नैन कटोरे ..
नैन कटोरे
कब छलके
खबर न हुई
बस
ढूंढता रहा
भीगे कटोरों से
अपना मयंक
उस मयंक में
सुशील सरना
मौलिक एवं अप्रकाशित
Comment
आदरणीय बसंत कुमार शर्मा जी सृजन को आत्मीय मान देने का दिल से आभार।
आदरणीय सुशील सरना जी सादर नमस्कार, कम शब्दों में भावों की गंगा ही बहा दी आपने, वाह आनन्द आ गया
आदरणीय ब्रजेश नीरज जी , सादर प्रणाम। .. आपके सुझाव से मैं सहमत हूँ। हार्दिक आभार इस हेतु। दूसरी बात अंतिम दो पंक्तियों में मेरा आशय ये था अपना मयंक अर्थात अपना प्यार , अपना चाँद उस मयंक में अर्थात नभ के चाँद में या संक्षेप में यूँ कहें कि नभ के चाँद में मैं अपने चाँद को या अपने प्यार को ढूँढता रहा। कुछ ऐसे ही भावों को पंक्तियों में बाँधने का प्रयास किया था मैं। सादर। ....
आदरणीय पहली बात कि चन्द्र बिन्दु के स्थान पर उसका प्रयोग उचित होता है.
आख़िरी की दो पंक्ति का आशय समझाने का कष्ट करें.
सादर!
आदरणीय लक्ष्मण धामी जी सृजन के भावों को आत्मीय मान देने का दिल से आभार।
आदरणीय Samar kabeer, आदाब ..... सृजन पर आपकी स्नेहिल प्रशंसा का दिल से आभार।
आदरणीय मो आरिफ़ साहिब, आदाब ..... सृजन पर आपकी स्नेहिल प्रशंसा का दिल से आभार।
आ. भाई सुशील जी, बेहतरीन कविता हुयी है । हार्दिक बधाई
जनाब सुशील सरना जी आदाब,बहुत सुंदर कविता हुई है,इस प्रस्तुति पर बधाई स्वीकार करें ।
आदरणीय सुशील सरना जी आदाब,
बहुत ही सुंदर पेशकश । हार्दिक बधाई स्वीकार करें ।
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