For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

तेरे मेरे मुक्तक :मात्रा आधारित....

तेरे मेरे मुक्तक :मात्रा आधारित....

1.
ख़्वाब फिर महके हैं सावन की रात में।
जवाँ दिल बहके ..हैं सावन की रात में।
बारिश की बूंदों में .उल्फ़त की आतिश-
जज़्बात दहके हैं ..सावन ..की रात में।

2.
सालों साल उनकी खबर नहीं .आती ।
कभी ख़्वाबों में वो नज़र नहीं  आती ।
ऐसे   रूठे वो   कि . रूठ  गयी  साँसें -
दिल के शहर में अब सहर नहीं आती।

3.
खुशी के पर्दे  में  क्यूँ   नमी .बनी   रहती है।
हर जानिब इक गम की चादर तनी रहती है।
पैबंद   सी   लगती   है  हंसी  अब  होठों पर -
चश्मे साहिल पर गम की स्याही जमी रहती।

सुशील सरना
मौलिक एवं अप्रकाशित

Views: 977

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by Samar kabeer on September 5, 2018 at 6:41pm

क्षमा किस बात की भाई,सीखते सिखाते चलो ।

Comment by Sushil Sarna on September 5, 2018 at 6:36pm

आदरणीय सुरेन्द्र नाथ सिंह 'कुशक्षत्रप'जी बात से ही बात बनती है। वार्तालाप ज्ञानार्जन के लिए होनी चाहिए। ये इसी मंच की विशेषता है। जो कुछ सीखे हैं यहीं सीखें हैं। आपके सहयोग का शुक्रिया।

Comment by Sushil Sarna on September 5, 2018 at 6:32pm

आदरणीय समर कबीर साहिब, आदाब .... बिलकुल सही सर। आपके मार्गदर्शन का दिल से शुक्रिया। आदरणीय गोपाल जी के मुक्तक मैं अवशय पढ़ूँगा। मैं वर्ण मात्रा के हिसाब से सृजन कर रहा था न कि रुक्न या अरकान २१२२, १२२ आदि बनाकर। वार्ता से कुछ तो नतीजा निकला। आपका तहे दिल से शुक्रिया सर। अगर अनुज की कोई बात अप्रिय लगी हो तो क्षमा चाहूँगा। सादर

Comment by Samar kabeer on September 5, 2018 at 6:18pm

बह्र भी मात्रा के हिसाब से ही होती है,2122 यानी 7 इसके अलावा मुख्य बिंदु लय होती है,जो बह्र के बग़ैर मुमकिन नहीं,गोपाल जी के मुक्तक ध्यान से पढलें,सारी शंका दूर हो जायेगी ।

Comment by नाथ सोनांचली on September 5, 2018 at 6:14pm

आद0 सुशील सरना जी सादर अभिवादन। मैं आपको गलत नहीं कह रहा हूँ। सिर्फ जानकारी के लिए ही पूछा हूँ। सादर

Comment by Sushil Sarna on September 5, 2018 at 6:10pm

आदरणीय  सुरेन्द्र नाथ सिंह 'कुशक्षत्रप' जी मैं आदरणीय समर कबीर साहिब की बात से कब इंकार कर रहा हूँ। उनकी हर सलाह मेरा मार्ग दर्शन करती हैं। सर किसी जानकार विद्वान् ने मेरे ही मुक्तक सृजन पर ये मार्गदर्शन किया था कि यदि पहला मिसरा बह्र में है तो बाकी के तीन मिसरे भी बह्र में होंगे और यदि पहला मिसरा मात्रा विधान पर आधारित है तो बाकी के ३ मिसरे भी मात्रा विधान पर आधारित होंगे। इसके अतिरिक्त चरणों की मात्रा सम संख्या में होगी विषम में नहीं। इसी आधार पर मैं सृजन करने का प्रयास करता हूँ अगर इस बारे में आपके बारे में और अधिक जानकारी हो तो मुझे भी साझा करें। हम सभी यहाँ छात्र हैं। मार्गदर्शन करने का लिए आपका हार्दिक आभार। सादर

Comment by Samar kabeer on September 5, 2018 at 5:57pm

प्यार का सारांश कोई  छान कर लाये वहाँ से

पारदर्शी प्यार के सन्दर्भ   दिखते हों जहां से 

कृष्ण केवल राधिका का है दिवाना मान लूं तो

मोर का फिर पंख तेरी सेज पर आया कहाँ से 

  ( 2122 2122 2122  2122 )

जो सहारों के सहारे हैं,  सरसते वे नही

फाड़ देते जो धरा को हैं तरसते वे नही 

चापलूसों की हकीकत है मुझे बेशक पता 

जानता हूँ जो गरजते हैं,  बरसते वे नही

  (2122 2122 2122  212)

वक्त था जब मैं तुम्हारे प्यार को परिमापती थी

नित्य नव उल्लास में   सारी दिशाएं नापती थी  

तुम गए हो भूल पर,   भूली नही हूँ मैं दिवानी   

वह अधर स्पर्श जिस पर  बांसुरी सा कांपती थी 

(२१२२     २१२२      २१२२    २१२२)

जीवन में कब किस हाल में रहना पड़े

अपनी पीड़ा  तरु-विहग से कहना पड़े

किसे पता है भाग्य क्या दिन दिखाएगा

हमें  बनवास  श्री राम सा सहना पड़े

(8,7,7 )

ये जनाब डॉ.गोपाल नारायण श्रीवास्तव जी के मुक्तक हैं,जो उन्होंने अपने ब्लॉग पर कुछ दिन पहले पोस्ट किये थे ।

Comment by नाथ सोनांचली on September 5, 2018 at 5:15pm

आद0 सुशील सरना जी सादर अभिवादन। आपके मात्रिक सृजन का क्या आशय है क्योकि अभी तक मैंने मुक्तक सिर्फ बह्र पर ही देखी है, और नियम जैसा आद0 समर कबीर साहब ने अपने प्रतिक्रिया में लिखा है।। हो सकता है जैसा आप कह रहे हैं, वैसा भी हो पर अपने वैसा कहीं देखा नहीं है। सादर

Comment by Sushil Sarna on September 5, 2018 at 4:34pm

आदरणीय समर कबीर साहिब, आदाब .... सर आपकी महत्वपूर्ण जानकारी के लिए हार्दिक आभार। सर वैसे, मैं आपकी बताई बातों का पालन करता आ रहा हूँ पर हाँ अलबता मैंने बह्र के स्थान पर मात्रिक सृजन को चुना है। मेरे अल्पज्ञान के अनुसार हम मुक्तक को मात्रिक या बह्र किसी एक विधा में सृजित कर सकते हैं। आपकी इस जानकारी का पुनः हार्दिक आभार।

Comment by Samar kabeer on September 5, 2018 at 12:21pm

ओबीओ पर मुक्तक के बारे में कोई आलेख नहीं मिला,जो थोड़ी बहुत जानकारी है आपसे साझा करता हूँ ।

मुक्तक विधा को उर्दू में 'क़ित'अ' कहते हैं,और इसका बहुवचन "क़ितआत",ये चार पंक्तियों का होता है,पहली,दूसरी और चौथी पंक्ति में क़ाफ़िये और रदीफ़ होती है,तीसरी पंक्ति में क़ाफ़िया और रदीफ़ नहीं होते,इसकी विशेषता ये है कि ऊपर की तीन पंक्तियों में कही गई बात को अंतिम पंक्ति में पूर्ण करना होता है,इसे ग़ज़ल की किसी भी बह्र में कहा जा सकता है,इसकी कोई विशेष बह्र नहीं होती,उम्मीद है आप समझ गए होंगे?इसके बाद भी कुछ प्रश्न हो तो पूछ सकते हैं ।

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity


सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 169 in the group चित्र से काव्य तक
"स्वागतम्"
4 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
गिरिराज भंडारी commented on लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर''s blog post सुखों को तराजू में मत तोल सिक्के-लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर'
"आदरणीय लक्ष्मण भाई अच्छी ग़ज़ल हुई है , बधाई स्वीकार करें "
17 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
गिरिराज भंडारी commented on सुरेश कुमार 'कल्याण''s blog post पूनम की रात (दोहा गज़ल )
"आदरणीय सुरेश भाई , बढ़िया दोहा ग़ज़ल कही , बहुत बधाई आपको "
17 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
गिरिराज भंडारी commented on गिरिराज भंडारी's blog post तरही ग़ज़ल - गिरिराज भंडारी
"आदरणीया प्राची जी , ग़ज़ल पर उपस्थित हो उत्साह वर्धन करने के लिए आपका हार्दिक आभार "
17 hours ago

सदस्य टीम प्रबंधन
Dr.Prachi Singh commented on गिरिराज भंडारी's blog post तरही ग़ज़ल - गिरिराज भंडारी
"सभी अशआर बहुत अच्छे हुए हैं बहुत सुंदर ग़ज़ल "
Wednesday
सुरेश कुमार 'कल्याण' posted a blog post

पूनम की रात (दोहा गज़ल )

धरा चाँद गल मिल रहे, करते मन की बात।जगमग है कण-कण यहाँ, शुभ पूनम की रात।जर्रा - जर्रा नींद में ,…See More
Monday

सदस्य कार्यकारिणी
गिरिराज भंडारी posted a blog post

तरही ग़ज़ल - गिरिराज भंडारी

वहाँ  मैं भी  पहुंचा  मगर  धीरे धीरे १२२    १२२     १२२     १२२    बढी भी तो थी ये उमर धीरे…See More
Monday

सदस्य कार्यकारिणी
गिरिराज भंडारी commented on गिरिराज भंडारी's blog post ग़ज़ल -मुझे दूसरी का पता नहीं ( गिरिराज भंडारी )
"आदरणीय लक्ष्मण भाई , उत्साह वर्धन के लिए आपका हार्दिक आभार "
Monday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-176
"आ.प्राची बहन, सादर अभिवादन। दोहों पर उपस्थिति और उत्साहवर्धन के लिए आभार।"
Sunday

सदस्य टीम प्रबंधन
Dr.Prachi Singh replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-176
"कहें अमावस पूर्णिमा, जिनके मन में प्रीत लिए प्रेम की चाँदनी, लिखें मिलन के गीतपूनम की रातें…"
Sunday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-176
"दोहावली***आती पूनम रात जब, मन में उमगे प्रीतकरे पूर्ण तब चाँदनी, मधुर मिलन की रीत।१।*चाहे…"
Jul 12
Admin replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-176
"स्वागतम 🎉"
Jul 12

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service