‘’आपने आज का अखबार पढ़ा अशफ़ाक मियां” कश्मीर में हालात और बेकाबू हो गये हैं!
“हाँ श्रीवास्तव जी पढ़ा!” इतना कहकर अशफ़ाक मियां चुप हो गये।
‘’आखिर मौकापरस्तों के चंगुल में जनता कैसे फँस जाती है ?" श्रीवास्तव जी फिर बोल पड़े।
कुछ देर चुप रहने के बाद अशफ़ाक मियां गहरी साँस लेते हुए बोले---
‘’घर का मामला जब अदालत में जाये तो यही अंजाम होता है’’!
Comment
मिश्रा जी बहुत सुन्दर गंभीर विचारणीय। काश लोग इस सब से बचे होते । गागर में सागर और एक सच व्यक्त करती अच्छी लघु कथा
माह के सक्रिय सदस्य के लिए भी बधाई
भ्रमर५
प्रिय कृष्णा
आपकी यह लघु कथा मेरी नजर से छूट गयी थी . आज सौरभ जी से भेंट भी हुयी और काफी देर तक बात हुयी . वहीं आपकी इस कथा का जिक्र चला. लिहाजा मैं इस कथा पर हूँ . इस कथा के बारे में सौरभ जी ने जितना कह दिया है उसके बाद कुछ बचता नहीं i मैं बस इतना ही कहूंगा इतिहास की गल्तीको आपने बड़ा सादगी से बयां किया i यही इस कथा की ख़ूबसूरती है . सस्नेह .
आदरणीय मिथिलेश सरजी ! आपकी टिप्पणी का इन्तजार था...आपका अनुमोदन पाकर रचनाकर्म सार्थक हुआ!आभार आदरणीय!
आदरणीय vijai shanker सरजी! रचना के अनुमोदन के लिए हार्दिक आभार!
अहा! गुरुवर...आपका आशीर्वाद पाकर अभिभूत हूँ!...लघुकथा के मूल को उभारकर आ० आपने और मुखरित कर दिया है...मै इसी सोच में था के शायद लघुकथा के कथ्य को और स्पष्ट करने की आवश्यकता रह गयी,क्युकी मुझे टिप्पणियों में जिस उत्तर की आशा थी,वो मिल नही रही थी!!...पर आ० आपकी विस्तृत टिप्पणी ने मेरी शंका को दूर कर दिया!हार्दिक आभार और नमन!
कुछ देर चुप रहने के बाद अशफ़ाक मियां गहरी साँस लेते हुए बोले---
‘’घर का मामला जब अदालत में जाये तो यही अंजाम होता है’’!................
अद्भुत समापन !
भाई कृष्ण मिश्रजी, आपकी इस लघुकथा को मैं अपनी अबतक पढ़ी पाँच सबसे अच्छी लघुकथाओं में पाता हूँ. हर तरह से समृद्ध यह लघुकथा सीधे दिल में उतर जाती है. स्वतंत्र भारत के इतिहास की सबसे बड़ी भूल को जिस सहजता से यह लघुकथा आम करती है इसका कोई ज़वाब नहीं है.
सही है, न यूएनओ में प्रथम प्रधानमंत्री इस समस्या को ले गये होते, न उन्होंने पेब्लिसाइट की बात की होती, न यह सामयिक बवाल कैंसर का रूप अख़्तियार कर भारतीयों के गले पड़ता. हर संवेदनशील भारतीय के हृदय के कचोटपन को स्वर देती इस लघुकथा का कथ्य-विस्तार स्वयं में इतिहास की दुखती रग़ के दर्द को साझा कर रहा है. भारत का हर सच्चा नागरिक अपनी विवशता पर झल्ला कर रह जाता है. भोले-भाले कश्मीरी युवाओं को भारत के ख़िलाफ़ उकसाया जाता है. हर रोज़ देश के जवानों की हेठी होती रहती है. तो दूसरी ओर सामान्यजन को यह पता ही नहीं चल पाता कि समस्या आख़िर है कहाँ. सामान्य जनता उंगली पड़ोसी देश की ओर करती रहती है.
शिल्प की कसौटी पर भी यह लघुकथा अत्यंत कसी हुई है और सफल रचना के तौर पर सामने आती है. कथानक को इतनी महीनी से बुना गया है कि लेखक की मानसिक परिपक्वता का भान सहज ही हो जाता है. श्रीवास्तवजी जहाँ आज के सामान्यजन का प्रतिनिधित्व करते हुए हैं तो, अशफ़ाक़ मियां जागरुक किन्तु किंकर्तव्यविमूढ़ नागरिक के रूप में अत्यंत सफल हैं.
कथा विन्यास में अभिव्यंजना का स्तर तो यह है कि इससे कविताई का अहसास हो रहा है.
लघुकथा के समस्त तकनीकि पक्षों पर खरी उतरती इस लघुकथा के लिए बार-बार बधाइयाँ और हृदय की अतल गहराइयों से शुभकामनाएँ
आदरणीय कृष्ण भाई जी बहुत गंभीर प्रस्तुति ... सफल लघुकथा
हार्दिक बधाई
आदरणीया राजेश कुमारी ज़ी! रचना पर आपकी सराहना पाकर धन्य हुआ,रचनाकर्म सार्थक हुआ!हृदयतल से आभार!
बहुत गहन बात कही लघु कथा के माध्यम से ...ये घर के मामले भी घरवाले ही बाहर तक पंहुचाते हैं अपना देश तो सदा इसी कोशिश में है की घर का मामला घर में ही सुलझ जाए मगर गैरों (जो अपने देश में रहकर ही गैरों सा बर्ताव करते हैं )को कैसे समझाएं?? बढ़िया लघु कथा कृष्ण जी हार्दिक बधाई .
आवश्यक सूचना:-
1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे
2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |
3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |
4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)
5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |
© 2024 Created by Admin. Powered by
महत्वपूर्ण लिंक्स :- ग़ज़ल की कक्षा ग़ज़ल की बातें ग़ज़ल से सम्बंधित शब्द और उनके अर्थ रदीफ़ काफ़िया बहर परिचय और मात्रा गणना बहर के भेद व तकतीअ
ओपन बुक्स ऑनलाइन डाट कॉम साहित्यकारों व पाठकों का एक साझा मंच है, इस मंच पर प्रकाशित सभी लेख, रचनाएँ और विचार उनकी निजी सम्पत्ति हैं जिससे सहमत होना ओबीओ प्रबन्धन के लिये आवश्यक नहीं है | लेखक या प्रबन्धन की अनुमति के बिना ओबीओ पर प्रकाशित सामग्रियों का किसी भी रूप में प्रयोग करना वर्जित है |
You need to be a member of Open Books Online to add comments!
Join Open Books Online