अपने वतन में बेघर का दर्द क्या जानो
जिन्होने लूटा है खसूटा उनको पहचानो
मेहनत मज़दूरी की तो जी गये बच्चे
संस्कार मिले थे बुजुर्गो से हमें भी अच्छे
लुट गये लेकिन हथियार उठाया ना कभी
वतन पे जान देने का है इरादा अब भी…
Added by प्रदीप देवीशरण भट्ट on February 18, 2019 at 6:00pm — 2 Comments
मनुज पशु पक्षी और जंतु,
एक ही सबका जीवन दाता,
धनी हो या फिर निर्धन कोई,
मरघट अंतिम ही सुख् दाता ।
भोर से लेकर सांझ तलक शव,
मरघट में आते रह्ते हैं,
चंद्न लकडी घी पावक मिल,
भस्म उसे करते रहते हैं ।
मूषक पिपिलिका कपोत उपाकर,
व्रीही खाकर जीवीत रहते हैं,
दूषित समझ मनुज जो छोडे,
वो जल पी जीवीत रहते हैं ।
उचित अनुचित तो ये भी जाने,
मनुज के मन को भी पहचाने,
पाप पुण्य का ज्ञान…
ContinueAdded by प्रदीप देवीशरण भट्ट on February 4, 2019 at 12:30pm — 4 Comments
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