बह्र : २२१२ १२११ २२१२ १२
जब जब तुम्हारे पाँव ने रस्ता बदल दिया
हमने तो दिल के शहर का नक्शा बदल दिया
इसकी रगों में बह रही नफ़रत ही बूँद बूँद
देखो किसी ने धर्म का बच्चा बदल दिया
अंतर गरीब अमीर का बढ़ने लगा है क्यूँ
किसने समाजवाद का ढाँचा बदल दिया
ठंडी लगे है धूप जलाती है चाँदनी
देखो हमारे प्यार ने क्या क्या बदल दिया
छींटे लहू के बस उन्हें इतना बदल सके
साहब ने जा के ओट में कपड़ा बदल दिया
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(मौलिक एवं अप्रकाशित)
Comment
बहुत बहुत शुक्रिया आदरणीय लक्ष्मण धामी जी
बहुत बहुत शुक्रिया आदरणीय विजय निकोर जी।
बहुत बहुत शुक्रिया आदरणीय रवि शुक्ला जी
इसकी रगों में बह रही नफ़रत ही बूँद बूँद
देखो किसी ने धर्म का बच्चा बदल दिया
क्या खूब ग़ज़ल हुई है आ० धर्मेंदर भाई ..बहुत बहुत बधाई .
आपसे एक और खूबसूरत गज़ल पढ़ने को मिली। हार्दिक बधाई।
बहुत बहुत धन्यवाद आदरणीय सूबे सिंह जी
बहुत बहुत धन्यवाद आदरणीय सुनील जी
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