लुट रही है फसल-ए-बहार दंगो में..
आराम फरमा रहे हैं वो जंगों में...
दिया किसने ये हक़ इन्हें ए-ख़ुदा
ख़ुदी है सो रही खिश्त-ओ-संगों में..
किसने बनाये हैं ये सनमकदे...
ख़ुदा भी बंट गया बन्दों में...
मेरी इन्ही आँखों ने,नजर में तेरी ए-सनम
देखा है खुद को कई रंगों में..
है किसे तौफ़ीक जो गैरों के चाक सिले?
मै भी नंगा हो गया नंगों में....
‘’मौलिक व अप्रकाशित’’
२०१४ में उ.प्र. में फैले दंगों के…
Added by Krish mishra 'jaan' gorakhpuri on February 25, 2015 at 9:00pm — 2 Comments
तू मेहरबां है के खफा है मुझे पता तो लगे..
गुलशन में बातें सुलग रहीं है..जरा हवा तो लगे..
मोहब्बतों में ऐसा जलना भी क्या?बुझना भी क्या?
जले तो आंच न आये,बुझे तो न धुँआ लगे..
अजब हो गया है अब तो चलन मुहब्बतों का..
मै वफ़ा करूँ तो है उसको बुरा लगे...
वो चाहता है के मै उसके जैसा बन जाऊ...
है जो हमारे दरमियाँ न किसी को पता लगे..
इस साल भी बेटी न ब्याही जाएगी...
गन्ने/गल्ले का दाम देख किसान थका-थका सा…
ContinueAdded by Krish mishra 'jaan' gorakhpuri on February 25, 2015 at 8:00pm — 14 Comments
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