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Sushil Sarna's Blog – April 2024 Archive (3)

दोहा पंचक. . . . .पुष्प - अलि

दोहा पंचक. . . . पुष्प -अलि

गंध चुराने आ गए, कलियों के चितचोर ।

कली -कली से प्रेम की, अलिकुल बाँधे डोर ।।

अलिकुल की गुंजार से, सुमन हुए भयभीत ।

गंध चुराने आ गए, छलिया बन कर मीत ।।

आशिक भौंरे दिलजले, कलियों के शौकीन ।

क्षुधा मिटा कर दे गए, घाव  उन्हें संगीन ।।

पुष्प मधुप का सृष्टि में, रिश्ता बड़ा अजीब ।

दोनों के इस प्रेम को, लाती गंध करीब ।।

पुष्प दलों को भा गई, अलिकुल की गुंजार ।

मौन समर्पण कर…

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Added by Sushil Sarna on April 27, 2024 at 1:51pm — 2 Comments

दोहा पंचक. . . . .

दोहा पंचक  . . . .

( अपवाद के चलते उर्दू शब्दों में नुक्ते नहीं लगाये गये  )

टूटे प्यालों में नहीं, रुकती कभी शराब ।

कब जुड़ते है भोर में, पलक सलोने ख्वाब ।।

मयखाने सा नूर है, बदन अब्र की बर्क ।

दो जिस्मों की साँस का, मिटा वस्ल में फर्क ।।

प्याले छलके बज्म में, मचला ख्वाबी नूर ।

निभा रहे थे लब वहीं, बोसों का दस्तूर ।।

महफिल में मदहोशियाँ, इश्क नशे में चूर ।

परवाने को देखकर , हुस्न हुआ मगरूर…

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Added by Sushil Sarna on April 24, 2024 at 5:37pm — 2 Comments

दोहा दशम. . . . रोटी

दोहा दशम . . . . . . रोटी

कैसे- कैसे रोटियाँ, दिखलाती हैं  रंग ।

रोटी से बढ़कर नहीं,इस जीवन में जंग ।।

रोटी के संघर्ष में, जीवन जाता बीत ।

अर्थ चक्र में गूँजता , रोटी का संगीत ।।

रोटी का संसार में, कोई नहीं विकल्प ।

बिन रोटी के बीतता ,हर पल जैसे कल्प ।।

रोटी से बढ़कर नहीं, दुनिया में कुछ यार ।

इसके  आगे दौलतें , इस जग की बेकार ।।

दो रोटी ने दोस्तो , क्या - क्या दिये अजाब ।

मुफलिस की तकदीर का, रोटी…

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Added by Sushil Sarna on April 20, 2024 at 2:11pm — 2 Comments

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