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ग़ज़ल -- मिसाले-ख़ाक-बदन वक़्त के ग़ुबार में थे ( दिनेश कुमार )

1212--1122--1212--22
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मिसाले-ख़ाक सभी वक़्त के ग़ुबार में थे
न जाने कौन थे हम और किस दयार में थे
~~
न शख़्सियत के सभी रंग इश्तिहार में थे
जो रहनुमा थे.. सियासत के कारो-बार में थे
~~
अँधेरा शह्र में बे-ख़ौफ़ रक़्स करता रहा
चराग़ सारे... हवाओं के इख़्तियार में थे
~~
बताओ मज़िले-मक़सूद किस तरह मिलती
तरह तरह के मनाज़िर जो रहगुज़ार में थे
~~
निशान-ए-आब नहीं था वहाँ पे दूर तलक
हयातो-मर्ग के हम ऐसे रेग-ज़ार में थे
~~
न माँगने की ज़रूरत न ख़्वाहिशे-ज़र थी
कि हम शुमार गदा में न शहरयार में थे
~~
हक़ीक़तों की तपिश ने जलाया इनका बदन
हसीन ख़्वाब नज़र-दर-नज़र मज़ार में थे
~~
ख़िज़ा 'दिनेश' दबे पाँव दर पे आई थी
चमन के फूल अभी लज़्ज़ते-बहार में थे
~~
~~
मौलिक व अप्रकाशित

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Comment by मिथिलेश वामनकर on January 19, 2017 at 11:14pm

आदरणीय दिनेश भाई जी, बहुत बढ़िया ग़ज़ल कही है आपने. हार्दिक बधाई. आदरणीय समर कबीर जी की इस्लाह के बाद और भी बढ़िया हो गई है.  सादर 


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Comment by गिरिराज भंडारी on January 19, 2017 at 9:36am

आदरणीय दिनेश भाई , बेहतरीन गज़ल कही , आपने जो आ. समर भाई की इस्लाह और खूब सूरत हो गयी है ,, दिली मुबारकबाद हाज़िर है .... ।

Comment by रोहिताश्व मिश्रा on January 17, 2017 at 9:25pm

Vaaaah....

Bahut pyaari ghazal hai...

Comment by Mohammed Arif on January 16, 2017 at 10:36pm
आदरणीय दिनेश कुमारजी,आदाब! बेहतरीन ग़ज़ल हुई है । बधाई ! बाकी जनाब समर कबीर साहब की इस्लाह पर गौर करें ।
Comment by Samar kabeer on January 16, 2017 at 9:50pm
जनाब दिनेश कुमार'दानिश'साहिब आदाब,ग़ज़ल बहुत उमा हुई है,शैर दर शैर दाद के साथ मुबारकबाद पेश करता हूँ ।
इस ग़ज़ल के विषय में कुछ साझा करना चाहूँगा ।
मतले के ऊला मिसरे में'बदन'शब्द भी बुरा नहीं है,लेकिन मैं अगर इसे कहता तो यूँ कहता:-
'मिसाल-ए-ख़ाक सभी वक़्त के ग़ुबार में थे'
चौथे शैर के ऊला मिसरे में 'वो'शब्द भर्ती का है,'मंज़िल-ए-मक़सूद कहने के बाद'वो'की क्या ज़रूरत है भाई ?चाहें तो मिसरा यूँ कर सकते हैं:-
बताओ। मंज़िल-ए-मक़सूद किस तरह मिलती'
पांचवें शैर के ऊला मिसरे में 'आब'के साथ ',फराग़त'शब्द भर्ती का है,""आब-ए-फराग़त"यानी 'फराग़त का पानी'मिसरा यूँ किया जा सकता है:-
'निशान-ए-आब नहीं था वहाँ पे दूर तलक'
सातवें शैर के दोनों मिसरों में रब्त नहीं है,ऊला बदल कर देखें ।
बाक़ी शुभ शुभ ।

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