ध्यान से देखो
वो पॉलीथीन जैसी रचना है
हल्की, पतली, पारदर्शी
पॉलीथीन में उपस्थित परमाणुओं की तरह
उस रचना के शब्द भी वही हैं
जो अत्यन्त विस्फोटक और ज्वलनशील वाक्यों में होते हैं
वो रचना
किसी बाजारू विचार को
घर घर तक पहुँचाने के लिए इस्तेमाल की जायेगी
उस पर बेअसर साबित होंगे आलोचना के अम्ल और क्षार
समय जैसा पारखी भी धोखा खा जाएगा
प्रकृति की सारी विनाशकारी शक्तियाँ मिलकर भी
उसे नष्ट…
ContinueAdded by धर्मेन्द्र कुमार सिंह on March 24, 2014 at 11:51pm — 11 Comments
बह्र : १२२२ १२२२ १२२२ १२२२
कहीं भी आसमाँ पे मील का पत्थर नहीं होता
भटक जाता परिंदा, गर ख़ुदा, रहबर नहीं होता
कहें कुछ भी किताबें, देश का हाकिम ही मालिक है
दमन की शक्ति जिसके पास हो, नौकर नहीं होता
बचा पाएँगी मच्छरदानियाँ मज़लूम को कैसे
यहाँ जो ख़ून पीता है महज़ मच्छर नहीं होता
मिलाकर झूठ में सच बोलना, देना जब इंटरव्यू
सदा सच बोलता है जो कभी अफ़सर नहीं होता
ये पीली पत्तियाँ, पत्ते हरे आने…
ContinueAdded by धर्मेन्द्र कुमार सिंह on March 22, 2014 at 8:00pm — 28 Comments
बह्र : २१२ २१२ २१२ २१२
ये ख़ुराफ़ात करने से क्या फ़ायदा
जाति की बात करने से क्या फ़ायदा
हाय से बाय तक चंद पल ही लगें
यूँ मुलाकात करने से क्या फ़ायदा
हार कर जीत ले जो सभी का हृदय
उसकी शहमात करने से क्या फ़ायदा
आँसुओं का लिखा कौन समझा यहाँ?
आँख दावात करने से क्या फ़ायदा
ये जमीं सह सके जो बस उतना बरस
और बरसात करने से क्या फ़ायदा
कुछ नया कह सको गर तो ‘सज्जन’ सुने
फिर…
ContinueAdded by धर्मेन्द्र कुमार सिंह on March 12, 2014 at 9:24pm — 20 Comments
शराब की खाली बोतल के बगल में लेटी है
सरसों के तेल की खाली बोतल
दो सौ मिलीलीटर आयतन वाली
शीतल पेय की खाली बोतल के ऊपर लेटी है
पानी की एक लीटर की खाली बोतल
दो मिनट में बनने वाले नूडल्स के ढेर सारे खाली पैकेट बिखरे पड़े हैं
उनके बीच बीच में से झाँक रहे हैं सब्जियों और फलों के छिलके
डर से काँपते हुए चाकलेट और टाफ़ियों के तुड़े मुड़े रैपर
हवा के झोंके के सहारे भागकर
कचरे से मुक्ति पाने की कोशिश कर रहे…
ContinueAdded by धर्मेन्द्र कुमार सिंह on March 1, 2014 at 11:03pm — 4 Comments
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