क्या ही तुझ में ऐब निकालूँ क्या ही तुझ पर वार करूँ
ये तो न होगा फेर में तेरे अपनी ज़ुबाँ को ख़ार करूँ.
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हर्फ़ों से क्या नेज़े बनाऊँ क्या ही कलम तलवार करूँ
बेहतर है मैं ख़ुद को अपनी ग़ज़लों से सरशार करूँ.
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ग़ालिब ही के जैसे सब को इश्क़ निकम्मा करता है
लेकिन मैं भी बाज़ न आऊँ जब भी करूँ दो चार करूँ.
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चन्दन हूँ तो अक्सर मुझ से काले नाग लिपटते हैं
मैं भी शिव सा भोला भाला सब को गले का हार करूँ.
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सब से उलझना तेरी फ़ितरत और मैं इक आज़ाद मनक
तू जब मुझ पर खीज उतारे मैं ग़ज़लें तैयार करूँ.
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अपने दिल-बर्बाद से अक्सर ऐसी चुहल करता हूँ मैं
महँगे महँगे शेर हैं मेरे क्यूँ तुझ पर बेकार करूँ.
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निलेश "नूर"
मौलिक/ अप्रकाशित/ त्वरित/ तडित
Comment
धन्यवाद आ. अमीरुद्दीन अमीर साहब
आपको यह प्रयोग आदर्श और सटीक लगा क्यूँ कि आपने आदर्श ऐसे चुन रखे हैं वगर्न: बहर के साथ मेरे प्रयोग हमेशा सटीक ही होते हैं.
आप को यह ग़ज़ल तंज़िया लगी तो शायद कोई कमी रह गयी होगी ..यह तो मैं अक्सर ख़ुद के दिल के लिए कहता हूँ ..
अंतिम शेर इस बात का गवाह भी है
आप ग़ज़ल तक आए, आपका बहुत बहुत आभार
धन्यवाद आ. लक्ष्मण धामी जी
आदरणीय निलेश शेवगाँवकर जी आदाब, शानदार तन्ज़िया ग़ज़ल कहने के लिये और मात्रिक बह्र का सटीक एवं आदर्श प्रयोग करने के लिए हार्दिक बधाई स्वीकार करें, सादर।
धन्यवाद आ. सौरभ सर.
बह्र संबंधी इशारा स्पष्ट करेंगे तो आसानी होगी।
सादर
चन्दन हूँ तो अक्सर मुझ से काले नाग लिपटते हैं ... वाह क्या मिसरा बना है ! .. वाह !
एक अच्छी प्रस्तुति के लिए हार्दिक बधाई.
मात्रिक बहर का प्रयोग अलबत्ता तनिक और सावधानी की मांग कर रहा है.
शुभातिशुभ
आ. भाई नीलेश जी, सादर अभिवादन। खूबसूरत गजल हुई है । हार्दिक बधाई।
धन्यवाद आ. बृजेश ब्रज जी
चन्दन हूँ तो अक्सर मुझ से काले नाग लिपटते है
मैं भी शिव सा भोला भाला सब को गले का हार करूँ.
वाह आदरणीय क्या ही खूब कहा...
धन्यवाद आ सालिक साहब..
शोर जब बढ़ जाए तो उससे बड़ा शोर कर के नहीं बल्कि सुर में बात रखनी चाहिए ताकी शोर मचाने वालों को सुर की मिठास पता चल सके..
आप ग़ज़ल तक आए इसके लिए आभार
आदरणीय भाई Nilesh Shevgaonkar जी
सादर नमस्कार
एक और शानदार ग़ज़ल के लिए बधाईयाँ स्वीकार करें
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