2122 1122 1122 22
आँख से अश्कों का दरिया तो बहाया हमने
राज़-ए-दिल पर न किसी से भी बताया हमने
उन का हर एक सितम हँसते हुए सह डाला
इस तरह रस्म-ए-मुहब्बत को निभाया हमने
शम्मा उल्फ़त की जो तुम ने थी जलाई दिल में
उस को बुझने से कई बार बचाया हमने
हैफ़ उस ने ही न की क़द्र वफ़ाओं की मेरी
जिस की उल्फ़त में ही दुनिया को भुलाया हमने
नक़्श मिटते ही नहीं दिल से मुहब्बत के तेरी
कितनी ही बार मगर इन को मिटाया…
Added by Mamta gupta on July 30, 2024 at 9:10pm — 2 Comments
Added by Mamta gupta on July 13, 2024 at 11:28am — 5 Comments
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