२१२२/१२१२/२२/
ख़ुशबुओं का सफ़र नहीं आया,
खत लिए नाम:बर नहीं आया.
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सुब’ह, राहें भटक गया... कोई,
शाम तक उस का घर नहीं आया.
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देर तुम से न देर मुझ से हुई,
वक़्त ही वक़्त पर नहीं आया.
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चलते चलते गुज़ार दी सदियाँ,
अब भी मौला का दर नहीं आया.
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जिस्म की छाँव में रखा जिन को,
उन पे मेरा असर नहीं आया.
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‘नूर’ ऐसा!! निगाहें क्या उठती,
हश्र पर कुछ नज़र नही आया.
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मौलिक / अप्रकाशित
निलेश "नूर"
Added by Nilesh Shevgaonkar on February 11, 2016 at 6:40pm — 4 Comments
ग़ज़ल
गा गा लगा लगा/ लल/ गा गा लगा लगा
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झीलों में ऐसे..... चाँद डिबोता हूँ आज भी,
आँखों में रख के आप को रोता हूँ आज भी.
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अब तक दरख्त जितने उगाए, बबूल हैं,
दिल में मगर मैं यादों को बोता हूँ आज भी.
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आदत में था शुमार तेरे साथ जागना,
तेरे बगैर देर से सोता हूँ आज भी.
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नमकीन पानियों से जो रंगत निखरती है,
रुख़सार आँसुओं से मैं धोता हूँ आज भी.
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काँधे पे इक सलीब उठाए फिरा करूँ,
नाकामियों का बोझ मैं ढ़ोता हूँ आज…
Added by Nilesh Shevgaonkar on February 7, 2016 at 9:30pm — 16 Comments
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