शख्स उसको भी तो दीवाना समझ बैठे थे हम l
जो था अच्छा उस को बेचारा समझ बैठे थे हम l
अब न जीतेगा ज़माना भी हमेशा की तरह,
जिस तरह का था उसे वैसा समझ बैठे थे हम l
गीत गाया था बहारों पर सुनाया था कहाँ,
जब ख़िज़ाँ को भी अगर अपना समझ बैठे थे हम l
फूल ये बिखरा तो खुशबू सा शजर बनता मिला,
"इस ज़मीन ओ आसमां को क्या समझ बैठे थे हम l"
ये जहाँ बदला मगर ये जिंदगानी क्यूँ नहीं,
झूठ दुनिया जिस कहे सच्चा समझ बैठे थे हम…
Added by मोहन बेगोवाल on February 25, 2020 at 12:00am — 1 Comment
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