For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

ग़ज़ल -- मैं अगर क़तरा हूँ दरिया कौन है ( दिनेश कुमार )

2122--2122--212

जो समेटे मुझको ऐसा कौन है
मैं तो इक क़तरा हूँ दरिया कौन है

ग़ौर से परखो मेरे किरदार को
मुझ में ये मेरे अलावा कौन है

कश्तियों का है सहारा नाख़ुदा
नाख़ुदाओं का सहारा कौन है

कृष्ण से मिलने की चाहत है किसे
द्वारिका में अब सुदामा कौन है

पत्थरों में आग बेशक है छिपी
ध्यान से इनको रगड़ता कौन है

सामने है पूर्वजन्मों का हिसाब
कौन है अपना, पराया कौन है

ज़हन में जिसके भरा है ' मैं ' ही बस
उसने कब सोचा है द्रष्टा कौन है

मौलिक व अप्रकाशित

Views: 604

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by Ashok Kumar Raktale on January 12, 2017 at 10:11pm

ग़ौर से परखो मेरे किरदार को
मुझ में ये मेरे अलावा कौन है............वाह !

पत्थरों में आग बेशक है छिपी
ध्यान से इनको रगड़ता कौन है.............बहुत खूब.

आदरणीय दिनेश कुमार जी सादर, खूब अशआर निकाले हैं. उम्दा गजल के लिए दिली मुबारकबाद कुबूलें. सादर.

Comment by बृजेश कुमार 'ब्रज' on January 12, 2017 at 8:54pm
वाह वाह क्या खूब ग़ज़ल हुई बेहतरीन...

सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on January 12, 2017 at 5:04pm

आदरणीय दिनेश भाई , बड़ी खूबसूरत ग़ज़ल हुई है , मुबारकबाद कुबूल करें ।


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on January 12, 2017 at 5:04pm

आदरणीय दिनेश भाई , बड़ी खूबसूरत ग़ज़ल हुई है , मुबारकबाद कुबूल करें ।

Comment by Mohammed Arif on January 12, 2017 at 2:41pm
आदरणीय दिनेश कुमारजी , अच्छी ग़ज़ल के लिए बधाई स्वीकार करें । सादर...
Comment by दिनेश कुमार on January 11, 2017 at 9:49pm
आदरणीय समर साहब की इस्लाह के बाद मतला कुछ यूँ पढ़ें ---
जो समेटे मुझको ऐसा कौन है
मैं तो इक क़तरा हूँ दरिया कौन है.
शुक्रिया सर.
Comment by दिनेश कुमार on January 11, 2017 at 5:56am
आ. समर सर, हौसला अफज़ाई के लिए हार्दिक आभार।
मतला दुरुस्त करने की कोशिश कअरता हूँ सर।
Comment by दिनेश कुमार on January 11, 2017 at 5:53am
आ मिथिलेश भाई हौसला अफ़ज़ाई के लिए हार्दिक आभार। नवाज़िश।
Comment by Samar kabeer on January 10, 2017 at 10:02pm
जनाब दिनेश कुमार'दानिश'साहिब आदाब,ग़ज़ल के अशआर आपने अच्छे निकाले हैं आपने,इसके लिये मुबारकबाद पेश करता हूँ ।
लेकिन आपकी ग़ज़ल में मतला नहीं हो सका इसका अफ़सोस है, दोनों मिसरों में आपने दो सवाल रख दिये हैं बस,दोनों सवालों में कोई रब्त नज़र नहीं आता,इसलिये मतला नहीं हुआ,अस्ल में इस रदीफ़ के साथ मतला कहना ही सबसे दुश्वार अमल है, उसके बाद शैर कहना बहुत आसान हो जाता है,अब देखना ये है कि आप मतले में क्या तब्दीली करते हैं ।

सदस्य कार्यकारिणी
Comment by मिथिलेश वामनकर on January 10, 2017 at 5:01pm

आदरणीय दिनेश भाई जी, बहुत शानदार ग़ज़ल कही है आपने. अशआर एक से बढ़कर एक हुए हैं लेकिन इन अशआर का जवाब नहीं-

कश्तियों का है सहारा नाख़ुदा
नाख़ुदाओं का सहारा कौन है

कृष्ण से मिलने की चाहत है किसे
द्वारिका में अब सुदामा कौन है

इस शानदार ग़ज़ल पर दाद ओ मुबारकबाद क़ुबूल फरमाएं. सादर 

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Activity

Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-109 (सियासत)
"यूॅं छू ले आसमाॅं (लघुकथा): "तुम हर रोज़ रिश्तेदार और रिश्ते-नातों का रोना रोते हो? कितनी बार…"
Tuesday
Admin replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-109 (सियासत)
"स्वागतम"
Sunday
Vikram Motegi is now a member of Open Books Online
Sunday
Sushil Sarna posted a blog post

दोहा पंचक. . . . .पुष्प - अलि

दोहा पंचक. . . . पुष्प -अलिगंध चुराने आ गए, कलियों के चितचोर । कली -कली से प्रेम की, अलिकुल बाँधे…See More
Sunday
अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आदरणीय दयाराम मेठानी जी आदाब, ग़ज़ल पर आपकी आमद और हौसला अफ़ज़ाई का तह-ए-दिल से शुक्रिया।"
Apr 27
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. भाई दयाराम जी, सादर आभार।"
Apr 27
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. भाई संजय जी हार्दिक आभार।"
Apr 27
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. भाई मिथिलेश जी, सादर अभिवादन। गजल की प्रशंसा के लिए आभार।"
Apr 27
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. रिचा जी, हार्दिक धन्यवाद"
Apr 27
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. भाई दिनेश जी, सादर आभार।"
Apr 27
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आदरणीय रिचा यादव जी, पोस्ट पर कमेंट के लिए हार्दिक आभार।"
Apr 27
Shyam Narain Verma commented on Aazi Tamaam's blog post ग़ज़ल: ग़मज़दा आँखों का पानी
"नमस्ते जी, बहुत ही सुंदर प्रस्तुति, हार्दिक बधाई l सादर"
Apr 27

© 2024   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service