 सुशील सरना जी सादर अभिवादन। आपके मात्रिक सृजन का क्या आशय है क्योकि अभी तक मैंने मुक्तक सिर्फ बह्र पर ही देखी है, और नियम जैसा आद0 समर कबीर साहब ने अपने प्रतिक्रिया में लिखा है।। हो सकता है जैसा आप कह रहे हैं, वैसा भी हो पर अपने वैसा कहीं देखा नहीं है। सादर
आदरणीय समर कबीर साहिब, आदाब .... सर आपकी महत्वपूर्ण जानकारी के लिए हार्दिक आभार। सर वैसे, मैं आपकी बताई बातों का पालन करता आ रहा हूँ पर हाँ अलबता मैंने बह्र के स्थान पर मात्रिक सृजन को चुना है। मेरे अल्पज्ञान के अनुसार हम मुक्तक को मात्रिक या बह्र किसी एक विधा में सृजित कर सकते हैं। आपकी इस जानकारी का पुनः हार्दिक आभार।
ओबीओ पर मुक्तक के बारे में कोई आलेख नहीं मिला,जो थोड़ी बहुत जानकारी है आपसे साझा करता हूँ ।
मुक्तक विधा को उर्दू में 'क़ित'अ' कहते हैं,और इसका बहुवचन "क़ितआत",ये चार पंक्तियों का होता है,पहली,दूसरी और चौथी पंक्ति में क़ाफ़िये और रदीफ़ होती है,तीसरी पंक्ति में क़ाफ़िया और रदीफ़ नहीं होते,इसकी विशेषता ये है कि ऊपर की तीन पंक्तियों में कही गई बात को अंतिम पंक्ति में पूर्ण करना होता है,इसे ग़ज़ल की किसी भी बह्र में कहा जा सकता है,इसकी कोई विशेष बह्र नहीं होती,उम्मीद है आप समझ गए होंगे?इसके बाद भी कुछ प्रश्न हो तो पूछ सकते हैं ।
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