जब वो कहता है तो वो कहता है
रोक पाता नहीं उसे कोई ,
उसके आगे ना रंक, राजा है ,
कंठ में कोयल सा उसके वासा है ॥
जब भी कहता है सच ही कहता है
जैसे बच्चा हृदय में रहता है ,
उसके जैसा नहीं कोई सानी ,
वो भी लिखता है पानी पे पानी ॥
धार शब्दोँ की उसकी तीखी है ,
जानता है वो जिसपे बीती है
कह के उसको क्या तुम बुलाओगे ,
तुम ना समझे हो ना समझ पाओगे ॥
उसपे मर्ज़ी चलाना मुश्क़िल है,
झूठ के पांव पाना मुश्क़िल है ,
कोशिशें सब नाकारा कर देगा ,
तुमको इंसानियत से भर देगा ॥
बरसों में शख़्स ऐसा होता है,
बीज उल्फ़त के भू में बोता है,
आओ हम उसका एहतिराम करें,
ज़ीस्त में कोई तो भला काम करें ॥
-प्रदीप देवीशरण भट्ट -
रचना मौलिक व अप्रकाशित है
Comment
सुरेंद्र जी धन्यवाद
शुक्रिया महेंद्र जी
महब्बत है आपकी,सलामत रहो ।
बहुत ख़ूब सर! आपने तो कमाल कर दिया. इसको कहते हैं उस्ताद. दण्डवत प्रणाम है आपको. यही चीज़ है जो हम सबको अपने मिसरों में लानी चाहिए. बहुत-बहुत धन्यवाद सर. सादर.
महेन्द्र जी,
'धार शब्दोँ की उसके तीखी है'
"उसके शब्दों की धार तीखी है"--और स्पष्ट हो गया न?
आदरणीय प्रदीप देवीशरण भट्ट जी, अच्छी रचना हुई है. हार्दिक बधाई स्वीकार कीजिए.
//धार शब्दोँ की उसके तीखी है//
सादर.
आद0 प्रदीप देवीशरण भट्ट जी सादर अभिवादन। बढ़िया रचना हुई है, कुछ टंकण त्रुटियों को देख लें। इस रचना पर मेरी बधाई स्वीकार कीजिये
जनाब प्रदीप भट्ट जी आदाब,अच्छी रचना हुई है,बधाई स्वीकार करें ।
' कोशिशें सब नकारा कर देगा'
इस पंक्ति में 'नकारा' को "नाकारा" कर लें ।
' आओ हम उसका अहतराम करें'
इस पंक्ति में 'अहतराम' को "एहतिराम" कर लें ।
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