For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

ग़ज़ल -- मिसाले-ख़ाक-बदन वक़्त के ग़ुबार में थे ( दिनेश कुमार )

1212--1122--1212--22
~~~~~~~
~~~~~~~
मिसाले-ख़ाक सभी वक़्त के ग़ुबार में थे
न जाने कौन थे हम और किस दयार में थे
~~
न शख़्सियत के सभी रंग इश्तिहार में थे
जो रहनुमा थे.. सियासत के कारो-बार में थे
~~
अँधेरा शह्र में बे-ख़ौफ़ रक़्स करता रहा
चराग़ सारे... हवाओं के इख़्तियार में थे
~~
बताओ मज़िले-मक़सूद किस तरह मिलती
तरह तरह के मनाज़िर जो रहगुज़ार में थे
~~
निशान-ए-आब नहीं था वहाँ पे दूर तलक
हयातो-मर्ग के हम ऐसे रेग-ज़ार में थे
~~
न माँगने की ज़रूरत न ख़्वाहिशे-ज़र थी
कि हम शुमार गदा में न शहरयार में थे
~~
हक़ीक़तों की तपिश ने जलाया इनका बदन
हसीन ख़्वाब नज़र-दर-नज़र मज़ार में थे
~~
ख़िज़ा 'दिनेश' दबे पाँव दर पे आई थी
चमन के फूल अभी लज़्ज़ते-बहार में थे
~~
~~
मौलिक व अप्रकाशित

Views: 548

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by मिथिलेश वामनकर on January 19, 2017 at 11:14pm

आदरणीय दिनेश भाई जी, बहुत बढ़िया ग़ज़ल कही है आपने. हार्दिक बधाई. आदरणीय समर कबीर जी की इस्लाह के बाद और भी बढ़िया हो गई है.  सादर 


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on January 19, 2017 at 9:36am

आदरणीय दिनेश भाई , बेहतरीन गज़ल कही , आपने जो आ. समर भाई की इस्लाह और खूब सूरत हो गयी है ,, दिली मुबारकबाद हाज़िर है .... ।

Comment by रोहिताश्व मिश्रा on January 17, 2017 at 9:25pm

Vaaaah....

Bahut pyaari ghazal hai...

Comment by Mohammed Arif on January 16, 2017 at 10:36pm
आदरणीय दिनेश कुमारजी,आदाब! बेहतरीन ग़ज़ल हुई है । बधाई ! बाकी जनाब समर कबीर साहब की इस्लाह पर गौर करें ।
Comment by Samar kabeer on January 16, 2017 at 9:50pm
जनाब दिनेश कुमार'दानिश'साहिब आदाब,ग़ज़ल बहुत उमा हुई है,शैर दर शैर दाद के साथ मुबारकबाद पेश करता हूँ ।
इस ग़ज़ल के विषय में कुछ साझा करना चाहूँगा ।
मतले के ऊला मिसरे में'बदन'शब्द भी बुरा नहीं है,लेकिन मैं अगर इसे कहता तो यूँ कहता:-
'मिसाल-ए-ख़ाक सभी वक़्त के ग़ुबार में थे'
चौथे शैर के ऊला मिसरे में 'वो'शब्द भर्ती का है,'मंज़िल-ए-मक़सूद कहने के बाद'वो'की क्या ज़रूरत है भाई ?चाहें तो मिसरा यूँ कर सकते हैं:-
बताओ। मंज़िल-ए-मक़सूद किस तरह मिलती'
पांचवें शैर के ऊला मिसरे में 'आब'के साथ ',फराग़त'शब्द भर्ती का है,""आब-ए-फराग़त"यानी 'फराग़त का पानी'मिसरा यूँ किया जा सकता है:-
'निशान-ए-आब नहीं था वहाँ पे दूर तलक'
सातवें शैर के दोनों मिसरों में रब्त नहीं है,ऊला बदल कर देखें ।
बाक़ी शुभ शुभ ।

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity

अखिलेश कृष्ण श्रीवास्तव replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 170 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीय चेतन भाईजी,  प्रस्तुति के लिए हार्दि बधाई । लेकिन मात्रा और शिल्पगत त्रुटियाँ प्रवाह…"
1 hour ago
अखिलेश कृष्ण श्रीवास्तव replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 170 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीय सौरभ भाईजी, समय देने के बाद भी एक त्रुटि हो ही गई।  सच तो ये है कि मेरी नजर इस पर पड़ी…"
1 hour ago
अखिलेश कृष्ण श्रीवास्तव replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 170 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीय लक्ष्मण भाईजी, इस प्रस्तुति को समय देने और प्रशंसा के लिए हार्दिक dhanyavaad| "
2 hours ago

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 170 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीय अखिलेश भाईजी, आपने इस प्रस्तुति को वास्तव में आवश्यक समय दिया है. हार्दिक बधाइयाँ स्वीकार…"
3 hours ago

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 170 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीय चेतन प्रकाश जी आपकी प्रस्तुति के लिए हार्दिक धन्यवाद. वैसे आपका गीत भावों से समृद्ध है.…"
4 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 170 in the group चित्र से काव्य तक
"आ. भाई अखिलेश जी, सादर अभिवादन। प्रदत्त चित्र को साकार करते सुंदर छंद हुए हैं। हार्दिक बधाई।"
16 hours ago
अखिलेश कृष्ण श्रीवास्तव replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 170 in the group चित्र से काव्य तक
"सार छंद +++++++++ धोखेबाज पड़ोसी अपना, राम राम तो कहता।           …"
yesterday
Chetan Prakash replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 170 in the group चित्र से काव्य तक
"भारती का लाड़ला है वो भारत रखवाला है ! उत्तुंग हिमालय सा ऊँचा,  उड़ता ध्वज तिरंगा  वीर…"
yesterday
Aazi Tamaam commented on Aazi Tamaam's blog post ग़ज़ल: चार पहर कट जाएँ अगर जो मुश्किल के
"शुक्रिया आदरणीय चेतन जी इस हौसला अफ़ज़ाई के लिए तीसरे का सानी स्पष्ट करने की कोशिश जारी है ताज में…"
yesterday
Chetan Prakash commented on सुरेश कुमार 'कल्याण''s blog post अस्थिपिंजर (लघुकविता)
"संवेदनाहीन और क्रूरता का बखान भी कविता हो सकती है, पहली बार जाना !  औचित्य काव्य  / कविता…"
Friday
Chetan Prakash commented on Aazi Tamaam's blog post ग़ज़ल: चार पहर कट जाएँ अगर जो मुश्किल के
"अच्छी ग़ज़ल हुई, भाई  आज़ी तमाम! लेकिन तीसरे शे'र के सानी का भाव  स्पष्ट  नहीं…"
Thursday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey commented on surender insan's blog post जो समझता रहा कि है रब वो।
"आदरणीय सुरेद्र इन्सान जी, आपकी प्रस्तुति के लिए बधाई।  मतला प्रभावी हुआ है. अलबत्ता,…"
Thursday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service