दोहा पंचक . . . .
नारी का कामुक करे, दागदार जब चीर ।
आँखों की प्राचीर से, झर- झर बहता नीर ।।
हार वही जो जीत का, लिख डाले इतिहास ।
तृप्ति संग तृष्णा करे, हरदम प्यासी रास ।।
जीवन मधुबन ही नहीं, इसमें हैं कुछ खार ।
दो पल खुशियों के मिलें, दुख की लगी कतार।।
मन को मन का मिल गया, मन चाहा मन मीत ।
मन के आँगन अवतरित, मन की होती प्रीत ।।
वो नजरों के पास हैं, या नजरों से दूर ।
दिल के सारे खेल तो, दिल से…
Added by Sushil Sarna on June 27, 2023 at 6:30pm — 6 Comments
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