For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

मनुज पशु पक्षी और जंतु,

एक ही सबका जीवन दाता,

धनी हो या फिर निर्धन कोई,

मरघट अंतिम ही सुख् दाता ।

भोर से लेकर सांझ तलक शव,

मरघट में आते रह्ते हैं,

चंद्न लकडी घी पावक मिल,

भस्म उसे करते रहते हैं ।

मूषक पिपिलिका कपोत उपाकर,

व्रीही खाकर जीवीत रहते हैं,

दूषित समझ मनुज जो छोडे,

वो जल पी जीवीत रहते हैं ।

उचित अनुचित तो ये भी जाने,

मनुज के मन को भी पहचाने,

पाप पुण्य का ज्ञान इन्हे भी,

पर भूखा पेट तो कुछ ना जाने ।

अगर नहीं हो पुण्य लालसा,

मनुज नहीं कुछ करने वाला,

पाप के भय से भयातुर मन को,

स्वय मनुज है छ्लने वाला ।

-प्रदीप  भट्ट-

मौलिक एवम अप्रकाशित

-(मित्र की माता जी के निधन पर   शमशान में जलती हुई चिता के निकट  कबूतरो को चावल चुगते देख्कर जो भाव उत्पन्न हुए उन्हे शब्दो में ढालने का प्रयास) 

Views: 517

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by JAWAHAR LAL SINGH on February 7, 2019 at 4:52pm

श्मशान ऐसी जगह है जहाँ जाकर वैराग्य उत्पन्न हो जाता है ....फिर भी आपकी भावना का शब्दों में निरूपण बेहतरीन ढंग से किया है, आदरणीय प्रदीप भट्ट जी.

Comment by नाथ सोनांचली on February 5, 2019 at 6:00pm

आद0 Pradeep Devisharan Bhatt जी सादर अभिवादन। अच्छी रचना हुई है, बधाई स्वीकार कीजिये। कुछ जगहों पर टंकण त्रुटि है। जैसे जीवित शुद्ध है

Comment by प्रदीप देवीशरण भट्ट on February 5, 2019 at 11:32am

आपका बहुत बहुत आभार

Comment by Samar kabeer on February 4, 2019 at 9:34pm

जनाब प्रदीप भट्ट साहिब आदाब,अच्छी रचना हुई है,बधाई स्वीकार करें ।

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Activity

सुरेश कुमार 'कल्याण' posted blog posts
50 minutes ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' posted blog posts
53 minutes ago
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-118
"हार्दिक धन्यवाद आदरणीय मनन कुमार सिंह जी। बोलचाल में दोनों चलते हैं: खिलवाना, खिलाना/खेलाना।…"
13 hours ago
Manan Kumar singh replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-118
"आपका आभार उस्मानी जी। तू सब  के बदले  तुम सब  होना चाहिए।शेष ठीक है। पंच की उक्ति…"
14 hours ago
Manan Kumar singh replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-118
"रचना भावपूर्ण है,पर पात्राधिक्य से कथ्य बोझिल हुआ लगता है।कसावट और बारीक बनावट वांछित है। भाषा…"
14 hours ago
Sushil Sarna replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-118
"आदरणीय शेख उस्मानी साहिब जी प्रयास पर  आपकी  अमूल्य प्रतिक्रिया ने उसे समृद्ध किया ।…"
14 hours ago
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-118
"आदाब। इस बहुत ही दिलचस्प और गंभीर भी रचना पर हार्दिक बधाई आदरणीय मनन कुमार सिंह साहिब।  ऐसे…"
15 hours ago
Manan Kumar singh replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-118
"जेठांश "क्या?" "नहीं समझा?" "नहीं तो।" "तो सुन।तू छोटा है,मैं…"
17 hours ago
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-118
"हार्दिक स्वागत आदरणीय सुशील सरना साहिब। बढ़िया विषय और कथानक बढ़िया कथ्य लिए। हार्दिक बधाई। अंतिम…"
20 hours ago
Sushil Sarna replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-118
"माँ ...... "पापा"। "हाँ बेटे, राहुल "। "पापा, कोर्ट का टाईम हो रहा है ।…"
23 hours ago
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-118
"वादी और वादियॉं (लघुकथा) : आज फ़िर देशवासी अपने बापू जी को भिन्न-भिन्न आयोजनों में याद कर रहे थे।…"
yesterday
Admin replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-118
"स्वागतम "
Wednesday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service