२१२२/१२१२/२२ (११२)
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उन की गर्दन लगे सुराही, हय!!
उन को लगता हूँ मैं शराबी, हय!!
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मैंने भेजा सलाम महफ़िल में,
उस ने भेजी नज़र जवाबी, हय!!
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मुझ को कोई चुड़ैल फाँस न ले,
गाहे-गाहे मेरी तलाशी, हय!!
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जिस नज़र से ये दिल तमाम हुआ,
हाय चाकू, छुरी, कटारी, हय!!
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सारी अच्छाइयाँ उदू में थीं,
मेरी हर बात में ख़राबी, हय!!
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भींच लेती हैं तेरी यादें मुझे,
“नूर” हर शाम ये कहानी, हय!!
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मौलिक / अप्रकाशित
निलेश "नूर"
Comment
अय हय हय !
मतलब ये कि अबरा झूम के उमड़ा, घुमड़ा और बरसा है !
दाद दाद !!
आदरणीय नूर जी ..आपकी हर ग़ज़ल एक नए अंदाज में होती है ..आज तो आपके इस निराले अंदाज को सलाम ..ढेर सारी बधाई स्वीकार करिएँ सादर
शुक्रिया आ. शिज्जू भाई
शुक्रिया आ. अशोक कुमार जी
शुक्रिया आ. राजेश दीदी
शुक्रिया आ. जयनीत जी
उन की गर्दन लगे सुराही, हय!!
उन को लगता हूँ मैं शराबी, हय!!........वाह ! वाह ! बहुत जोरदार
आदरणीय नीलेश जी सादर, खूबसूरत अंदाज लिए शानदार गजल हुई है. बहुत-बहुत बधाई स्वीकारें.सादर.
मुझ को कोई चुड़ैल फाँस न ले,
गाहे-गाहे मेरी तलाशी, हय!!------वाह्ह्ह्हह हाय हाय क्या बात कही
बहुत ही रोचक मजेदार ग़ज़ल पढने को मिली
मेरी तरफ से ढेरों दाद हाजिर है नीलेश भैया
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