मिश्रित दोहे -2
आसमान में चाँद का, बड़ा अजब है खेल।
भानु सँग होता नहीं, कभी चाँद का मेल।।
नैन मिलें जब नैन से, जागे मन में प्रीत।
दो पल में सदियाँ मिटें, बने हार भी जीत।।
बंजारी सी प्यास ने, व्यथित किया शृंगार।
अवगुंठन में प्रीत के, शेष रहे अँगार।।
आखों से रिसने लगा, बेआवाज़ अज़ाब।
अश्कों के सैलाब में, डूब गए सब ख्वाब।।
रिश्तों से आती नहीं, अपनेपन की गंध।
विकृत सोच ने कर दिए, दुर्गन्धित संबंध।।
सुशील सरना
मौलिक एवं अप्रकाशित
Comment
आखिरी दो पंक्तियाँ बेहतरीन,हार्दिक बधाई स्वीकार कीजियेगा आदरणीय सुशील सरजी।
आदरणीय लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर'जी सृजन को आत्मीय मान देने का दिल से आभार।
आदरणीय narendrasinh chauhan जी सृजन को मान देने का दिल से आभार।
आदरणीय Shyam Narain Verma जी सृजन को आत्मीय मान देने का दिल से आभार।
आदरणीय समर कबीर साहिब, आदाब ... सृजन आपकी मनोहारी प्रशंसा का दिल से आभारी है। आपके द्वारा इंगिंत त्रुटि तो मैंने संशोधित कर दिया है। अब आपको ठीक लगेगा। इस हेतु आपका तहे दिल से शुक्रिया।
आ. भाई सुशील जी, अच्छे दोहे निकाले हैं । हार्दिक बधाई ।
जनाब नरेन्द्र सिंह चौहान साहिब आदाब,
/खुब सुन्दर//
"कैसे समझाऊँ.."?
खुब सुन्दर
आदरणीय सुशील सरना जी प्रणाम , सुंदर भाव से संजोयी रचना पर बधाई स्वीकारें , सादर.
जनाब सुशील सरना जी आदाब,अच्छे दोहे रचे आपने,इस प्रस्तुति पर बधाई स्वीकार करें ।
अवगुंठन में मिलन के'
'मिलन के'122--212 होना था न?
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