For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

ग़ज़ल नूर की - मेरी ज़ीस्त की कड़ी धूप ने मुझे रख दिया है निचोड़ कर

.
मेरी ज़ीस्त की कड़ी धूप ने मुझे रख दिया है निचोड़ कर,
अभी शाम ढलने ही वाली थी कोई चल दिया मुझे छोड़ कर.
.
मैं था मुब्तिला किसी ख़ाब में किसी मोड़ पर ज़रा छाँव थी
उसे ये भी रास न आ सका सो जगा गया वो झंझोड़ कर.
.
मेरे दिल में अक्स उन्हीं का था उन्हें ऐतबार मगर न था 
कभी देखते रहे तोड़ कर कभी दिल की किरचों को जोड़ कर.   
.
जो  किताब ए ज़ीस्त में  शक्ल थी वो जो नाम था मुझे याद है  
वो जो पेज फिर न मैं पढ़ सका जो रखा था मैने ही मोड़ कर. 
.
तू है शम्स तो ये समझ भी ले तेरी सल्तनत है तेरा फ़लक
मेरा मश्वरा है तू ‘नूर’ से न जलाने जलने की होड़ कर.
.
निलेश 'नूर'
मौलिक/ अप्रकाशित 

Views: 652

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by Nilesh Shevgaonkar on December 4, 2021 at 5:32pm

धन्यवाद आदरणीय अमीरुद्दीन अमीर साहब 

Comment by अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी on December 4, 2021 at 3:43pm

जनाब निलेश शेवगाँवकर जी आदाब, मुश्किल ज़मीन में बहुत उम्दा ग़ज़ल कही है आपने, मुबारकबाद पेश करता हूँ।

हासिल-ए-ग़ज़ल शे'र -  "मेरे दिल में अक्स उन्हीं का था उन्हें ऐतबार मगर न था

                                  कभी देखते रहे तोड़ कर कभी दिल की किरचों को जोड़ कर" बहुत ख़ूब।  सादर। 

Comment by Nilesh Shevgaonkar on November 28, 2021 at 6:55pm

धन्यवाद आ. लक्ष्मण जी

Comment by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on November 28, 2021 at 6:24pm

आ. भाई नीलेश जी, सादर अभिवादन। बहुत खूब गजल हुई है । हार्दिक बधाई।

Comment by Nilesh Shevgaonkar on November 23, 2021 at 9:29am

धन्यवाद आ. सालिक गणवीर जी

Comment by सालिक गणवीर on November 22, 2021 at 7:02pm

भाई Nilesh Shevgaonkar जी
सादर नमस्कार
बहुत उम्दः ग़ज़ल कही है आपने ,शैर दर शैर मुबारक़बाद क़ुबूल करें

Comment by Nilesh Shevgaonkar on November 21, 2021 at 8:58am

शुक्रिया आ. गुरप्रीत सिंह जी 

Comment by Gurpreet Singh jammu on November 20, 2021 at 11:39am

मेरे दिल में अक्स उन्हीं का था उन्हें ऐतबार मगर न था 
कभी देखते रहे तोड़ कर कभी दिल की किरचों को जोड़ कर.   

वाह वाह आदरणीय नीलेश सर जी, क्या ही लाजवाब शेर कहा आपने। इस खूबसूरत ग़ज़ल के लिए बहुत बहुत बधाई।

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity

Tilak Raj Kapoor replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-182
"विगत दो माह से डबलिन में हूं जहां समय साढ़े चार घंटा पीछे है। अन्यत्र व्यस्तताओं के कारण अभी अभी…"
2 hours ago
Chetan Prakash replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-182
"प्रयास  अच्छा रहा, और बेहतर हो सकता था, ऐसा आदरणीय श्री तिलक  राज कपूर साहब  बता ही…"
3 hours ago
Chetan Prakash replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-182
"अच्छा  प्रयास रहा आप का किन्तु कपूर साहब के विस्तृत इस्लाह के बाद  कुछ  कहने योग्य…"
3 hours ago
Chetan Prakash replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-182
"सराहनीय प्रयास रहा आपका, मुझे ग़ज़ल अच्छी लगी, स्वाभाविक है, कपूर साहब की इस्लाह के बाद  और…"
3 hours ago
Chetan Prakash replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-182
"आपका धन्यवाद,  आदरणीय भाई लक्ष्मण धानी मुसाफिर साहब  !"
3 hours ago
Chetan Prakash replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-182
"साधुवाद,  आपको सु श्री रिचा यादव जी !"
3 hours ago
Chetan Prakash replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-182
"धन्यवाद,  आज़ाद तमाम भाई ग़ज़ल को समय देने हेतु !"
3 hours ago
Chetan Prakash replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-182
"आदरणीय तिलक राज कपूर साहब,  आपका तह- ए- दिल आभारी हूँ कि आपने अपना अमूल्य समय देकर मेरी ग़ज़ल…"
3 hours ago
surender insan replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-182
"जी आदरणीय गजेंद्र जी बहुत बहुत शुक्रिया जी।"
3 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-182
"आ. भाई दयाराम जी, सादर अभिवादन। अच्छी गजल हुई है। हार्दिक बधाई।"
3 hours ago
surender insan replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-182
"आदरणीया ऋचा जी ग़ज़ल पर आने और हौसला अफ़जाई के लिए बहुत बहुत शुक्रिया जी।"
3 hours ago
Chetan Prakash commented on गिरिराज भंडारी's blog post ग़ज़ल - चली आयी है मिलने फिर किधर से ( गिरिराज भंडारी )
"खूबसूरत ग़ज़ल हुई आदरणीय गिरिराज भंडारी जी । "छिपी है ज़िन्दगी मैं मौत हरदम वो छू लेगी अगर (…"
3 hours ago

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service