221--2121--1221--212
दस्तार ही जो सर पे सलामत नहीं रही
जी कर भी क्या करोगे जो इज़्ज़त नहीं रही
झूठों की सल्तनत में हुआ सच का सर क़लम
ऐसा भी सब में कहने की हिम्मत नहीं रही
जो फ़ाइलों में पुल था बना, कब का ढह गया
सरकारी काम काज में बरक़त नहीं रही
संसार लेन देन का बाज़ार बन गया
रिश्तों में अब लगाव की क़ीमत नहीं रही
देखो तो काम एक भी हमने कहाँ किया
पूछो तो एक पल की भी फ़ुर्सत नहीं…
ContinueAdded by दिनेश कुमार on March 12, 2024 at 5:16am — 1 Comment
1212--1122--1212--22
अदब की बज़्म का रुतबा गिरा नहीं सकता
ग़ज़ल सुनो! मैं लतीफ़े सुना नहीं सकता
ग़मों के दौर में जो मुस्कुरा नहीं सकता
वो ज़िंदगी से यक़ीनन निभा नहीं सकता
ख़ुद अपने सीने पे ख़ंजर चला नहीं सकता
हर एक दोस्त को मैं आज़मा नहीं सकता
वो जिसकी ताल ही है मेरी धड़कनों का सबब
वही तराना-ए-उल्फ़त मैं गा नहीं सकता
वो आसमाँ का सितारा है, मैं ज़मीं का परिंद
मैं ख़्वाब में भी क़रीब…
ContinueAdded by दिनेश कुमार on March 10, 2024 at 7:10am — 2 Comments
2122--1212--22
वोदका, व्हिस्की और कभी रम से
दिल को निस्बत है क़िस्सा ए ग़म से
ख़्वाब झरते हैं चश्मे पुर-नम से
हम बहलते हैं अपने ही ग़म से
उसकी मर्ज़ी ही अपनी मर्ज़ी है
क्यूँ गिला ज़िंदगी को फिर हम से
छूट जाता जो मोह अपनों का
बुद्ध बन जाते हम भी गौतम से
कब तलक देखें हम तेरी तस्वीर
प्यास बुझती नहीं है शबनम से
शाम होने लगी है जीवन की
रंग उड़ने लगे हैं मौसम…
ContinueAdded by दिनेश कुमार on March 9, 2024 at 8:30am — No Comments
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