आज पर कुछ दोहे :
झूठ सरासर भूख से, तन बनता बाज़ार।
उजले बंगलों में चलें, कोठे कई हजार।।
नज़रें मंडी हो गईं, नज़र बनी बाज़ार।
नज़र नज़र में बिक गया, एक तन कई बार।।
नज़रों में है प्यार का, झूठ भरा संसार।
प्यार ओट में वासना, का होता व्यापार।।
कलियों का तन नोचतीं, वहशी नज़रें आज।
रक्षक भक्षक बन गए, लज्जित हुआ समाज।।
हुई पुरातन सभ्यता, नव युग हुआ महान।
बेशर्मी पर आज का, गर्व करे इंसान।।
सुशील…
ContinueAdded by Sushil Sarna on July 6, 2020 at 9:46pm — 4 Comments
ख़्वाबों के रेशमी धागों से .......
कितना बेतरतीब सा लगता है
आसमान का वो हिस्सा
जो बुना था हमने
मोहब्बत के अहसासों से
ख़्वाबों के रेशमी धागों से
ढक गया है आज वो
कुछ अजीब से अजाबों से
शफ़क़ के रंग
बड़े दर्दीले नज़र आते हैं
बेशर्म अब्र भी
कुछ हठीले नज़र आते हैं
उल्फ़त की रहगुज़र पर शज़र
कुछ अफ़सुर्दा से नज़र आते हैं
हाँ मगर
गुजरी हुई रहगुज़र के किनारों पर
लम्हों के मकानों में
सुलगते अरमान
हरे नज़र आते…
Added by Sushil Sarna on July 5, 2020 at 9:32pm — 2 Comments
Added by Sushil Sarna on July 1, 2020 at 9:30pm — No Comments
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