For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

Amod shrivastav (bindouri)'s Blog – March 2016 Archive (6)

रोग जैसे लग रही है।

बह्र:-2122-2122-2122-212



क्या कहेगे लोग आखिर मेरी गजलें देखकर।

मैं किसानों की तरह ही खुश हुँ फसलें देखकर।।



जिनके घर छप्पर पड़े हैं आदमी क्या वो नहीं।

रो रहे है कुछ अमीराँ अपनी नस्लें देखकर।।



कांपते होठों से मेरे सुगबुगाती बात सा।

जैसे कोई लिख रहा हो आज शक्लें देख कर।।



कुछ न होगा वक्त की जुल्मी हवा की जीत से।

कुछ गरीबाँ ही रहेगे पिछली नक्लें देखकर।।



रोग जैसे लग रही है आज की यह सभ्यता।

काँपने लगती है रूहें भी मिसालें… Continue

Added by amod shrivastav (bindouri) on March 31, 2016 at 1:11pm — 5 Comments

समय की मार से दो चार होंगे

1222/1222/122



समय की मार से दो चार होंगे।।

मेरे बच्चे तभी तैयार होंगे।।



मुहब्बत के खुले बाजार होंगे।

हमारे शेर तब अख़बार होंगे।।



न समझो दुश्मनों को काम जवानों।

नकाबों में छिपे ऐय्यार होंगे।।



जो मजहब की रही ऐसी ही हालत।

तो सच कहता हूँ हम बीमार होंगे।।



लगा की दीप रौशन कर मुहब्बत।

मेरा जुगनू सा सब परिवार होंगे।।



वो घूँघट में छिपा कर रुख मिले हैं।

लगा था इश्क में दीदार होंगे।।



जरा समझो हयाती इस… Continue

Added by amod shrivastav (bindouri) on March 31, 2016 at 9:12am — 6 Comments

अमासी रात मेरे घर के तारे ..

बह्र:-1222-1222-1222-1222

अमासी रात मेरे घर के तारे छीन लेती है।।

तूफानी रात आये तो गुजारे छीन लेती है।।



मैं आँखें बन्द रखता हूँ मेरी यादें छुपा कर के।

खुला पाती है जब भी वो नज़ारे छीन लेती है।।



मेरी किस्मत को ऐ मालिक कभी उम्दा भी लिख्खा कर।

ये हसरत जिन्दगानी के सहारे छीन लेती है।।



नशा जिनको है दौलत का उन्हें कोई ये समझाए।

ये लत हमसे जरुरत में हमारे छीन लेती है।।



नहीं है हमजुबां कोई मेरा इस दौर हाजिर में।

कसक इतनी मेरे… Continue

Added by amod shrivastav (bindouri) on March 27, 2016 at 3:58pm — 10 Comments

दो बह्र एक गजल ...

दो बहरी गजल:-

1बह्र:-2122-1122-1122-112

2बह्र:-2122-2122-2122-212



बेसबब रिश्ते -ओ-नातों के लिए बिफरे मिले।।

जब मिले मुझको मेरे सपने बहुत उलझे मिले।।



ज़िन्दगी जिनसे मिला सब ही बड़े नम से मिले।।

मैं उसे समझू मसीहा जो जरा हँस के मिले।।



रुक जरा पूछे इन्हे कैसी कठिन राहें रही।

ये मुसाफिर हैं पुराने आज हम जिनसे मिले।।



उस नदी का है समर्पण जो सदा बहती रहे।

राह जीवन की चले चलते हुए सब से मिले।।



जिंदगी जिनसे गुलाबी है… Continue

Added by amod shrivastav (bindouri) on March 20, 2016 at 7:18am — 1 Comment

बिटिया को अपने अगर देखते हैं

बह्र- 122-122-122-122
बिटिया को अपनी अगर देखते है।।
खुदा का करम अपने घर देखते है।।

वो नीली परी है खिलौना है घर का।
उसे जब भी देखूँ समर देखते है।।

जो सज धज के बेटी की डोली उठी तो।
पड़ोसी भी भर के नजर देखते है।।

अभी तक पिता की दुआ का असर था।
ये बेटे तो अक्सर ही जर देखते है।।

वो पुरखों ने सींचा कभी प्यार से जो।
वही आज सूखा शजर देखते हैं।।

मौलिक/अप्रकाशित
आमोद बिन्दौरी

Added by amod shrivastav (bindouri) on March 10, 2016 at 9:32pm — 3 Comments

तुम्ही से ये सारा बसर देखते हैं

बहर 122/122/122/122

निगाहे नशा बेख़बर देखते है।
तुम्हे आज कल आँख भर देखते है।।

तुम्हारी अदा से जिधर देखते है।
मुहब्बत का अपने नगर देखते है।।

रूमानी है आबो हवा यार तेरी।
भरी बज्म में भी हुनर देखते है।।

जो सीखें हैं पेंचों के हमने करीने।
चलो आज उनका असर देखते है।।

तुम्ही गांव हो और* गालियाँ हमारी।।
तुम्ही से ये सारा बसर देखते है।।
मौलिक ,अप्रकाशित

Added by amod shrivastav (bindouri) on March 10, 2016 at 9:28pm — 4 Comments

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity

Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-128 (विषय मुक्त)
"शुक्रिया आदरणीय।"
yesterday
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-128 (विषय मुक्त)
"आदरणीय शेख शहज़ाद उस्मानी जी, पोस्ट पर आने एवं अपने विचारों से मार्ग दर्शन के लिए हार्दिक आभार।"
Sunday
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-128 (विषय मुक्त)
"सादर नमस्कार। पति-पत्नी संबंधों में यकायक तनाव आने और कोर्ट-कचहरी तक जाकर‌ वापस सकारात्मक…"
Sunday
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-128 (विषय मुक्त)
"आदाब। सोशल मीडियाई मित्रता के चलन के एक पहलू को उजागर करती सांकेतिक तंजदार रचना हेतु हार्दिक बधाई…"
Sunday
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-128 (विषय मुक्त)
"सादर नमस्कार।‌ रचना पटल पर अपना अमूल्य समय देकर रचना के संदेश पर समीक्षात्मक टिप्पणी और…"
Sunday
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-128 (विषय मुक्त)
"आदाब।‌ रचना पटल पर समय देकर रचना के मर्म पर समीक्षात्मक टिप्पणी और प्रोत्साहन हेतु हार्दिक…"
Sunday
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-128 (विषय मुक्त)
"आदरणीय शेख शहज़ाद उस्मानी जी, आपकी लघु कथा हम भारतीयों की विदेश में रहने वालों के प्रति जो…"
Sunday
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-128 (विषय मुक्त)
"आदरणीय मनन कुमार जी, आपने इतनी संक्षेप में बात को प्रसतुत कर सारी कहानी बता दी। इसे कहते हे बात…"
Sunday
AMAN SINHA and रौशन जसवाल विक्षिप्‍त are now friends
Sunday
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-128 (विषय मुक्त)
"आदरणीय मिथलेश वामनकर जी, प्रेत्साहन के लिए बहुत बहुत धन्यवाद।"
Sunday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-128 (विषय मुक्त)
"आदरणीय Dayaram Methani जी, लघुकथा का बहुत बढ़िया प्रयास हुआ है। इस प्रस्तुति हेतु हार्दिक…"
Sunday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-128 (विषय मुक्त)
"क्या बात है! ये लघुकथा तो सीधी सादी लगती है, लेकिन अंदर का 'चटाक' इतना जोरदार है कि कान…"
Sunday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service