For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

(१)

 

जिनमें प्रेम करने की क्षमता नहीं होती

वो नफ़रत करते हैं

बेइंतेहाँ नफ़रत

 

जिनमें प्रेम करने की बेइंतेहाँ क्षमता होती है

उनके पास नफ़रत करने का समय नहीं होता

 

जिनमें प्रेम करने की क्षमता नहीं होती

वो अपने पूर्वजों के आखिरी वंशज होते हैं

 

(२)

 

तुम्हारी आँखों के कब्जों ने

मेरे मन के दरवाजे को

तुम्हारे प्यार की चौखट से जोड़ दिया है

 

इस तरह हमने जाति और धर्म की दीवार के

आर पार जाने का रास्ता बना लिया है

 

हमारे जिस्म इस दरवाजे के दो ताले हैं

हम दोनों के होंठ इन तालों की दो जोड़ी चाबियाँ

इस तरह दोनों तालों की एक एक चाबी हम दोनों के पास है

 

जब जब दरवाजा खुलता है

दीवाल घड़ी बन्द पड़ जाती है

 

(३)

 

मैं तुम्हारी आँख से निकला हुआ आँसू हूँ

मुझे गिरने मत देना

अपनी उँगली की कोर पर लेकर

अपने होंठों से लगा लेना

 

मैं तुम्हारे जीवन में नमक की कमी नहीं होने दूँगा

 

(४)

मैं तुम्हारी आँख में ठहरा हुआ आँसू हूँ

मुझे बाहर मत निकलने देना

मैं तुम्हारे दिल को सूखने नहीं दूँगा

 

प्रेम की फ़सल खारे पानी में ही उगती है

 

(५)

हँसते समय तुम्हारे गालों में बनने वाला गड्ढा

बिन पानी का समंदर है

जो न तो मुझे डूबोता है

न तैरकर बाहर निकलने देता है

-----------

(मौलिक एवं अप्रकाशित)

Views: 714

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by धर्मेन्द्र कुमार सिंह on April 8, 2016 at 11:52pm

आदरणीय सौरभ जी, रचना पर विस्तृत प्रतिक्रिया के लिए तह-ए-दिल से आभारी हूँ। आपने ठीक कहा उँगली की पोर ही होती है कोर गलत है। त्रुटि की तरफ ध्यान दिलाने के लिए धन्यवाद।

Comment by धर्मेन्द्र कुमार सिंह on April 8, 2016 at 11:48pm

बहुत बहुत शुक्रिया आदरणीय भ्रमर जी

Comment by धर्मेन्द्र कुमार सिंह on April 8, 2016 at 11:48pm

बहुत बहुत शुक्रिया आदरणीय विजय निकोर जी


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on April 8, 2016 at 8:06pm

पाँच आयाम, पाँच भावोद्गार ! वाह वाह !!

वो अपने पूर्वजों के आखिरी वंशज होते हैं - ऐसा एक प्रेमी सहज ही कह सकता है. बधाई !

जब जब दरवाजा खुलता है

दीवाल घड़ी बन्द पड़ जाती है  -  यही आश्वस्ति देही के विदेही होने की सूरत है, आदरणीय. विदेही भाव की उन्मुक्त दशा, काश, दीर्घकालिक हो. 

इन लघु-कविताओं के लिए हार्दिक बधाइयाँ आदरणीय धर्मेन्द्र जी. 

बिना पानी के समन्दर में क्या डूबना और क्या तैरना ? यह सोच ही, कि ’कुछ’ बिना पानी का समन्दर है, पैदल-पैदल चलने की दशा भावी कर देती है. पाँचवा भावोद्गार कमनीयता और भावनाओं के हिसाब से प्रभावी तो है, किन्तु, तार्किकता और गठन की माँग करती है. 

और भाईजी, उँगली की कोर से नये-नये परिचित हुए हम, वर्ना उसकी ’पोर’ से ही परिचित थे अबतक ! ’कोर’ तो आँख की हुआ करती है न ? 

शुभ-शुभ

Comment by SURENDRA KUMAR SHUKLA BHRAMAR on April 6, 2016 at 3:24pm

हँसते समय तुम्हारे गालों में बनने वाला गड्ढा

बिन पानी का समंदर है

जो न तो मुझे डूबोता है

न तैरकर बाहर निकलने देता है

कविताएँ पढ़ कर आनन्द आ गया.............सुंदर

Comment by vijay nikore on April 6, 2016 at 1:04pm

 आपकी कविताएँ पढ़ कर आनन्द आ गया। बधाई।

Comment by धर्मेन्द्र कुमार सिंह on April 5, 2016 at 6:37pm

बहुत बहुत शुक्रिया आदरणीय लडीवाला जी

Comment by धर्मेन्द्र कुमार सिंह on April 5, 2016 at 6:36pm

बहुत बहुत शुक्रिया आदरणीय गोपाल नारायण जी

Comment by धर्मेन्द्र कुमार सिंह on April 5, 2016 at 6:36pm

बहुत बहुत शुक्रिया आदरणीया राजेश कुमारी जी

Comment by धर्मेन्द्र कुमार सिंह on April 5, 2016 at 6:35pm

बहुत बहुत शुक्रिया आदरणीय आशुतोष मिश्र जी

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity

vibha rani shrivastava replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-123 (जय/पराजय)
""ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-123विषय : जय/पराजय आषाढ़ का एक दिन “बुधौल लाने के…"
54 minutes ago
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-123 (जय/पराजय)
"आदाब। हार्दिक स्वागत आपकी रचना का। प्रदत्त विषयांतर्गत बेहद भावपूर्ण और विचारोत्तेजक कथानक व कथ्य…"
2 hours ago
रक्षिता सिंह replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-123 (जय/पराजय)
"सादर प्रणाम, आदरणीय ।"
15 hours ago
रक्षिता सिंह replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-123 (जय/पराजय)
"सुन, ससुराल में किसी से दब के रहने की कोई ज़रूरत नहीं है। अरे भाई, हमने कोई फ्री में सादी थोड़ी की…"
15 hours ago
Nilesh Shevgaonkar shared their blog post on Facebook
20 hours ago
Admin replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-123 (जय/पराजय)
"स्वागतम"
yesterday
Tilak Raj Kapoor replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-180
"आदरणीय गजेंद्र जी, हृदय से आभारी हूं आपकी भावना के प्रति। बस एक छोटा सा प्रयास भर है शेर के कुछ…"
yesterday
Gajendra shrotriya replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-180
"इस कठिन ज़मीन पर अच्छे अशआर निकाले सर आपने। मैं तो केवल चार शेर ही कह पाया हूँ अब तक। पर मश्क़ अच्छी…"
yesterday
Richa Yadav replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-180
"आदरणीय गजेंद्र ji कृपया देखिएगा सादर  मिटेगा जुदाई का डर धीरे धीरे मुहब्बत का होगा असर धीरे…"
yesterday
Tilak Raj Kapoor replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-180
"चेतन प्रकाश जी, हृदय से आभारी हूं।  साप्ताहिक हिंदुस्तान में कोई और तिलक राज कपूर रहे होंगे।…"
yesterday
Tilak Raj Kapoor replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-180
"धन्यवाद आदरणीय धामी जी। इस शेर में एक अन्य संदेश भी छुपा हुआ पाएंगे सांसारिकता से बाहर निकलने…"
yesterday
Chetan Prakash replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-180
"आदरणीय,  विद्यार्जन करते समय, "साप्ताहिक हिन्दुस्तान" नामक पत्रिका मैं आपकी कई ग़ज़ल…"
yesterday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service