फ़ेलुन फ़ेलुन फ़ेलुन फ़ेलुन फ़ेलुन फ़ेलुन फ़ेलुन फ़ा
22 22 22 22 22 22 22 2
सब में आग थी, लोहा भी था, नेक बहुत थे सारे हम
लेकिन तन्हा-तन्हा लड़ कर, तन्हा-तन्हा हारे हम
ज़र्रा-ज़र्रा बिखरे है हम, चारो ओर खलाओं में
लेकिन जिस दिन होंगे इकठ्ठा, बन जायेंगे सितारे हम
कितने दिन वो मूँग दलेंगे, कमजोरों की छाती पर
कितने दिन और चुप बैठेंगे, बनके यूं बेचारे हम
कबतक और ये…
ContinueAdded by Ajay Tiwari on March 26, 2018 at 11:49am — 22 Comments
केदारनाथ सिंह के लिए
वैसे तो आजकल किसी को क्या फर्क पड़ता है -
एक कवि के न होने से !
लेकिन जैसे ख़त्म हो गया है धरती का सारा नमक
और अलोने हो गए हैं
सारे शब्द...
मौलिक/अप्रकाशित
Added by Ajay Tiwari on March 21, 2018 at 4:40pm — 16 Comments
मुतफाइलुन मुतफाइलुन मुतफाइलुन मुतफाइलुन
11212 11212 11212 11212
जरा-सा छुआ था हवाओं ने, कि नदी की देह सिहर गयी
तभी धूप सुब्ह की गुनगुनी, उन्हीं सिहरनों पे उतर गयी
खिली सरसों फिर से कछार में, भरे रंग फिर से बहार में
घुली खुश्बू फिर से बयार में, कोई टीस फिर से उभर गयी
उसी एक पल में ही जी लिए, उसी एक पल में ही मर गए
वही एक पल मेरी सांस में, तेरी सांस जब थी ठहर गयी
जमी…
ContinueAdded by Ajay Tiwari on March 20, 2018 at 12:28pm — 9 Comments
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